बाबरी मस्जिद केस: क्या मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा है?, 5 अप्रैल को होगी सुनवाई

एक बार जब कोई जगह मस्जिद बन जाती है तो वह सदा के लिए इबादत की जगह हो जाती है, भले ही इसे किसी ‘बर्बर कृत्य’ से अपवित्र व नष्ट कर दिया गया हो। यह बातें शुक्रवार को वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से कही।

अयोध्या मामले पर 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जिरह करते हुए राजीव धवन ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ को बताया कि मस्जिद को भले ध्वस्त कर दिया गया हो, लेकिन फिर भी वह इबादत की जगह बनी रहेगी।

राजीव धवन याचिकाकर्ता मुस्लिम पक्षकार मोहम्मद सिद्दीकी के कानूनी वारिसों की ओर से पेश हुए थे। राजीव धवन ने कहा कि यह पूरी तरह से साफ है कि एक मस्जिद के साथ किसी भी मंदिर के समान व्यवहार होना चाहिए…और रामजन्मभूमि मस्जिद के बराबर है।

बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की दो रथयात्राओं की ओर इशारा करते हुए धवन ने पीठ से कहा कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए एक कठोर, नियोजित और सुविचारित प्रयास किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ द्वारा 1994 के फैसले पर दोबारा विचार करने की याचिका पर सुनवाई की जा रही है। इस फैसले में कहा गया था कि मस्जिद इस्लामिक धर्म परंपरा का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और नमाज कहीं भी अदा की जा सकती है।

छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ध्वंस करने के कार्य को ‘बर्बर कृत्य’ करार देते धवन ने कहा कि जिस चीज को अपवित्र किया गया वह एक मस्जिद थी और अदालत से जो कुछ भी कहा जा रहा है वह मूर्ति (रामलला की मूर्ति) की सुरक्षा के लिए कहा जा रहा है। यह कहते हुए कि सरकार किसी धर्मस्थल का अधिग्रहण कर सकती है।

कोर्ट ने कहा कि अगर वह 1994 के फैसले पर फिर से विचार का फैसला लेती है तो यह इस सिद्धांत पर आधारित होगा कि क्या मस्जिद इस्लामी धार्मिक व्यवहार का अभिन्न हिस्सा है। मामले में अगली सुनवाई पांच अप्रैल को होगी जब धवन अदालत को बताएंगे कि इस्लाम के अनुसार मस्जिद का क्या अर्थ है।