बाबरी मस्जिद पर दूसरे फ़रीक़ की शरअंगेज़ी

ग़सब कर्दा ज़मीन पर अल्लाह का घर तामीर नहीं हो सकता और ना ही मुसलमानों की इबादत इस में होती है। इसी लिए ये वसूक़ के साथ कहा जा सकता है कि बाबरी मस्जिद की जायदाद ग़ज़ब कर्दा नहीं थी बल्कि उस जगह पर अल्लाह का घर तामीर हुआ था जिसे फ़िर्क़ा परस्तों ने शहीद कर दिया।

मौलाना इसरारुल हक़ क़ासिमी रुक्न पार्लियामेंट किशनगंज ने आज गांधी भवन में ग्रेटर हैदराबाद कांग्रेस कमेटी की जानिब से मुनाक़िदा एक तक़रीब के दौरान ये बात कही। उन्होंने बताया कि हिन्दूस्तान में अदम तहम्मुल का आग़ाज़ 6 दिसंबर 1992 से हुआ है और फ़िलहाल ये मुआमला इंतिहाई शदीद नौईयत इख़तियार कर गया है।

मौलाना इसरारुल हक़ क़ासिमी ने बताया कि मुस्लमान अदालती फ़ैसला का एहतिराम करने तैयार हैं जबकि दूसरे फ़रीक़ की जानिब से बारहा इस मसला पर शरअंगेज़ी की जा रही है जबकि मुस्लमान शरअंगेज़ी के बजाय अज़म और हौसला के साथ क़ानूनी तौर पर अपने मौक़िफ़ को दूरुस्त साबित करने की कोशिश कर रहे हैं और करते रहेंगे।

जनाब अबदुल्लाह सुहेल ने इस मौक़ा पर अपने मुख़्तसर ख़िताब के दौरान कहा कि बिहार इंतिख़ाबात में जिन्ना की सोच रखने वालों को शिकस्त हुई है जबकि जिन्ना की सोच को शिकस्त से दोचार करने वाली फ़िक्र मौलाना आज़ाद की फ़िक्र थी जिसके ज़रीए बिहार के अवाम ने फ़िर्क़ा परस्तों के अज़ाइम को नाकाम बना दिया।