पिछ्ले कई बरसों से मुल्क भर में विश्वा हिन्दू परिषद और इस की इत्तिहादी पार्टीयों की जानिब से एक ख़ौफ़नाक एहतिजाज और इश्तिआल अंगेज़ मुहिम चलाई जा रही है, जिस का महवर बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि झ्ग्डा है, जिस के नतीजा में मोहलिक फ़सादाद हो रहे हैं और हज़ारों इंसानी जानें ज़ाये हो गई हैं।
आज़ादी के बाद पहली बार मूल्क का सेक्युलर ढांचा ख़तरा से दो चार हो गया है और ये सब सोलहवीं सदी की एक इमारत के (जो अब मुन्हदिम करदी गई) के सिलसिले में किया जा रहा है। विश्वा हिन्दू परिषद का मुतालिबा है कि इस मस्जिद का ढांचा जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है और जो २९ । १५२८ में तामीर हुई, ठीक उसी जगह खड़ा है, जहां भगवान राम पैदा हुए थे (राम जन्मभूमि या जन्म स्थान) और इस मुक़द्दस मुक़ाम पर एक राम मंदिर था, जो मस्जिद की तामीर के लिए मुंहदिम कर दिया गया। अब से ४५० साल पहले हीन्दूओं के साथ हुई इस तारीख़ी ज़्यादती की तलाफ़ी यूं होगी कि मस्जिद को गिराकर उस की जगह शानदार मंदिर तामीर किया जाए।
इस पूरे झगडा का क़ानूनी पहलूं और मुज़मिरात का सरदसत अलग रख कर (वाज़िह रहे कि इलहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ बंच के सामने ये पूरा केस है) हम इस के तारीख़ी पहलू से बेहस करते हैं, जिस के बारे में विश्वा हिन्दू परिषद का दावा है कि तारीख़ का फ़ैसला इस के हक़ में है।
नाज़ुक सूरत-ए-हाल के पेशे नज़र हकूमत-ए-हिन्द ने दिसंबर १९९० में विश्वा हिन्दू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शण कमेटी से मुज़ाकरात शुरू किए और फ़रीक़ैन के नुक़्ता-ए-नज़र के तारीख़ी और क़ानूनी इस्तिनाद का जायज़ा लेना चाहा और इस तरह एक तारीख़ी हक़ीक़त पर झग्डे का फ़ैसला अब यूं होगा कि फ़रीक़ैन अपना मुक़द्दमा रखेंगे और हुकूमत रैफ़री का काम अंजाम देगी, ना कि तारीख़ दानों का कोई आज़ाद फ़ोर्म।
ज़ाहिर है कि ये कोई अच्छी बात नहीं है। इस वजह से हम ने हुकूमत से इस सिलसिले में रुजू किया और मुतालिबा किया कि तारीख़ी वाकीयात से मुताल्लिक़ फ़ैसला के लिए ग़ैर जांबदार मूअर्रीख़ीन को भी शामिल किया जाए और हमें वो पूरा मवाद देखने का मौक़ा दिया जाए, जो इस सिलसिले में सरकारी इदारों मसलन आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ने जमा किया है।
अफ़सोस है कि हुकूमत इस मुतालिबा के जवाब में बिलकुल ख़ामोश रही, जब कि बाबरी मस्जिद एक्शण कमेटी ने आज़ाद तारीख़ दानों की तहक़ीक़ को मान लेने और इस के मुताबिक़ अमल का एलान किया, लेकिन वी एच पी ने इस पोज़ीशन को क़बूल नहीं किया। इन रुकावटों के बावजूद हम ये ज़रूरी समझते हैं कि क़ौम के सामने सही तारीख़ी हक़ायक़ गैर मुतास्सीबाना तौर पर लाए जाएं, ताकि लोग तारीख़ी हक़ायक़ के सिलसिले में अंधेरे में ना रहीं।
वी एच पी और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के ज़रीया हुकूमत को पेश कर्दा शहादतें हम ने ग़ौर से देखी और अपने तौर पर भी तारीख़ी मवाद जमा किया। हम में से दो लोग अयोध्धया गए और बाबरी मस्जिद की इमारत का सर्वे किया। साथ ही प्रोफेसर ए के नारायण के अयोध्धया सर्वे और खुदाइयों के ज़रीया फ़राहम करदा मवाद को भी देखा, जो बनारस हिन्दू यूनीवर्सिटी में महफ़ूज़ है।
हमें अफ़सोस है कि प्रोफेसर बीबी लाल की अयोध्धया खुदाइयों का मवाद हमारी तरफ़ से पूरी कोशिश के बावजूद भी हमें फ़राहम नहीं किया गया और हमें उस की मतबूआ रिपोर्टों पर ही इन्हिसार करना पड़ा। इस कोशिश के बाद अपनी तहक़ीक़ के नताइज को हम पूरी आजिज़ी के साथ क़ौम के सामने रख रहे हैं। कम अज़ कम हमें ये इत्मेनान तो होगा कि अपने मक़दूर भर हम ने अपना फ़र्ज़ अदा करने की कोशिश की है।
विश्वा हिन्दू परिषद का मुक़द्दमा बुनियादी तौर पर नीचे लीखीत चार दावों पर मबनी है।
(१) हिन्दू हमेशा और यक़ीनन बाबरी मस्जिद की तामीर से एक लंबे अर्सा पहले ही से ये मानते रहे हैं कि अयोध्धया में एक मुक़द्दस मुक़ाम है, जहां भगवान राम पैदा हुए।
(२) ये वही मुक़ाम है, जहां अब बाबरी मस्जिद क़ायम है।
(३) इस मुक़द्दस मुक़ाम पर बाबरी मस्जिद की तामीर से बहुत पहले राम के नाम से मौसूम एक मंदिर खड़ा था।
(४) इस जगह मस्जिद की तामीर की ग़रज़ से मंदिर को तोड़ डाला गया।
इसी तर्तीब से हम इन चारों दावों का जायज़ा लेंगे। सब से पहले हमें ये देखना है कि दावा (१) और (२) मैं कितनी जान है, यानी ये बात कि अयोध्धया में राम मंदिर का तसव्वुर हमेशा से हीन्दू कौम में राइज रहा और इसी तरह ये कि इस मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई गई। (तसलसुल आइन्दा जुमा)