बाबू बजरंगी दरख़ास्त ज़मानत से दस्तबरदार

अहमदाबाद: 2002 के नरोडा पाटिया फ़सादात‌ के एक मुक़द्दमा में उमर क़ैद की सज़ा-ए-भुगतने वाले वीएचपी लीडर बाबू बजरंगी बाज़ाबता ज़मानत के लिए दायर करदा अपनी दरख़ास्त से दसतबरदारी इख़तियार की। जब गुजरात हाइकोर्ट ने इस तास्सुर का इज़हार किया कि इस दरख़ास्त को मुस्तरद किया जाता है क्योंकि सिर्फ़ तिब्बी बुनियादों पर ही ज़मानत नहीं दी जा सकती।

जस्टिस महिन्द्र पाल और जस्टिस आर डी को थारी पर मुश्तमिल एक डीवीझ़न बेंच ने हुक्म दिया कि बजरंगी की दरख़ास्त को बतौर दसतबरदारी मुस्तरद क़रार दिया जाता है। बजरंगी तिब्बी बुनियाद पर ज़मानत केलिए अपने एक वकील प्रवीण गोंडा लिया के ज़रिए हाइकोर्ट से रुजू हुआ था।

इस ने अपनी आँख के ईलाज केलिए ख़ुसूसी अदालत की तरफ़ से दी गई सज़ा को मुअत्तल रखने की दरख़ास्त भी किया था। हाइकोर्ट ने इस तास्सुर के साथ दरख़ास्त को मुस्तरद कर दिया कि महेज़ तिब्बी वजूहात की बुनियाद पर ही ज़मानत नहीं दी जा सकती क्योंकि जेल के क़वानीन के मुताबिक़ क़ैदीयों को ईलाज केलिए ज़मानत पर छोड़ा नहीं जाता बल्कि ईलाज करवाया जाता है, जिस के बाद बजरंगी वकील ने दरख़ास्त को वापिस ले लिया।

वाज़िह रहे कि जस्टिस रवी त्रिपाठी और जस्टिस आर डी कोठारी पर मुश्तमिल गुजरात हाइकोर्ट की बेंच ने बाबू बजरंगी को 90 दिन केलिए ज़मानत पर रिहाई का हुक्म दिया था और वो 24 अप्रैल को जेल से रिहा हुआ था। नरोडा पाटिया फ़सादात‌ के मुक़द्दमे में बाबू बजरंगी के अलावा गुजरात की साबिक़ वज़ीर-ए-सेहत माया कोडनानी और दीगर मुजरिमीन को सज़ा दी गई है। नरोडा पाटिया फ़सादात‌ के दौरान 97 अफ़राद हलाक किए गए थे। मुजरिमीन को गुज़िशता साल 12 अगस्त को सज़ा दी गई थी।