!! नुमाइंदा ख़ुसूसी मौक़ूफ़ा जायदाद इंसानों की ज़ाहिरी मिलकीयत से निकल कर अल्लाह पाक की मिलकीयत में चली जाती है । लिहाज़ा ना तो इस की खरीद-ओ-फ़रोख़त हो सकती है और ना ही इस पर शख़्सी इजारादारी बाक़ी रह सकती है । ओक़ाफ़ी जायदादों को शख़्सी और गैरकानूनी क़ब्ज़ों से निकाल कर रफ़ाही और मफ़ाद-ए-आम्मा के इस्तिमाल के लिए ख़ास करना बा इख़तियार बंदों का दीनी फ़रीज़ा है । वक़्फ़ करने वाला अल्लाह की ख़ुशनुदी के लिए उस की राह में कोई चीज़ वक़्फ़ करता है जो क़यामत तक इस के लिए सदक़ा जारीया होती है ।
नीज़ वक़्फ़ के ताल्लुक़ से वाक़िफ़ की शराइत को इस्लाम में शरई क़वानीन की हैसियत हासिल है । लिहाज़ा वाक़िफ़ की मंशा-ए-के ख़िलाफ़ मौक़ूफ़ा अराज़ी को मुबाह उमूर में भी इस्तिमाल करने की क़तई गुंजाइश नहीं चे जायके मआसी (गुनाह के कामो मे) में इस्तिमाल की जाय और जहां तक क़ब्रिस्तान का ताल्लुक़ है तो क़ुबूर और क़ब्रिस्तान के हवाला से शरीयत मुतह्हरा में बहुत से अहकामात हैं ।
उन की निगहदाशत और उन का एहतिराम बहुत ज़रूरी है । क़ब्रिस्तान की ज़मीन पर कोई एसा कारोबार करना जिस से क़ुबूर की बेहुर्मती हो हरगिज़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता । नीज़ क़ब्रिस्तान की अराज़ी को क़ब्रिस्तान के मुफ़ाद के इलावा दीगर उमूर में इस्तिमाल करने की भी इस्लाम इजाज़त नहीं देता । इन रहनमयाना हिदायात की रोशनी में जब हम ने शहर के मुतअद्दिद क़ब्रिस्तान की ख़सता हाली और उन पर नाजायज़ क़ब्ज़ों का मुताला और मुआइना किया तो दंग रह गए ।
इस तरह के क़ब्रिस्तानों की फ़हरिस्त में बाला पूर का क़दीम क़ब्रिस्तान भी है जब वक़्फ़ बोर्ड चियरमैन जनाब मौलाना ख़ुसरो पाशाह अफ़ज़ल ब्याबानी 25 जनवरी को बाला पूर ( मला पूर ) की शहीद क़ुतुब शाही मस्जिद का दौरा कर के वापिस होरहे थे तो हम ने मज़कूरा क़ब्रिस्तान की जानिब उन की तवज्जा मबज़ूल कराई और बताया कि इस क़ब्रिस्तान के दरमियान से एक कच्ची सड़क निकाली गई है ।
अगर वक़्फ़ बोर्ड की ख़ामोशी इस तरह बरक़रार रही तो ऐन मुम्किन है कि कुछ अय्याम के बाद उसे पुख़्ता सड़क में तब्दील कर दिया जाय । हम ने वक़्फ़ बोर्ड चियरमैन से इस क़ब्रिस्तान के मुआइना की दरख़ास्त की इस पर जनाब ख़ुसरो पाशाह ने क़ब्रिस्तान के पास रुक कर वहां का तफ़सीली मुआइना क्या उन के हमराह वक़्फ़ बोर्ड के ज़िम्मेदार हज़रात का एक अमला भी मौजूद था । वाज़ेह रहे कि बाला पूर का ये क़ब्रिस्तान लब सड़क वाक़ै है इस की दोनों जानिब से सड़क निकलती है और कुछ अर्सा से मंसूबा बंद तरीका से बाला पूर का मुकम्मल कचरा क़ब्रिस्तान में ही लाकर डाला जा रहा है ताकि एक दिन क़ब्रों के निशानात मिट जाएं और बाआसानी उसे प्लॉट्स की शक्ल देदी जाय ।
वक़्फ़ बोर्ड चियरमैन ने अपनी टीम के एक आला ज़िम्मेदार को हुक्म दिया कि जल्द अज़ जल्द यहां एक बोर्ड नसब किया जाय जिस में मकतूब हो कि ये अराज़ी दर्ज वक़्फ़ है । लेकिन हम ने चंद रोज़ कब्ल मज़कूरा क़ब्रिस्तान का मुआइना किया ।हमें वहां कहीं भी कोई बोर्ड नज़र नहीं आया । इस तरह क़ब्रिस्तान के बिलकुल रूबरू एक सेनधि कम्पाउंड ( शराब ख़ाना ) है । बालापूर के वक़्फ़ इन्सपैक्टर ने चियरमैन साहब से कहा कि सामने मौजूद सेनधि ख़ाना मुकम्मल इस क़ब्रिस्तान की अराज़ी पर है । हम उसे कई नोटिस जारी कर चुके हैं । ये एक अर्सा से क़ब्रिस्तान की ज़मीन पर सेनधि ख़ाना चला रहा है ।
वक़्फ़ बोर्ड चियरमैन मौलाना ख़ुसरो पाशाह ने ये सुन कर कहा कि इंशा अल्लाह बहुत जल्द इस के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी । क़ारईन ! हम ने मज़कूरा सेनधि ख़ाना के मालिक के पास जाकर हक़ायक़ जानने की कोशिश की तो इस ने साफ़ इनकार किया कि ये वक़्फ़ लैंड है । में 1972 से इसी जगह शराब फ़रोख़त कररहा हूँ । जब कि हक़ीक़त ये है कि वक़्फ़ बोर्ड के रेकॉर्ड में इस क़ब्रिस्तान की मुकम्मल तफ़सीलात मौजूद हैं जो इस बात की दलील है कि ये ओक़ाफ़ी जायदाद है ।
वक़्फ़ रेकॉर्ड इस तरह है : RR/35, sy.no.8, mandal saro nagar, village, Bala pur, area 1 acre10 gunta, gaz.no.16-A, date 09-02-1989, gaz,f/no.2679 । मालूम रहे कि सेनधि कम्पाउंड मालिक का नाम नागेश गोड़ है जो ना वक़्फ़ अराज़ी को तस्लीम करता है और ना ही वक़्फ़ बोर्ड के नोटिस क़बूल करता है । एसा लगता है कि इन अनासिरके सामने वक़्फ़ बोर्ड बेबस हो चुका है । क़ारईन ! मज़ीद तहक़ीक़ के लिए हम वहां से बाला पूर ग्राम पंचायत के दफ़्तर पहुंचे जहां ऑफीसर से मुलाक़ात हुई । ऑफीसर से गुफ़्तगु के दौरान जेतिंदर नामी एक शख़्स ने हमारी बातें सुन कर दरमियान में आकर कहा कि मैं विश्वा हिन्दू परिषद की जानिब से बाला पूर का सदर हूँ ।
इस ने कहा कि इस मसला को अब उठाने की क्या ज़रूरत पड़ गई । जब कि बाला पूर की जुमला आबादी 18 हज़ार नौ सौ में से एक भी यहां मुस्लमान नहीं है । मज़ीद इस ने कहा कि क़ब्रिस्तान क़दीम ज़रूर है मगर इस के पास सिर्फ आधा एकड़ ज़मीन है । क़ारईन ! मुंदरजा बाला वक़्फ़ रेकॉर्ड से सदर विश्वा हिन्दू परिषद का झूट वाज़ेह है । जेतिंदर ने ये भी बताया कि बाला पूर के इलाक़ा में एक 400 साला क़दीम क़ुतुब शाही मस्जिद गैर आबाद है । पुलिस एक्शन के बाद से अब तक इस में नमाज़ नहीं हुई । हम ने इस मस्जिद का भी दौरा किया । ये इंतिहाई ख़सताहाल मस्जिद यादव तबक़ा से ताल्लुक़ रखने वाले एक शख़्स के क़बज़ा में है । इस तरह के एक दो क़ब्रिस्तान-ओ-मसाजिद नहीं हैं जो ग़ैरों के क़बज़ा में बेहुर्मती के शिकार हैं बल्कि सैंकड़ों की तादाद में है ।
अब भी वक़्त है कि वक़्फ़ बोर्ड मज़कूरा क़ब्रिस्तान की हिसारबंदी कराए वर्ना इस में कोई दो राय नहीं कि अनक़रीब ये ग़ैरों के क़बज़ा में चला जाएगा ।
इस्लामी माहौल के इस शहर हैदराबाद में अगर इस तरह क़ब्रिस्तानों की बे हुर्मती और ओक़ाफ़ी जायदादों पर क़बज़ा होता रहा तो अंजाम क्या होगा अच्छी तरह अंदाज़ा लगाया जा सकता है । वक़्फ़ बोर्ड दफ़्तर में कुर्सियों पर बैठ कर तहफ़्फ़ुज़ औक़ाफ़ के हवाले से मीटिंगें ज़रूर करता है बाद अज़ां मीडिया के नुमाइंदों से मुख़ातब हो कर तयशुदा फैसलों से उन्हें वाक़िफ़ भी किराया जाता है लेकिन ज़मीनी हक़ायक़ क्या हैं । इन से सब वाक़िफ़ हैं ।
अमली मैदान में वक़्फ़ बोर्ड की कारकर्दगी से आज कोई भी नावक़िफ़ नहीं ।।