बाल विवाह करने के मामले में पश्चिम बंगाल सबसै आगे!

प्रगति और विकास के तमाम दावों के बावजूद भारत में अब भी हर 10 में से एक लड़की की शादी बाली उमर में ही हो जाती है. 2030 तक 15 करोड़ लड़कियों की शादी उनके 18वें जन्मदिन से पहले हो चुकी होगी.
विडंबना यह है कि कम उम्र में लड़कियों के विवाह के मामले में बिहार, छत्तीसगढ़ या झारखंड जैसे पिछड़े कहे जाने वाले राज्य नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल पहले स्थान पर है.

सात साल से एक महिला के मुख्यमंत्री रहने और सरकार की ओर से इस सामाजिक कुरीति पर अंकुश लगाने के लिए कन्याश्री जैसी योजनाएं शुरू करने के बावजूद नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 की ताजा रिपोर्ट से इसका पता चला है.

2005-06 में हुए ऐसे तीसरे सर्वेक्षण में बिहार पहले स्थान पर था जबकि बंगाल चौथे पर. इस बीच यूनिसेफ की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस सामाजिक कुरीति पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल नहीं की गई तो भारत में 2030 तक 15 करोड़ लड़कियों की शादी उनके 18वें जन्मदिन से पहले हो चुकी होगी.

पश्चिम बंगाल में बीते सात वर्षों में हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया है. 2011 की जनगणना में यह तथ्य सामने आया था कि युवतियों के बाल विवाह के मामले में बंगाल सबसे आगे है. राज्य में यह औसत 7.8 फीसदी था जो राष्ट्रीय औसत (3.7 फीसदी) के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा था. अब आंकड़ों में भले मामूली हेरफेर हुआ हो, कुल मिला कर हालात जस के तस हैं.

ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगाल में बाल विवाह में महज आठ फीसदी की कमी आई जबकि बिहार, झारखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ऐसे मामलों में 20 पीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई. जिलावार विश्लेषण से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में सबसे ज्यादा (39.9 फीसदी) बाल विवाह होते हैं.

उसके बाद गुजरात के गांधीनगर (39.3 फीसदी) और राजस्थान के भीलवाड़ा (36.4 फीसदी) जिले का नंबर आता है. हिमाचल प्रदेश और मणिपुर को छोड़ कर ज्यादातर राज्यों में बाल विवाह दर में लगातार कमी आई है. देश में 15 से 19 साल तक की लड़कियों के विवाह की राष्ट्रीय औसत दर अब 11.9 फीसदी हो गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाको में बाल विवाह का प्रचलन शहरी इलाकों के मुकाबले ज्यादा है. इन इलाको में इसका औसत शहरी इलाके के 6.9 फीसदी के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा लगभग 14.1 फीसदी है. इसमें कहा गया है कि बाल विवाह का सीधा संबंध शिक्षा से है. शिक्षित परिवारों में ऐसे मामले अपेक्षाकृत कम सामने आते हैं.

साभार- ‘डी डब्ल्यू हिन्दी’