बिलाउर्ज़ शरई नमाज़ के लिये कुर्सी का इस्तिमाल , चर्च कल्चर : मुइज़ अलुद्दीन अशर्फ़ी

बाअज़ लोग फ़ी ज़माना मसाजिद में कुर्सी नशीन हो कर नमाज़ अदा करते हुए नज़र आरहे हैं । हम सब जानते हैं नमाज़ एसी इबादत है जिस में बदनी मशक़्क़त होती
है और इस में अल्लाह ताली के सामने अजुज़-ओ-इनकिसारी का इज़हार है , ज़मीन पर बैठ कर सजदा और क़ादा एक मुनफ़रद तर्ज़ इबादत है , बिलाउर्ज़ शरई कुर्सी
पर इबादत चर्च कल्चर है ।

मौलाना सय्यद ख़्वाजा मुइज़ अलुद्दीन अशर्फ़ी ख़तीब जामि मस्जिद मुहम्मदी किशन बाग़ में अपने ख़िताब के दौरान इन मसाइल को बयान
किया , मौलाना अशर्फ़ी ने कहा कि कुर्सी पर बैठ कर नमाज़ पढ़ने की इजाज़त इस सूरत में है कि अगर कोई शख़्स ख़ूब मोटा है यह किसी मर्ज़ के सबब इस का
ज़मीन पर बैठना दुशवार है अगर बैठ जाय तो ख़ुद से उठ नहीं सकता दूसरे लोग उसे कुर्सी पर उठाते बैठाते हैं तो उसे शख़्स को कुर्सी पर नमाज़ पढ़ने की
इजाज़त है ।

इस मसले में मर्दों की तख़सीस नहीं औरतों के लिये भी यही हुक्म है बिलाउर्ज़ फ़र्ज़ , वित्र और फ़ज्र-ओ-मग़रिब की सुन्नत नमाज़ों को ज़मीन पर
या कुर्सी पर बैठ कर पढ़ने से नमाज़ नहीं होगी , अलबत्ता नवाफ़िल बैठ कर
पढ़ सकते हैं ।।