बिहार की मज़हर उल-हक़ अरबी-ओ-फ़ारसी यूनीवर्सिटी की हालत-ए-ज़ार

पटना २९ नवंबर (एजैंसीज़) मौलाना मज़हर उल-हक़ अरबी-ओ-फ़ारसी यूनीवर्सिटी के क़ियाम को हालाँकि दस साल से ज़ाइद का अर्सा बीत चुका है लेकिन आज भी हालत ये है कि यूनीवर्सिटी उबूरी मुक़ामात से चलाई जा रही है जिस का कोई मुस्तक़िल पता नहीं है।

इलावा अज़ीं नौकरशाही के इमतियाज़ी रवैय्या का शिकार ये यूनीवर्सिटी अपनी बक़ा के लिए भी जद्द-ओ-जहद कर रही है।

इस यूनीवर्सिटी को मुजाहिद आज़ादी मौलाना मज़हर उल-हक़ से मौसूम किया गया है। (MMHAPU) जिस का कलीदी मक़सद रियासत में अरबी और फ़ारसी ज़बान के फ़रोग़ के इलावा मुस्लमानों को आला तालीम की फ़राहमी है ,ख़ुसूसी तौर पर ऐसे बच्चे जो मुदर्रिसा के पस-ए-मंज़र से आए हैं। मुस्लमानों की शनाख़्त वाली ये यूनीवर्सिटी ऐसा लगता है कि हुक्काम की आँखों में खटक रही है।

इस लिए उस की तरक़्क़ी और फ़रोग़ पर कोई तवज्जा नहीं दी जा रही है। याद रहे कि 1998-ए-में बिहार में इस वक़्त की राबड़ी देवी हुकूमत ने 6 यूनीवर्सिटीयों के क़ियाम का फ़ैसला किया था ताकि बिहार स्टेट यूनीवर्सिटीज़ ऐक्ट 1976-ए-के तहत रियासत में आला तालीम को फ़रोग़ दिया जा सकी। मज़कूरा ऐक्ट का नफ़ाज़ 10 अप्रैल 1998-ए-को हुआ।