पटना: “सब का साथ सब का विकास” के राजनितिक पार्टियाँ चाहे जितने भी दावे कर ले लेकिन सर ज़मीन पर देखने से आंकड़े कुछ और ही बताते हैं. इस की मिसाल बिहार में देख जा सकती है. बिहार की आठ यूनिवर्सिटीज़ में सिर्फ़ ब्राह्मणों को वाईस चान्सलर बनाया गया, एक भी मुसलमान नहीं, एक भी दलित नहीं, एक भी OBC नहीं है. सभी के सभी ऊँची जाति के हैं. जिस से पता चलता है कि अपर कास्ट का दबदबा बरक़रार है.
छोटे मोटे निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में जहाँ महिलाओं को पचास प्रतिशत का आरक्षण दिया गया, वहीँ लोकसभा और विधान सभा में राजनितिक पार्टियाँ महिलाओं को आरक्षण देने के लिए तैयार नहीं. इस से पता चलता है कि करनी और कथनी में बहुत अंतर है, जब तक सच्चे मन से इस अंतर को पाटा नहीं जाएगा, तब तक “सब का साथ सब का विकास संभव नहीं हो सकता.
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