जब से समाजवादी पार्टी के इंजमाम की कवायद शुरू हुई, आम इजलास में राजद सरबराह लालू प्रसाद यह तर्क देना नहीं भूलते कि लोकसभा इंतिख़ाब में जदयू और राजद को 36 फीसद से ज़्यादा वोट मिले जबकि भाजपा को करीब 30 फीसद ही। जदयू और राजद अगर एक हो जाए तो भाजपा कहीं नहीं टिकेगी। लालू प्रसाद के इस तर्क को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता है।
बिहार में करीब चार दशक से असर रहे समाजवादी सियासत के आईने में भी यह तर्क दमदार लगता है। लेकिन यह तर्क जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं। इस जमीनी सच को भी खारिज नहीं किया जा सकता है कि राजद और जदयू का अवामी रुझान एक दूसरे के मुखालिफत रहा है। इंजमाम के बाद अवामी रुझान का कितना इंजमाम हो पाएगा, यह अहम होगा। वैसे एसेम्बली की दस सीटों के जिमनी इंतिख़ाब में इत्तिहाद को फायदा जरूर दिखा था।
भाजपा ने बिहार इंतिख़ाब को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखा है। वह अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ेगी। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के साथ आने का दबाव भाजपा पर भी है। दोनों के अलग- अलग होने से उसे बिहार में हुकूमत की राह आसान दिख रही थी। जनता परिवार के नए दल की सबसे बड़ी ताकत नीतीश कुमार की शोबिया होगी। भाजपा इसे बखूबी जानती है।
लोकसभा इंतिख़ाब में भाजपा इत्तिहाद को वोट करने वाले वोटरों को अक्सर यह कहते सुना गया था कि बिहार के इंतिख़ाब में नीतीश को वोट देंगे। इसीलिए भाजपा नीतीश कुमार पर डाइरेक्ट वार करने की बजाय लालू प्रसाद के 15 साल के हुकूमत का हवाला देकर उन पर निशाने साध रही है। उसका मकसद वोटरों में लालू प्रसाद का खौफ पैदा करना है। उसकी नजर जदयू के रिवायती राजद मुखालिफ वोटों पर है। इसीलिए भाजपा के लीडर नीतीश कुमार से सवाल कर रहे हैं कि लालू प्रसाद के साथ रहकर वह कैसा हुकूमत देंगे।
लालू प्रसाद का बुनियादी वोट अगर यादव और अगड़े मुसलमानों में रहा है तो नीतीश कुमार का इंटेहाई पसमानदा, महादलित, पसमानदा मुसलमान और सवर्ण में। लोकसभा इंतिख़ाब में भाजपा इंतेहाई पसमानदा वोटों में सेंध लगाने में कामयाब रही थी। वहीं मुस्लिम वोटरों का वोट कम पड़ा था। दोनों के साथ आने से न सिर्फ इंतिख़ाब में पसमानदा गोलबंदी के बल्कि अक़लियत वोटरों के जोश से वोट करने के आसार भी बढ़ गए हैं। भाजपा की कोशिश यह भी है कि वह जीतनराम मांझी के मामले को महादलित का बेईजती करार देकर जदयू के महादलित वोट में सेंध लगाए। माना जा रहा हैं कि मांझी तमाम 243 सीटों पर उम्मीदवार देकर जदयू के वोट में सेंध लगाने की पॉलिसी अपनाएंगे। इसका फायदा भाजपा को होगा। बहरहाल, बिहार का इंतिखाब दिलचस्प होगा और इस पर मुल्क दुनिया की नजर भी रहेगी। गैर भाजपा पार्टियों के एक साथ होने से भाजपा की चैलेंज भी बढ़ गई है।