बिहार में किसकी होगी सरकार…..

नई दिल्ली: क्या….. बिहार में होने जा रहे इंतेखाबात की बुनियाद दलित, महादलित, अक्लियती और पिछ़डे ही हैं, और क्या इन्हें इनकी हैसियत बताकर और जात-पात का कार्ड खेलकर ही इक्तेदार तक पहुंचने का रास्ता बनता है।

एक ओर बिहार के ताकतवर लीडर कहते हैं कि वहां के इलेक्शन मुल्क में सियासत की बयार और सिम्त तय करने वाले होंगे दूसरी ओर बिहार में तरक्की के बजाए ज़ात का कार्ड भी खेलते हैं। 21वीं सदी के जदीद हिंदुस्तान का सपना ख्वाब देखते हुए भी यह सब ब़डा अटपटा नहीं लगता कि अच्छी हुक्मरानी, खुद्दारी, जंगलराज, मण्डल-कमण्डल का जिन्न इलेक्शन के दौरान ही क्यों अचानक बाहर आ जाता है।

बिहार में सवा दो करो़ड वोटर्स पिछ़डे, ज़्यादा पिछ़डे और गैर यादव-कुर्मी ज़ात के हों या फिर 45 लाख नौजवान मुसलमान वोटर हों, सभी पार्टियों का फोकस इन्हीं पर सबसे ज्यादा है। जाहिर है सारा खेल इन्हीं के आसरे और लुभाने के लिए खेला जा रहा है।

सितमज़र्फी यह कि इ‍लेक्शन के वक्त ही बिहार में खूब सियासत होती है। इत्तेहाद की सियासत अब मजबूरी है, ध़डेबाजी में बंटे लोगों को रिझाने-लुभाने के लिए एक से एक हथकण्डों के बीच भाजपा के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी पहले ही इजलास कर, खुद को भी पिछ़डा बता ज़ात का कार्ड खेल चुके हैं।

भाजपा बहुत ही होशियारी से छोटे-छोटे सियासी पार्टीयों को साधकर चल रही है यानी पिछ़डा, दलित, महादलित कार्ड के दम पर किसी भी कीमत पर बिहार की इक्तेदार हथियाने में वैसी चूक नहीं चाहती जो दिल्ली में इंतिहायी यकीनी के चलते हुआ, सीएम के नाम का ऐलान से भी परहेज कर, हर कदम फूंक-फूंक कर।

पीएम नरेन्द्र मोदी ने इलेक्शन के ऐलान के काफी पहले बिहार का दौरा शुरू कर दिया था। सरसा, आरा, गया समेत कई जिलों में रैलियां कर लीं। आरा में सवा लाख करो़ड के पैकेज का ऐलान करके भी आवाम को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छो़डी।

दलित, महादलित और पिछ़डों को साधने के लिए रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी को न सिर्फ साथ रखा बल्कि सीटों के नाम पर खासा मान-मनौवल कर यह पैगाम भी दिया कि वो सबको साथ लेकर चलने में यकीन रखते हैं।

बिहार में 1 करो़ड 10 लाख मुसलमान वोटर्स हैं। इन्हें लालू-नीतिश और कांग्रेस का जनता परिवार या इत्तेहाद (Grand alliance) अपने लिए महफूज़ वोट बैंक मानकर चल ही रहा था कि ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में सीमांचल से इलेक्शन लडने का ऐलान कर, मुसलमानों को वोट बैंक मानकर चल रहे पार्टियों के खातों में, सेंधमारी कर दी बल्कि फिक्र भी बढ़ा दी है।

ओवैसी का सीमांचल में उम्मीदवार उतारने का मतलब 37 सीटों पर खतरा जो पूर्णिया और कोसी मण्डल की बिलतरतीब 24 और 13 होंगी। मारूफ है कि सीमांचल की 25 सीटों पर मुस्लिम वोटर्स फैसलाकुन होते हैं और 12 में नतीजो को मुतास्सिर करते हैं। अगर मुस्लिम वोटर्स की तादाद की बात करें तो अररिया और पूर्णिया में 35-35, कटिहार में 45 और किशनगंज में 68 फीसद वोटर्स हैं।

जाहिर है यह Grand alliance के पक्के वोट हैं जो ओवैसी के इंतेखाबी समर में कूदने के बाद किधर जाएंगे वक्त बताएगा। यानी शक के हालात बन गए है और इलेक्शन दिलचश्प होंगे। सबको मालूम है कि ओवैसी की चुनावी रैलियां कितनी जारिहाना होती हैं और वो किस तरह से मुस्लिम वोटों के Polarization में कामयाब होते हैं।

यानी नुकसान सिर्फ और सिर्फ Grand alliance का ही तय है। महाराष्ट्र के इलेक्शन में भी ओवैसी का असर दिख चुका है। भले ही उन्हें 2 सीट मिली हो लेकिन नुकसान किसको कितना हुआ, सबको मालूम है।

ओवैसी के इस ऐलान से भाजपा बहुत ही खिली हुई दिखती है, पता नहीं कौन सा Equation सटीक बैठेगा, अलबत्ता यह कहना कि सीमांचल में भारतीय जनता पार्टी पहले भी जीतते आई है, ब़डा इशारा जरूर है। दलित, महादलित, पिछ़डे, अक्लियतों के आंक़डों के बीच लालू-नीतिश की ज़ात का Equation अलग नहीं होगा और न ही कांग्रेस इससे इतर होगी।

लालू-नीतिश के ब़डप्पन, कांग्रेस-राहुल का असर , मुल्क में सियासी बयार, मोदी सरकार के लिए दिल्ली के बाद बिहार, बस देखना यही है कि वहां किसकी होगी सरकार।