बिहार में दिखने लगा एसेम्बली इंतिख़ाब का ट्रेलर

बीते सप्ताह पर गौर करें तो वह इस इंतिखाबी फिल्म का ट्रेलर जैसा था। क्लाइमेक्स तक बहुत कुछ देखने को मिलेगा। भाजपा को दिल्ली के ब्रेक को तोड़ने की बेचैनी है तो जदयू, राजद और कांग्रेस को उस ब्रेक को और पुख्ता करने की। बिहार और दिल्ली के इंतिख़ाब की अपनी-अपनी अहमियत है। दिल्ली ने बाहर से ललकारा था और बिहार ने अंदर से। जाहिर है, दिल्ली के बाद बिहार के इंतिख़ाब पर देश-दुनिया की नजरें टिकीं हैं।

लोकसभा इंतिखाब से पहले मुल्क में कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा था। उधर अन्ना तहरीक से उपजे अरविंद केजरीवाल ने सियासत में कदम रखा। आम आदमी की लहजे में सियासत को एक नया मोड देने की उनकी पहल रंग लाई और बहुत कम वक़्त में उन्होंने अपनी जगह बना ली। अपने पहले ही इंतिख़ाब में वह दिल्ली की सबसे बड़ी ताकत बन गए। लेकिन इसके बाद की उनकी दो गलतियों ने उन्हें एक जोर का झटका दिया। पहली गलती अगर कांग्रेस के हिमायत से हुकूमत बनाने की थी तो दूसरी उससे भी बड़ी पारी ठीक से शुरू करने से पहले ही हथियार डाल देना। इस वजह से उन्हें लोगों के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा। खैर, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बनारस में वह नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इंतिख़ाब में उतरे। लोकसभा इंतिख़ाब में नरेन्द्र मोदी की लहर को थामने की उनकी कोशिशें बेअसर रहीं। लेकिन केजरीवाल ने कम ही वक़्त में वापसी की और सियासत में बड़ी लकीर खींच दी। दिल्ली एसेम्बली इंतिख़ाब में 70 में 67 सीटें जीतकर तारीख रचा।

नरेन्द्र मोदी को वजीरे आजम ओहदे का उम्मीदवार बनाने की इमकानात को बिहार से चैलेंज मिली थी। एनडीए में रहते नीतीश कुमार ने इशारों में साफ कर दिया था कि अगर ऐसा हुआ तो वह इसे कुबूल नहीं करेंगे। इसी सवाल पर भाजपा से वह अलग भी हुए। लोकसभा इंतिख़ाब में बिहार में मोदी लहर को नहीं थाम पाए। कामयाबी नहीं मिलने के फौरन बाद इस्तीफा दे दिया। पार्टी की हार की जिम्मेवारी ली। लेकिन उनकी यह एक बड़ी गलती थी। इसका अहसास उन्हें भी हुआ और तब इक्तिदार की कमान फिर अपने हाथ में ली, लेकिन उस गलती ने एक नई चुनौती खड़ी कर दी। अब वक़्त असली इम्तिहान का है। इस इंतिख़ाब में तय होगा कि नरेन्द्र मोदी को पीएम ओहदे का उम्मीदवार बनाने के मुखालिफत में एनडीए से अलग होने का नीतीश कुमार का फैसला सही था या गलत?