जैसे-जैसे 2019 का आम चुना करीब आता जा रहा है, हर छोटा-बड़ा दल अपने लिए चुनावी समीकरण बनाने में जुट गया है। अभी से नए सहयोगी तलाशें जा रहे हैं तो पुराने सहयोगियों को कुछ दल अलविदा भी कह रहे हैं। इससे केंद्र सरकार के साथ कई राज्यों में सरकार चला रही एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) भी अछूता नहीं है।
उससे भी कई सहयोगी दल अलग हो चुके हैं। पीडीपी और टीडीपी से आधिकारिक रूप से अलगाव हो चुका है तो शिवसेना और जदयू जैसे दल उसे आंखें दिखा रहे हैं।
इसी क्रम में अब एक और नाम जुड़ गया है। त्रिपुरा में एनडीए की सहयोगी रही पार्टी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आइपीएफटी) ने अब घोषणा की है कि वह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा से अलग होकर रहेगी।
आइपीएफटी का कहना है कि भाजपा ने त्रिपुरा के दो लोकसभा सीटों के लिए नेताओं का नाम बिना उनकी सलाह-मशवरा के कर दिया। इसके बाद उन्हें मजबूरी में यह निर्णय लेना पड़ा।
जबकि भाजपा का यह दावा है कि उनका आइपीएफटी के साथ गठबंधन सिर्फ इस साल हुए विधानसभा चुनाव के लिए हुआ था। यह गठबंधन सिर्फ एक बार के लिए था। इसलिए ऐसा तो होना ही था।
ढाई दशक से जमे वाममोर्चा को हराया था इस गठबंधन ने
बता दें कि त्रिपुरा में भाजपा के नेतृत्व में बने एनडीए गठबंधन ने 25 साल से सत्ता पर काबिज वाममोर्चा के शासन को उखाड़ फेका था। इसमें आइपीएफटी की अहम भूमिका रही थी। उसने राज्य में पहली बार मिलकर चुनाव लड़ा था।
यहां यह भी बता दें कि यह साल गठबंधन के लिहाज से भाजपा के लिए अच्छा नहीं रहा है। तेलुगु देशम पार्टी पहले ही भाजपानीत एनडीए गठबंधन से अलग हो चुकी है तो शिवसेना ने भी 2019 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर दी है।
इसके अलावा भाजपा जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा गठबंधन की सरकार से भारतीय जनता पार्टी ने खुद को अलग कर लिया। इस कारण वहां राज्यपाल शासन लग गया है।
इतना ही नहीं, भाजपा के कई सहयोगी दल उसे आंखें भी दिखा रहे हैं। इसमें बिहार में भाजपा के सहयोग से चल रही जदयू का नाम सबसे ऊपर है।