बीजेपी को शरीया अदालत से समस्या है तो मुसलमानों को अकेला छोड़ देना चाहिए- कश्मीरी के डिप्टी ग्रैंड मुफ्ती

ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड (AIMPLB) की ओर से देश में हर जिले में शरिया अदालतें (दारुल कजा) खोलने की योजना पर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है। AIMPLB के इस कदम का बीजेपी जहां विरोध कर रही है, वहीं जम्मू-कश्मीर के डिप्टी ग्रैंड मुफ्ती नासिर-उल-इस्लाम ने शरिया अदालत के बहाने विभाजन का राग अलाप दिया है।

मुफ्ती ने कहा कि बीजेपी को देश में शरिया अदालतों से समस्या है तो हमें (मुस्लिमों) को अकेला छोड़ देना चाहिए। डिप्टी ग्रैंड मुफ्ती नासिर-उल-इस्लाम जम्मू-कश्मीर शरिया कोर्ट के उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने देश के सभी जिलों में AIMPLB द्वारा शरिया कोर्ट के विस्तार किए जाने का समर्थन किया है।

मुफ्ती ने कहा कि अगर बीजेपी को हमारी धार्मिक प्रक्टिस से समस्या है, तो उन्हें हमें अकेला छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में करीब 20 करोड़ मुस्लिम आबादी है, जिन्हें धार्मिक प्रैक्टिस और विश्वास को मानने से रोका नहीं जा सकता है।

मुफ्ती नासिर ने कहा कि हमें धार्मिक आजादी से रोका गया तो फिर भारत के मुसलमानों को 1947 जैसे देश के विभाजन के लिए सोचना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपने लिए अलग राष्ट्र बनाने के बारे में सोचें।

देश में हर जिले में शरिया अदालतों के विस्तार पर बीजेपी प्रवक्‍ता मीनाक्षी लेखी ने कहा था ‘आप धार्मिक मामलों पर चर्चा कर सकते हैं लेकिन इस देश में न्‍यायपालिका का महत्‍व है। देश के गांवों और जिलों में शरिया अदालतों का कोई स्‍थान नहीं है। देश की अदालतें कानून के अंतर्गत कार्य करती हैं. हमारा देश इस्‍लामिक रिपब्लिक ऑफ इंडिया नहीं है।

बता दें कि AIMPLB ने पूरे देश में शरिया अदालतों का विस्तार करने की योजना बनाई है। इस संबंध में 15 जुलाई को दिल्ली में होने वाली बोर्ड की बैठक में शरिया अदालतों के प्रस्ताव पर चर्चा की जाएगी।

बोर्ड की इस महत्वपूर्ण बैठक में वकीलों, न्यायाधीशों और आम लोगों को शरिया कानून की रूप रेखा के बारे में बताने वाले कार्यक्रमों का सिलसिला तेज करने पर विचार-विमर्श करेगा। जबकि ये बैठक पहले लखनऊ में होने वाली थी।

ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड के सदस्‍य जफरयाब जिलानी ने कहा था कि हम इन्‍हें शरिया अदालत नहीं कहते। ये दारुल कजा हैं। इनमें काजी लोगों के वैवाहिक मतभेद और झगड़े सुलझाए जाते हैं और अगर मामले का निपटारा नहीं हो पाता तो अलग होने के रास्‍ते सुझाते हैं।

साभार- ‘आज तक’