बीवी का हक पाने के लिए बीवी जैसा दिखना होगा

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिए अपने फैसले में कहा है कि वह खातून जो किसी शादीशुदा मर्द के साथ रहती है, वह किसी भी गुजारे-भत्ते के लिए हकदार नहीं है। रिलेशनशिप में रहने वाली खातून डीवी एक्ट (डोमेस्टिक वायलेशन एक्ट) के तहत महफूज़ नहीं है। शादीशुदा मर्द और खातून अगर साथ रह रहे हों और लिव इन रिलेशनशिप की तरह रह रहे हों तो वह रिलेशन मैरिज नेचर का रिलेशन नहीं माना जाएगा। इस मुल्क में सामाजी तौर पर लिव इन रिलेशनशिप नाकाबिल ए कुबूल है। हालांकि शादी करना, न करना और लिव इन में रहना ज़ाती मामला है।

कई मुल्को ने इसे तस्लीम करना शुरू कर दिया है। इस मामले में कानून बनाए जाने की जरूरत है। पार्लियामेंट को इस तरह की ख्वातीन और बच्चों को प्रोटेक्ट करने के लिए कानून बनाने पर गौर करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में लिव-इन रिलेशंस के बारे में कहा कि ऐसे रिश्ते निभा रही ख्वातीन कुछ पैरामीटर/ पैमाने को पूरा करने के हालात में ही गुजारा भत्ता की हकदार हो सकती हैं। गुजारा भत्ता लेने के लिए लिव-इन रिलेशन में रह रही ख्वातीन को चार शर्तें पूरी करनी होंगी-

मर्द‍ औरत को समाज के सामने खुद को शौहर बीवी की तरह पेश करना होगा, दोनों की उम्र कानून के मुताबिक शादी के लायक हो, वे दोनों शादी करने के काबिल हों जिनमें कुँवारा होना शामिल है और वे अपनी मर्जी से साथ रह रहे हों और दुनिया के सामने तवील मुद्दत तक खुद को शरीक ए हयात के तौर पर दिखाएं।

कानूनी जानकार डीबी गोस्वामी के मुताबिक जजमेंट से साफ है कि बीवी जैसा हुकूक लेने के लिए बीवी जैसा दिखना होगा। कपल अगर एक-दूसरे के साथ शौहर बीवी की तरह रहें और इस बात को छुपाएं नहीं और तमाम तकरीबात में शौहर बीवी की तरह नजर आएं तो यकीनी तौर पर वह डोमेस्टिक रिलेशन के दायरे में होंगे। रिलेशनशिप में रहने वालीख्वातीन को डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत प्रोटेक्ट किया गया है। ख्वातीन को टार्चर से बचाने के लिए अलग से घरेलू तशद्दुद का कानून (Domestic Violence Act) बनाया गया।

इस कानून के तहत ख्वातीन को सेक्युरिटी मिलती है, साथ ही वे इस एक्ट के दफा/ शराईत के तहत गुजारा भत्ता भी मांग सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ वीकेंड में एक-दूसरे के साथ समय गुजारने या फिर रात गुजारने भर को डोमेस्टिक रिलेशन नहीं कहा जा सकता और ऐसी ख्वातीन गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट रेखा अग्रवाल बताती हैं कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली ख्वातीन को डीवी एक्ट के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है यानी डीवी एक्ट के शराइत (Provisions) के तहत उन्हें मुआवजा वगैरह मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से साफ है कि हुकूमत को एक्ट में इस बारे में साफ तौर पर जिक्र करना चाहिए ताकि इस तरह की ख्वातीन और बच्चों को प्रोटेक्शन मिल सके। जहां तक बच्चों का सवाल है तो नाजाय्ज़ औलाद को वालिद की ज़ायदाद में हक मिल सकता है। अगर वालिद ने वसीयत न किया हो, तो वालिद की मौत के बाद उसे वालिद की ज़ायदाद में हक मिलता है और यह हक ज़ायज़ औलाद के बराबर होता है।

लेकिन पुश्तैनी ज़ायदाद में हक दिए जाने के बारे में अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में ज़ेर ए गौर है। डी. बी. गोस्वामी का कहना है कि मौजूदा कानून (सीआरपीसी की दफा -125) के मुताबिक चाहे औलाद ज़ाय्ज़ हो नाज़ायज़ , दोनों ही हालात में वह गुजारा भत्ता पाने का हकदार है।