मध्यप्रदेश में बीजेपी पार्टी के उम्मीदवारों की फहरिस्त में एक नाम चौंकाने वाला है। भोपाल उत्तर असेम्बली सीट से आरिफ बेग को उम्मीदवार बनाया गया है। बीस साल बाद बीजेपी ने किसी मुस्लिम को असेम्बली सीट के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है।
क्या बेग की उम्मीदवारी मुसलमानों के लिए बीजेपी के बदलते नजरिए की अलामत है? मध्यप्रदेश में मुस्लिम वोटर तकरीबन सात फीसदी हैं और बीजेपी भी इनमें अपनी हिस्सेदारी चाहती है। लेकिन बीजेपी की तरफ से मुसलमानों का मन बदलने में शक ज्यादा है।
आरिफ बेग को एक मुस्लिम अक्सरियत सीट से टिकट दिया गया है। पिछले तीन इलेक्शन से यह सीट कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार की झोली में जा रही है।
साबिक ओलम्पियन और कांग्रेस से एमपी रहे असलम शेर खान कहते हैं कि, “बीजेपी ने खानापूरी के लिए यह सीट मुस्लिम लीडर को दी है। शुमाली भोपाल रिवायती तौर पर मुस्लिम सीट है। बीजेपी यहां कभी जीत नहीं पाती इसलिए अपने उपर मुस्लिम मुखालिफ होने के इल्जाम से छुटकारा पाने के लिए एक मुसलमान को टिकट दे दिया गया है। हालांकि इससे कोई फर्क नहीं पडेगा।”
मध्यप्रदेश में तकरीबन सात फीसदी मुसलमान हैं। रियासत में 22 असेम्बली सीटें मुस्लिम अक्सरियत वाले हैं लेकिन मध्य प्रदेश असेम्बली के 230 MLAs में सिर्फ एक ही मुसलमान है। साल 1993 में तो एक भी मुसलमान असेम्बली नहीं पहुंच सका था।
बीजेपी ने भी 1993 में आखिरी मरतबा किसी मुस्लिम लीडर को टिकट दिया था। तब बीजेपी के हामियों ने एक निर्दलीय को वोट दिए थे और बीजेपी के मुसलमान उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई थी। अब बीस साल बाद एक बार फिर बीजेपी अपने बीते जमाने के कद्दावर लीडर को कांग्रेस के मजबूत लीडर के सामने उतारने का जोखिम उठा रही है।
बीजेपी अक्लियती मोर्चा के सदर हिदायतउल्ला शेख कहते है, “मज़हब और ज़ाति की बुनियाद पर टिकट बाट कर कांग्रेस ने बडा नुकसान किया है। मध्यप्रदेश की तमाम मुस्लिम अक्सरियत सीटों से एमएलए बीजेपी के हैं।”
शेख कहते हैं, ”आरिफ बेग को इसलिए टिकट नहीं दिया गया कि वे मुसलमान है, बल्कि इसलिए दिया गया है क्योंकि वे मज़बूत उम्मीदवार हैं। नाम के लिए ही देना होता तो किसी को भी दे देते।”
मध्यप्रदेश के वज़ीर ए आला शिवराज सिंह चौहान ने सेक्युलर शबीया बनाने की कोशिश की है। शिवराज की शबिया के दम पर ही बीजेपी को मुस्लिम वोट हासिल करने की उम्मीद है। शिवराज गुजरात के वज़ीर ए आला नरेन्द्र मोदी के मुकाबले वे पार्टी का एक नरम चेहरा हैं। वे ईद के दिन मुस्लिम टोपी पहनकर मुसलमानों को गले लगाते हैं, रमजान महीने में अपने घर पर मुसलमानों को इफ्तार की दावत भी देते हैं।
बीजेपी के तर्जुमान गोविन्द मालू शिवराज सिंह चौहान के पहले कांग्रेसी वज़ीर ए आला दिग्विजय सिंह से भी ज्यादा मुस्लिम हमदर्द होने का दावा करते हैं।
वे कहते हैं, ”भोपाल में हज हाउस की संग ए बुनियाद रखना, उर्दू युनिवर्सिटी के लिए जमीन अलाटमेंट, मुस्लिम लडकियों को मुख्यमंत्री कन्यादान स्कीम का फायदा देना, हजारो मुस्लिम बुजुर्गों को अजमेर शरीफ भेजना सब शिवराज की हुकूमत ने किया।”
सामाजी कारकुन रहमत इन सब कामों को दिखावटी मानते हैं। वे कहते हैं, ”अगर बीजेपी सचमुच में मुसलमानों की हमदर्द है तो सच्चर कमेटी की सिफारिशो को लागू करने में क्या दिक्कत है।”
हाल ही में शिवराज सरकार ने एक इश्तेहार शाय किया था जिसमें दिग्विजय हुकूमत और शिवराज हुकूमत के मुकाबले वाले एक इश्तेहार में बताया गया था कि दोनों हुकूमत के दौरान अक्लीयती बहबूद पर कितना पैसा खर्च हुआ।
इस इश्तेहार पर तब्सिरा करते हुए रहमत कहते हैं, ”दिग्विजय सिंह की हुकूमत के वक्त अक्लीयती बहबूद के मद में पहले 20 लाख रूपए खर्च होना बताया गया जो शिवराज सिंह के मुद्दत में बढकर दो करोड हो गए। इश्तेहार में इसे दस गुना बढना बताया गया लेकिन दो करोड की रकम में इतने अक्लीयतों का भला कैसे मुम्किन है।”
बीजेपी ने बीस साल बाद एक बार फिर भले ही किसी मुसलमान को टिकट दिया हो लेकिन सवाल यही है कि क्या मध्यप्रदेश के मुसलमानों का एक हिस्सा भाजपा के साथ खडा हो पाएगा? असलम शेर खान ऐसा होना मुश्किल मानते हैं।
वे कहते हैं, “शिवराज से एक बार दिक्कत नहीं होगी, लेकिन उस नज़रिया का क्या होगा जो बीजेपी को आरएसएस से विरासत में मिली है। इसलिए लगता नहीं कि मुसलमान कभी बीजेपी का साथ देंगे।”
इसी सवाल पर रहमत कहते हैं, ”मुसलमानों के बीजेपी के साथ होने की कोई उम्मीद नहीं है। मुसलमानों को बीजेपी में शिवराज का नहीं बल्कि मोदी और आडवाणी का चेहरा दिखता है।”
———-बशुक्रिया: अमर उजाला