श्रीलंका में हुए आतंकी हमले के बाद वहां सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर बुरका पहनने पर पाबंदी लगा दी है। भारत में भी इस पर प्रतिक्रया हुई है। शिवसेना समेत कई हिंदूवादी संगठनों ने बुरका पहनने पर पाबंदी लगाने की मांग की है।
लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली बताते हैं कि इस्लाम में बुरका नहीं, बल्कि पर्दा बताया गया है। कोई इसको चादर ओढ़ कर भी कर सकता है।
यह इस पर भी निर्भर करता है कि किसी के लिए चेहरा ढ़क जाये तभी पर्दा है कुछ लोग बिना चेहरा ढंके भी पर्दा कर लेते हैं। उनका कहना है, इस्लाम में साफ कहा गया है कि औरतें जब बाहर निकलें, तो चेहरा ढंक कर और सभ्य कपड़े पहन कर निकलें। वहीं मर्दों के लिए भी कहा गया है कि वे अपनी नजरें नीची रखें और किसी पर गलत नजर ना रखें।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद के अनुसार, “बुरका कब भारत में आया, यह कहना सटीक तौर पर मुश्किल है लेकिन खुद को ढंकने के लिए इस प्रकार का ढ़ीला कपड़ा पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पहले मध्य एशिया में मौजूद था। इसके अलावा घूंघट जो कि एक तरह की पर्दा प्रथा है और राजस्थान में सर्वाधिक है लेकिन कोई मुस्लिम शासक उस रास्ते से नहीं आया था।
समय समय पर बुरके को लेकर राजनीती होती रहती है. श्रीलंका हादसे के बाद शिवसेना के मुखपत्र सामना में इसके समर्थन में आलेख लिखा गया। ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करके लिखा, “ऐसे लोग घूंघट हटाने के बारे में क्या कहेंगे? इस पर प्रतिबंध कब लगेगा? कल को कहेंगे कि आपके चेहरे पर दाढ़ी ठीक नहीं है, टोपी मत पहनिए।
जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने लिखा, बुर्के पर प्रतिबंध का आहवान इस्लामोफोबिया की लपटों को बढ़ा देगा। यह मुस्लिम महिलाओं को देखने के नजरिए को भी प्रभावित करेगा। सुरक्षा के मुद्दे पर समीक्षा को छोड़ कर अब यह बहस हस हिंदू और मुस्लिम के फर्क की हो गई है।
साभार – डी डब्ल्यू हिन्दी