बेक़सूर नौजवानों की रिहाई का ऐलान

चीफ मिनिस्टर उत्तरप्रदेश मिस्टर अखीलेश सिंह यादव ने गुज़शता दिनों ऐलान किया था कि वो उत्तर प्रदेश में दहशतगर्दी और बम धमाकों के झूटे मुक़द्दमात में फांसे गए मुस्लिम नौजवानों को जल्द रिहा करने की कोशिशें करेंगे । समाजवादी पार्टी ने असेंबली इंतेख़ाबात से क़ब्ल अपने इंतेख़ाबी मंशूर में वायदा किया था कि जो नौजवान दहश्तगर्दी और बम धमाकों के झूटे मुक़द्दमात में फांसे गए हैं उन्हें रिहा कर दिया जाएगा।

इसी ऐलान को मिस्टर यादव ने अयोध्या और फ़ैज़ाबाद शहरों के दौरा के मौक़ा पर दुहराया और कहा कि इन की हुकूमत अपने इंतेख़ाबी वादों को पूरा करने के अह्द की पाबंद है । इस सिलसिला में महिकमा क़ानून से राय तलब की जा रही है और इस के बाद मुनासिब इक़दामात किए जाएंगे । मिस्टर अखीलेश सिंह यादव का ये ऐलान मुसलमानों में इंसाफ़ मिलने की एक उम्मीद पैदा करने का वजह बना है ताहम ऐसा लगता है कि इस पर भी सियासत शुरू हो गई है ।

यही वजह है कि किसी और गोशा से नहीं बल्कि मुल्क के वज़ीर दाख़िला मिस्टर पी चिदम़्बरम ने इस पर अपना रद्द-ए-अमल ज़ाहिर करना ज़रूरी समझा और उन्हों ने वाज़िह किया कि मुश्तबा दहश्तगर्दों के ताल्लुक़ से इस तरह के फैसले करने से गुरेज़ करना चाहीए क्योंकि इस से दाख़िली सलामती को संगीन ख़तरात लाहक़ होते हैं ।

ये मिस्टर पी चिदम़्बरम के ज़हनी तास्सुब और तंग नज़रिया को ज़ाहिर करने के लिए काफ़ी है । ऐसे वक़्त में जबकि सारे मुल्क में मुसलमानों के साथ हो रही नाइंसाफ़ीयों और उन्हें झूटे मुक़द्दमात में फांसे जाने की शिकायत आम हो गई है अगर एक रियासत में मुस्लिम नौजवानों के साथ इंसाफ़ की बात की जाती है तो फिर मुल्क के वज़ीर दाख़िला परेशान हो उठते हैं ।

ये एक अफ़सोसनाक सूरत-ए-हाल है । ये बात ज़हन नशीन रखनी चाहीए कि चीफ मिनिस्टर उत्तर प्रदेश ने भी जो ऐलान किया था वो यही था कि झूटे मुक़द्दमात में फांसे गए नौजवानों को रिहा जाएगा । उन्होंने ये नहीं कहा था कि जो नौजवान वाक़ई इस तरह की हरकतों में मुलव्वस हैं उन्हें भी रिहा किया जाएगा ।

झूटे मुक़द्दमात में फांसे गए नौजवानों की रिहाई के ऐलान पर इस तरह का रद्द-ए-अमल ज़ाहिर करना मुल्क के वज़ीर दाख़िला के लिए इंतिहाई गैर ज़िम्मादाराना इक़दाम है क्योंकि किसी दहश्तगर्द या धमाकों में मुलव्वस नौजवान की रिहाई का ऐलान नहीं किया गया था ।

हिंदूस्तान के कई शहरों में बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों पर दहश्तगर्दी और बम धमाकों के इल्ज़ामात आइद किए गए थे । सैंकड़ों बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों की ज़िंदगियां उजाड़ दी गयी। उन्हें आज ना कोई रोज़गार है और ना किसी कारोबार के लिए उन की मदद की जाती है । महिज़ तास्सुब की वजह से उन नौजवानों का मुस्तक़बिल तारीक कर दिया गया ।

इसकी मिसाल हैदराबाद के मक्का मस्जिद बम धमाकों के बाद की है । इन धमाकों के बाद मुस्लिम नौजवानों ही के सिरों पर इल्ज़ाम थोपते हुए उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया । गिरफ़्तारी के बा ज़ाब्ता ऐलान से क़ब्ल उन्हें गैर इंसानी अज़ियतें दी गयी।

फिर इन पर झूटे मुक़द्दमात दर्ज करते हुए उन्हें जेल भेज दिया गया । ताहम इन नौजवानों को अदालत की जानिब से बरी कर दिया गया और हुकूमत उन्हें मुआवज़ा देने और सदाक़त नामा किरदार देने पर मजबूर हो गयी । ये एक ही मिसाल नहीं है । ऐसी मिसालें और भी हैं जहां बेक़सूर नौजवानों की ज़िन्दगियों को अजीर्ण कर दिया गया है ।

दिल्ली के बाटला हाउस एंकाउंटर पर हनूज़ शकूक पाए जाते हैं जहां उन नौजवानों को ना सिर्फ दहश्तगर्द क़रार देने की कोशिश की जा रही है बल्कि उन्हें मौत के घाट भी उतार दिया गया है । इस एंकाउंटर पर कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी डिग विजय सिंह ख़ुद शकूक रखते हैं। इन मिसालों को अगर सामने रखते हुए अगर चीफ मिनिस्टर उत्तर प्रदेश मिस्टर अखीलेश सिंह यादव ने बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों की रिहाई की कोशिशें शुरू की हैं तो उन का ख़ैर मुक़द्दम करना चाहीए था इसके बरख़िलाफ़ इस इक़दाम को दाख़िली सलामती के लिए मसला क़रार देना तंगनज़री और तास्सुब की मिसाल है ।

बेक़सूर अफ्राद को इंसाफ़ दिलाना और दाख़िली सलामती को यक़ीनी बनाना दोनों ही काम वज़ीर दाख़िला की ज़िम्मेदारी हैं और वज़ीर दाख़िला एक ज़िम्मेदारी की तो पूरी शुद-ओ-मद के साथ वकालत करते हैं लेकिन दूसरी ज़िम्मेदारी को सिरे हाँ नज़रअंदाज करते हैं जो उन के ओहदा के लिए क़तई मुनासिब नहीं है ।

वज़ीर दाख़िला ने चीफ मिनिस्टर उत्तर प्रदेश के इक़दाम को बिलवास्ता तौर पर मुस्लिम ख़ुशामद पसंदी से ताबीर करने की कोशिश की है । हैरत की बात ये है कि ये ज़बान आज तक बी जे पी और इसकी हम कबील तनज़ीमें इस्तेमाल करती थीं लेकिन अब वज़ीर दाख़िला भी बिलवास्ता तौर पर इसी ज़बान का इस्तेमाल करने लगे हैं।

एक तरफ़ तो किसी बैरूनी स्याह और रुकन असेंबली की रिहाई के इव्ज़ दर्जनों माविस्टों को रिहा करने के फैसले होते हैं जिन में ख़तरनाक माविस्ट भी शामिल हैं । इस पर वज़ीर दाख़िला का कोई ब्यान सामने नहीं आता लेकिन अगर मुल़्क की एक रियासत में बेक़सूर और झूटे मुक़द्दमात में फांसे गए नौजवानों को रिहा करने का ऐलान किया जाता है तो इस पर फ़ौरी ब्यान जारी कर दिया जाता है और दाख़िले सलामती की दुहाई दी जाती है ।

यक़ीनी तौर पर मुल़्क की दाख़िली सलामती अहमियत की हामिल है और पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि कोई मुसलमान हिंदूस्तान की दाख़िली सलामती को मुतास्सिर करने का सोच भी नहीं सकता । इन्साफ़ रसानी की कोशिशों को इस तरह से मुतास्सिर करने की कोशिशें दुरुस्त नहीं हैं । हुकूमत यू पी ने जो कुछ करना है वो क़ानून की मुताबिक़त में ही करना है इसलिए बेजा तन्क़ीदों से गुरेज़ करना चाहीए ताकि मुतासरीन को इंसाफ़ मिल सके ।