वो रुलाकर हँस न पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भूलना चाहा कभी उस को अगर
और भी वो याद आया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर
धूप रहती है ना साया देर तक
ना खलफ बेटे तो दर्दे सर बने
बेटियों ने सर दबाया देर तक
चुपके चुपके मेरी ग़ज़लों को नवाज़
दुष्मनों ने गुनगुनाया देर तक