बेटे की चाहत में भारत में पैदा हुई 21 लाख ‘अवांछित’ बेटियां : आर्थिक सर्वेक्षण 2018

नई दिल्ली : देश में महिला सशक्तिकरण को आगे बढ़ने के लिए संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली गुलाबी रंग में थे. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आर्थिक सर्वेक्षण की जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें आर्थिक स्थिरता को लेकर दिए गए सुझावों के अलावा एक चौंकाने वाला आंकडा भी सामने आया है। लेकिन सर्वेक्षण में चिंता का तथ्य भी सामने आया है कि बेटों की अब भी प्रचलित वरीयताओं ने कई अवांछित लड़कियों को जन्म दिया है। इस तरह की अवांछित लड़कियों की संख्या 21 लाख है।

सर्वेक्षण इंगित करता है कि जब महिलाओं की एजेंसी, दृष्टिकोण और परिणामों की बात आती है, तो पिछले 10 से 15 वर्षों में भारत का प्रदर्शन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, लेकिन जब यह रोजगार के मुद्दों, प्रतिवर्ती गर्भनिरोधक और बेटे की प्राथमिकता की बात आती है तो इसका इस रूप में कार्य करने में भारत विफल रहा है.

सर्वे के अनुसार यह अनुमानित आंकड़ा उन लड़कियों का है, जो बेटे की चाह के बावजूद पैदा हुई हैं या जब अभिभावकों ने अपनी इच्छा के अनुसार बेटों की संख्या होने पर बच्चा पैदा नहीं करना चाहा था। यही नहीं 6.3 करोड़ गायब बेटियों का आंकड़ा भी इकॉनमिक सर्वे में दिया गया है। कहने का अर्थ यह है कि गर्भ में बेटी होने के कारण 6.3 करोड़ भ्रूण हत्या कराए गए। हर साल करीब 20 लाख ऐसी बेटियां गायब हो जाती हैं। इकनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि देश के कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत है।

सर्वे में बताया गया है कि देश में करीब 2.1 करोड़ अवांछित लड़कियां हैं, यानी कि पुत्र मोह में इन्हें पैदा किया गया। सर्वेक्षण में लैंगिक असमानता को खत्म करने और महिलाओं के विकास की बात कही गई। इसमें कहा गया है कि जिस तरह की प्रगति भारत ने कारोबार सुगमता की रैंकिंग में की है, वैसी ही प्रतिबद्धता उसे स्त्री-पुरुष समानता के स्तर पर दिखानी चाहिए।

इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, लडक़े पैदा करने के लिए ट्राई करने के मामले या लिंग अनुपात के मामले में पंजाब और हरियाणा की स्थिति सबसे खस्ता है। यहां लिंग अनुपात 1000 लड़कियों पर 1200 लडक़े के आसपास है। गर्भपात और लडक़ा होने पर संतान बंद कर देने की वजह इन राज्यों में लिंग अनुपात में इतना बड़ा फर्क है। यहां लगभग हर मां-बाप लडक़े के लिए ट्राई करता है।

देश की वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 2005-06 में 36 पर्सेंट थी, जो 2015-16 में घटकर 24 पर्सेंट रह गई। सर्वे में कहा गया है कि शिक्षा और रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाना महत्वपूर्ण है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और सुकन्या समृद्धि जैसी सरकार की प्रमुख योजनाओं के साथ ही सरकारी और निजी क्षेत्र में कार्य करने वाली महिलाओं को मातृत्व के लिए 26 सप्ताह का अवकाश देना और 50 से अधिक एंप्लॉयीज वाली फर्मों में क्रेच की सुविधा अनिवार्य करना इस दिशा में उठाए गए कदम हैं।

सर्वे में ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बदलाव के लिए महिलाओं की भागीदारी के साथ एक ऐग्रिकल्चरल पॉलिसी लाने का भी सुझाव दिया गया है। इसका मकसद महिला किसानों को कर्ज, टेक्नॉलजी और ट्रेनिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना है। सर्वे में कहा गया है कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए महिलाओं किसानों को सशक्त बनाना महत्वपूर्ण होगा। इसके साथ ही इसमें बताया गया है कि कृषि क्षेत्र से जुड़े कार्यों में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है।

सर्वे में भारत और चीन के 1970 और 2014 के आंकड़े दिखाए गए हैं। इसके मुताबिक, जन्म पर लिंग अनुपात 1 लडक़ी पर 1.05 लडक़ा है। चीन में 1970 में जन्म पर लिंग अनुपात 1.070 था। वहीं, 2014 में यह 1.156 हो गया। भारत के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। 1970 में जन्म लिंग अनुपात 1.060 था जो 2014 में बढक़र 1.108 हो गया।

सर्वेक्षण के मुताबिक इन घृणित श्रेणियों को जल्दी ही खत्म करना समाज का उद्देश्य होना चाहिए। सर्वेक्षण में कहा गया है कि पुरुष के लए लिंग में प्राथमिकता कई कारकों से उत्पन्न होती है, जैसे कि महिला रोजगार, गर्भनिरोधक की पसंद, शिक्षा का स्तर, उम्र में विवाह, और भारत में पुरूषों द्वारा महिलाओं की शारीरिक और यौन हिंसा का अनुभव महत्पवुर्ण है।