पश्चिम बंगाल: देश की रक्षा के लिए हर वक़्त अपनी जान हथेली पर लिए घुमते देश के वीर जवानों के परिवार किस तरह की परिस्तिथियों में अपनी ज़िन्दगी गुजारते हैं इसका उदारण उरी में शहीद गंगाधर दोलुर्इ की अंतिम यात्रा से बयां होता है। गरीबी और तंगहाली में अपना सारा जीवन बिता चुके शहीद गंगाधर के पिता आेंकारनाथ दोलुर्इ को जब बेटे के शहीद होने की खबर मिली तो उनके ऊपर तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। एक तो बेटे के न रहने का गम और दूसरा उसकी चिता को आग देने के लिए लकड़ियां जुटा पाने तक के पैसे न होने का दर्द। ऐसे वक़्त में बेटे की अंतिम यात्रा के लिए पड़ोसियों ने मदद का हाथ बढ़ाते हुए शहीद गंगाधर के पिता को दस हजार रुपए इकठ्ठा कर दिए ताकि देश के लिए जान कुर्बान करने वाले गंगाधर की चिता को आग दी जा सके।
ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ से शहीद के परिवार को कोई आर्थिक सहायता देने की घोषणा नहीं की गई हो। बंगाल की सरकार ने शहीद गंगाधर के परिजनों को आर्थिक सहायता के नाम पर दो लाख रुपए आैर बढ़ा दिया। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने की आर्थिक सहायता आैर परिवार के एक सदस्य को होमगार्ड की नौकरी देने की घोषणा की है लेकिन गंगाधर के परिवार ने इस सहायता की लेने से साफ़ इनकार कर दिया है।
परिवार का कहना है कि देश पर जान न्यौछावर करने वाले देश के सिपाही के लिए इतनी कम आर्थिक सहायता उस शहीद की शहादत का अपमान है। परिवार का कहना है कि इतनी राशि की पेशकश तो जहरीली शराब पीकर मरने वालों के परिवारों को भी की गर्इ थी। क्या सरकार शहादत को भी जहरीली शराब पीने की वजह से हुई मौतों के बराबर आँकती है?