इंग्लैंड में कुछ संजीदा गैर-मुस्लिम औरतें 01 फरवरी को दुनिया भर में पहली बार मनाए जा रहे ‘वर्ल्ड हिजाब डे’ के मौके पर यह समझने की कोशिश में हैं कि रिवायती तौर से पहने जाने वाले हिजाब के साये से दुनिया कैसी लगती है।
एक सवाल यह भी है कि क्या ऐसी कोशिशें मज़हबी रवादारी और समझदारी के जज़बातों को बढ़ा सकती हैं। हिजाब या बुर्के को लेकर सबके अपने अपने तजुर्बे।
इंग्लैंड के नॉर्विक की जेस रोड्स महज 21 साल की हैं। वह हमेशा से सिर पर स्कार्फ पहनना चाहती थीं लेकिन मुसलमान न होने की वजह से यह मुश्किल था। लेकिन जब एक दोस्त ने उन्हें हिजाब पहनने का मौका दिया तो जेस ने कोशिश की।
अपने तजुर्बे के बारे में जेस कहती हैं, “क्योंकि मैं बहुत हुनरमंद नहीं हूं पर मैंने जो पहन रखा है, आप उसे हिजाब कह सकते हैं और उसे अपने सिर के ऊपर रख सकते हैं। मैंने पाया कि इसे कई तरीकों से पहना जा सकता है।”
जेस ने अपनी दोस्त के बारे में कहा, “उसने मुझे भरोसा दिलाया कि हिजाब पहनने के लिए मुसलमान होना जरूरी नहीं है। बेशक इसे इस्लाम से जोड़ा जाता है यह शर्म और लिहाज की निशानी है। मुझे लगा कि इसे क्यों न पहनूं।”
जेस उन सैंकड़ों गैर-मुस्लिम ख्वातीनो में से एक हैं जो एक फरवरी को दुनिया भर में पहली बार मनाए जा रहे ‘वर्ल्ड हिजाब डे’ के मौके पर हिजाब पहनेंगी।
इस मुहिम को चलाने वाली न्यूयॉर्क की नजमा खान ने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर लोगों ने खूब सराहा है। 50 से भी ज्यादा मुल्कों की मुस्लिम और गैरमुस्लिम ख्वातीनो ने इस प्रोग्राम में अपनी दिलचस्पी जाहिर की है।
बांग्लादेश से महज 11 साल की उम्र में न्यूयॉर्क आ बसने वाली नजमा खान कहती हैं, “ब्रॉन्क्स में बड़े होने के दौरान मैंने कई बार अपने हिजाब की वजह से भेद-भाव का सामना किया”।
नजमा अपने स्कूल में हिजाब पहनने वाली इकलौती लड़की थीं और हिजाबी नाम से पुकारी जाती थीं।
नजमा कहती हैं, “मिडिल स्कूल में मुझे निंजा या बैटमैन कहा जाता था। सितंबर 11 के बाद जब मैं कॉलेज पहुंची तो वे मुझे ओसामा बिन लादेन या दहशतगर्द कहने लगे। यह बहुत तकलीफदेह था।”
उन्होंने कहा, “इस भेद-भाव को खत्म करने का मुझे यही जरिया लगा कि मैं अपनी साथी बहनों को इसे पहनने के लिए कहूं ताकि वे खुद महसूस कर सकें।” नजमा को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि उनके ख्याल को दुनिया भर में इतनी सराहना मिलेगी।
महीने भर तक हिजाब पहनने के जेस के फैसले पर उनके घर वालो ने हैरत जाहिर किया था। जेस ने बताया, “वे फिक्रमंद थे कि लोग मुझ पर हमला कर सकते हैं।”
रोड्स भी शुरुआत में हिचक रही थीं लेकिन आठ दिन तक इसे आजमाने के बाद उन्होंने मुसबत बदलाव महसूस किया।
वह कहती हैं, “मैं बता नहीं सकती कि लोग किस तरह से मदद करते हैं, खासकर दुकानों में।” वर्ल्ड हिजाब डे के आर्गेनाइजर का कहना है कि वे हिजाब को दमन का निशान करार दिए जाने से उन्हे ठेस पहुंची हैं।
वे इस बात से भी इनकार करती हैं कि औरतें घर के मर्दो के दबाव में ही हिजाब पहनती हैं। यह दिन इसलिए मनाया जा रहा है ताकि लोग यह समझ सकें कि कोई अपनी खुशी से भी हिजाब पहन सकती है।
जेस कहती हैं कि हिजाब उन्होंने खुद चुना है और वे इसे जारी रखेंगी।