बे-जा इसराफ़ वाली शादीयों में शिरकत ना करने ज़ाहिद अली ख़ां का एलान

हैदराबाद 21 जुलाई : शादीयों में बे-जा इसराफ़ , घोड़े, जोड़े की लानत और बे-जा रसूमात के नतीजे में हज़ारों लड़कीयां शादी के इंतेज़ार में बूढ़ी हो रही हैं। सबसे ज़्यादा ग़रीब और मुतवस्सित तबक़ा मुतास्सिर हो रहा है। एसे बेशुमार घराने हैं जहां ग़ुर्बत ने डेरा जमाया हुआ है। एसे में ज़ईफ़ माँ बाप अपनी बेटीयों की शादी की फ़िकरों में ग़र्क़ हो कर मौत की आग़ोश में पहुंच रहे हैं।

मिल्लत में जहां बे-जा इसराफ़ और लेन-देन की लानत ने ज़ोर पकड़ा है वहीं हम तालीमी-ओ-मआशी लिहाज़ से भी इंतेहाई कमज़ोर हैं। शादीयों में झूटी शान-ओ-शौकत के इज़हार की ख़ातिर लोग सोदी क़र्ज़ के जाल में फँसते जा रहे हैं इन हालात में एक फ़िक्रमंद मुस्लमान का ये फ़र्ज़ बनता है कि वो मिल्लत में फ़रोग़ पा चुके इस ख़तरनाक रुजहान के ख़िलाफ़ ना सिर्फ आवाज़ उठाए बल्के अमली इक़दामात के ज़रीये दूसरों के लिए भी एक मिसाल बने। चुनांचे ज़ाहिद अली ख़ां एडिटर रोज़नामा सियासत ने क़ौम-ओ-मिल्लत को इस संगीन मसले पर झंझोड़ने के लिए इन शादीयों में शिरकत ना करने का एलान किया है जिसमें बे-जा इसराफ़ किया गया हो। जिसमें बे-जा रसूमात को जगह दी गई हो जिस शादी में सामेआ नवाज़ी और आतिशबाज़ी की जाये। ज़ाहिद अली ख़ां ने ये भी कहा है कि उन्होंने मैनेजिंग एडिटर सियासत जहीरुद्दीन अली ख़ां और न्यूज़ एडिटर सियासत आमिर अली ख़ां को भी हिदायत दी है कि वो इन शादीयों का बाईकॉट करें जिनमें फुज़ूलखर्ची की गई हो।

उन्होंने कहा कि सिर्फ तेलंगाना या हिन्दुस्तान में ही मुस्लमान परेशान नहीं हैं बल्के सारी दुनिया में मुस्लमान बहुत ही नाज़ुक दूर से गुज़र रहे हैं। इन हालात में मुस्लमानों को बे-जा इसराफ़ से गुरेज़ करना चाहीए।खासतौर पर मुस्लमान शादीयों की तक़ारीब में जिस तरह का ख़र्च करते हैं अगर इस पर क़ाबू पाया जाये , सुन्नत रसूल(स०) के मुताबिक़ शादियां की जाएं तो मुआशरा ब-यक वक़्त कई बुराईयों और परेशानीयों से महफ़ूज़ रह सकता है।

जनाब ज़ाहिद अली ख़ां ने शादीयों को सादगी से अंजाम देने पर-ज़ोर देते हुए मिल्लत-ए-इस्लामीया को नबी करीम(स०) की ये हदीस पाक याद दिलाई जिसमें आप(स०)ने इरशाद फ़रमाया सबसे ज़्यादा बाबरकत निकाह वो है जिस पर ख़र्च कम हो। एडिटर सियासत के मुताबिक़ मुस्लमान नबी करीम(स०) के इस इरशादे पाक पर अमल करें तो किसी घर में बिन ब्याही बेटियां नहीं रहेंगी। किसी ज़ईफ़ माँ बाप के चेहरों पर उदासी नज़र नहीं आएगी। किसी भाई को अपने बहनों की शादीयों के लिए जहेज़ और जोड़े की रक़म जमा करने के लिए अपना गर्दा फ़रोख़त करना नहीं पड़ेगा।

इस ज़िमन में उल्मा-ओ-मशाइख़ीन और अकाबिरीन मिल्लत को आगे आना होगा अगर वो बे-जा इसराफ़ की शादीयों का बाईकॉट शुरू कर दें तो मिल्लत को एक मुसबित पयाम जाएगा क्युं कि मुआशरे पर उल्मा-ओ-मशाइख़ीन और अकाबिरीन का गहिरा असर होता है। अमली इक़दामात के ज़िमन में एडिटर सियासत ने ऑल इंडिया जमईयत उल-क़ुरैश हैदराबाद की सताइश की जिसने क़ुरैश बिरादरी को शादीयों में होने वाले बे-जा इसराफ़ से बचाने के लिए सख़्त फ़ैसले किए हैं। जमईयत उल-क़ुरैश के सरबराह अल्हाज मुहम्मद सलीम ने जो टीआरएस के रुकन क़ानूनसाज़ कौंसिल भी हैं क़ुरैश बिरादरी को बे-जा इसराफ़ से बचाने के लिए किए गए इक़दामात में अहम रोल अदा किया है।

ज़ाहिद अली ख़ां ने इस ज़िमन में जमईयत उल-क़ुरैश और मुहम्मद सलीम की सताइश और उनके फ़ैसलों का ख़ैर-मक़्दम करते हुए कहा कि ये इक़दामात ना सिर्फ तेलंगाना बल्के हिन्दुस्तान के मुसलमानों के लिए एक मिसाल है जिसकी तक़लीद की जानी चाहीए। वाज़िह रहे कि ऑल इंडिया जमईयत उल-क़ुरैश हैदराबाद ने अपने एक अहम तरीन मीटिंग में क़ुरैश बिरादरी को हिदायत दी है कि वो अपनी शादीयों में सिर्फ एक खाना और एक मीठे को लाज़िम करले।

बे-जा रसूमात बिशमोल सामेआ नवाज़ी-ओ-आतिशबाज़ी से गुरेज़ करें और अगर कोई जमईयत उल-क़ुरैश की इन हिदायत की ख़िलाफ़वरज़ी करेगा तो इस पर 50 हज़ार रुपये जुर्माना आइद किया जाएगा और बिरादरी एसी शादीयों का बाईकॉट करेगी। ज़ाहिद अली ख़ां के मुताबिक़ ये सिर्फ़ क़ुरैशी बिरादरी तक महिदूद नहीं होना चाहीए बल्के सारे मुसलमानों को इस पर अमल करना ज़रूरी है। तब ही हम अपने कई एक मसाइल पर क़ाबू पाने में कामयाब हो सकते हैं।