अल्लाह तआला ने अपने बंदो के लिए कुछ दिन मुकर्रर फरमाए हैं जिनमें अल्लाह की नेमतों को याद करें, उसके एहसानात का शुक्र बजा लाएं, उसकी तकदीस व तमहीद से तारीफ करने वाले हो और फिर इन मुबारक घडि़यों में उनके जेहनों व दिलों में तौहीद, इस्लाम, मेल-जोल, एत्तेहाद व इत्तेफाक की लहर दौड़ जाए और आपस में मुत्तफिक हो जाएं और बंदे अपने खालिक की रुजू हो और खालिक अपने बंदो पर मेहरबान हो।
उम्मते मुस्लेमा/ मुस्लिमा का सबसे बड़ा इज्तिमा हज के मुबारक दिनों में मुनअकिद/ मुनाकिद होता है। मशरिक व मगरिब और शुमाल व जुनूब से अल्लाह के बंदे जौक व शौक से खुदा के पाकीजा घर की तरफ पहुंच रहे हैं। वह इन चंद दिनों में अपने परवरदिगार की इताअत बजा लाएंगे और ईमान की दौलत से संवर जाएंगे।
अल्लाह तआला ने अपने बंदो को हज की नेमत से नवाजा ताकि वह सच्ची नीयत के साथ अपने मौला के चाहने वाले हों। घर के आसाइश व आराम राहत व सुकून को छोड़कर सफर की मुसीबतों तकलीफों को बरदाश्त करके हंसते हुए रहमान की इताअत बजा लाएं। वह दिल व जबान, कौल व अमल और जिक्र व फिक्र से अपने रब की याद में लग जाएं। वह एक ही लिबास में और एक ही सदा के साथ एक ही वहदहू ला शरीक के लिए दौड़ रहे हों। बैतुल्लाह का हज इस्लाम के अरकान में से एक रूक्न और फर्ज ऐन है। तमाम उम्र में एक बार हर उस मुसलमान पर फर्ज है जिसको अल्लाह तआला ने उतना माल दिया हो कि अपने वतन से मक्का मुकर्रमा तक आने जाने पर कुदरत रखता हो और अपने बाल-बच्चों की किफालत का इंतजाम सही तरीके से कर सकता हो।
किताबे ईलाही में इसकी सराहत मौजूद है। ‘‘अल्लाह के लिए बैतुल्लाह का हज करना लोगों पर फर्ज है जिस शख्स को वहां तक पहुंचने की इस्तताअत हो और जिसने इंकार किया अल्लाह सारे आलम से बेनियाज है।’’ (कुरआन)
इस आयत मे हज की फर्जियत और इस्तताअत को बयान किया गया है और इंकार करने वालों को सुना दिया गया है कि अल्लाह तआला सारी दुनिया से बेनियाज है। उसे किसी की परवा नहीं। इसलिए नबी करीम (स०अ०व०) ने हज की फर्जियत, उसके एहकाम और न करने वालों पर सख्त तरीन वईदें सुनाई हैं।
नबी करीम (स०अ०व०) के इरशादात गौर फरमाएं। हजरत अबू सईद (रजि0) रिवायत करते है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने हमारे सामने वाज फरमाया और इरशाद फरमाया कि अल्लाह तआला ने तुम पर हज फर्ज किया है पस तुम हज करो। (मुस्लिम)
इब्ने अब्बास (रजि0) कहते हैं कि कबीला खनअम की एक औरत ने कहा या रसूल (स०अ०व०)! अल्लाह का फरीजा-ए-हज जो बंदो पर है वह मेरे बाप बुढ़ापे की हालत पर फर्ज हो गया वह सवारी पर नहीं बैठ सकता तो क्या मैं उसकी तरफ से हज कर सकती हूं। आप (स०अ०व०) ने फरमाया कि हां। यह हज्जतुल विदा का वाक्या/वाकिया है। (बुखारी, मुस्लिम)
इस हदीस से साबित हुआ कि किसी मुसलमान पर हज फर्ज हो मगर उज्र की बिना पर जा नहीं सकता तो उसकी तरफ से किसी शख्स से अपना हज करा सकता है। जब हज फर्ज हो जहां तक मुमकिन हो बहुत जल्द अदा किया जाए, ताखीर न की जाए जो शख्स बावजूद कुदरत व इस्तताअत के हज न करे उसके लिए हदीस में सख्त वईद आई है।
जैसा कि अर्ज किया नबी करीम (स०अ०व०) ने। हजरत अबू उमामा (रजि0) फरमाते है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया जिस शख्स को किसी जरूरी हाजत या जालिम बादशाह या शदीद मरज ने हज से नहीं रोका और उसने हज नहीं किया और मर गया तो वह चाहे यहूदी होकर मरे या नसरानी होकर मरे। किस कदर सख्त वईद है। नबी करीम (स०अ०व०) ने उन लोगों को जिन पर हज फर्ज हो गया है और दुनियावी गरज या सुस्ती, गफलत की वजह से बिला शरई मजबूरी से हज नही करते बुरी आखिरत की तंबीह फरमा रहे हैं क्योंकि बावजूद शरायत के पाए जाने के हज न करना अगर हज को फर्ज न मानने की वजह से है तो काफिर होना जाहिर है और अगर अकीदा फर्जियत का है और कोई शरई उज्र नहीं है लेकिन सुस्ती और दुनियावी ऐश व लज्जत की वजह से हज को नही जाता तो फिर यह शख्स यहूद व नसारा के मुशाबा है और हज न करने के लिहाज से उन्हीं जैसा है।
लब्बैक की सदा लगाते हुए( जो हुज्जाम की जबानों से यह कलमात नग्मों की सूरत अख्तियार करते हैं) हरम काबा पहुंचते हैं उनमें खुदा की तौहीद का इकरार है जिसका ताल्लुक सरासर नीयत से है। इसी बिना पर हज के लिए सबसे पहली और बुनियादी शर्त नीयत का साफ और पाकीजा होना है और यही वह दौलत है जिस को बंदा अपने परवरदिगार खालिके हकीकी के हुजूर पेश करता है। इस कीमती हदिया को लेकर वह बैतुल्लाह पहंुचता है और उसका मेहमान बनता है।
बैतुल्लाह पहुंचने वालों से पुकारने वाले की आवाज पुकार-पुकार कर कहती है, यहां आने वालों याद रखो जहां तुम्हारे जिस्म व लिबास गंदगी से साफ-सुथरे हों, वहां तुम्हारें दिल शिर्क व जुल्म की आलायशों से पाक-साफ हों। इमाम किरतबी हजरत हुजैफा (रजि0) से रिवायत करते हैं कि नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया- बेशक अल्लाह तआला ने मेरी तरफ वहि की जिसमें फरमाया- ऐ खुदा के अजाब से डराने वाले अम्बिया के भाई! रसूलों के भाई! अपनी कौम को डराओ और खबरदार करो कि यह लोग मेरे इन घरों में से किसी घर में भी न दाखिल हों मगर पाकीजा दिलों के साथ, नबी करीम (स०अ०व०) की इताअत करते हुए इंसाफ पर अमल पैरा हाथों और पाक जिस्मों के साथ और ऐ नबी (स०अ०व०) उनको मजीद तंबीह कीजिए कि वह मेरे घरों में से किसी घर में भी इस हाल में न दाखिल हो कि उनमें से किसी ने दूसरे पर जुल्म किया हो।
अगर कोई शख्स जुल्म व सितम ढाकर मेरे घर में दाखिल हो उसपर मेरी लानत व फटकार। जब तक वह मेरे सामने रहे यहां तक कि उस बुराई और जुल्म को और जो हक उसने गसब किया है वह उसे लौटा न दे। पस अगर वह इन तमाम बातों से साफ-सुथरा बनकर मेरे दर पर आए तो मेरी रहमत उसके शामिल हाल होगी जिससे वह बनेगा और देखेगा भी वह मेरे मुकर्रिब बंदो में शुमार होगा और उसको अम्बिया व सिद्दीकीन शहीदों और सालेहीन की रफाकत नसीब होगी।
अल्लाह तआला के नेक बंदो के लिए यह हुक्म अल्लाह के तमाम घरों (मसाजिद) से मुताल्लिक है। उन घरों के अस्ल मरकज (बैतुल्लाह) की क्या शान होगी? और जिन बंदो को उसमें हाजिरी का शर्फ हासिल होगा उनकी जिम्मेदारियां और फरायज क्या होंगे? देखो, बैतुल्लाह सरजमीन पर वह आला मकाम है जिसके मुताल्लिक खुद अल्लाह तआला का इरशाद है- और जब हमने खाना-ए-काबा को अम्न और इज्तिमा की जगह मुकर्रर किया लोगों के वास्ते और यह कि बनाओ इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज की जगह और हुक्म किया हमने इब्राहीम और इस्माईल को कि पाक रखो मेरे घर को तवाफ और एतकाफ करने वालों के लिए और रूकूअ व सजदा करने वालों के वास्ते। (कुरआन)
इस मुकद्दस और अजीम घर के मुताल्लिक नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद गौर फरमाएं। इस शहर को अल्लाह तआला ने जबसे जमीन व आसमान को बनाया, हुरमत वाला करार दिया और कयामत तक इस मुकद्दस घर की इज्जत व तकरीम है। मुझ से पहले इस घर में किसी को लड़ाई की इजाजत नहीं मिली। मुझे भी दिन के कुछ हिस्से के लिए कुफ्फार से जंग करने का अल्लाह तआला ने हुक्म दिया। सुन लो! आज से कयामत तक खुदा के इस घर की ताजीम की जाएगी, न इसमें शिकार किया जाए और न किसी पेड़ की टहनी को काटा जाए और इसके सब्जाजार को न तोड़ा जाए जबकि वह तरोताजा हो।(हदीस)
आज दुनिया भर से खुदा के बंदे बैतुल्लाह में मेहमान हुए हैं जिन्हें अपने खालिक की हम्द व सना से फुर्सरत नहीं। उठते-बैठते, चलते-फिरते, सोते-जागते यही मशगला और यही धुन है। गुनाहों से माफी का तलबगार होना और हिदायत व मगफिरत मांगना उनका शिआर बन गया है। खुदा की याद से दिल में सफाई पैदा होती है।
तजकिया नफ्स ही जो दरहकीकत हज का अजीम मकसद है। आज से इंसान नई जिंदगी में दाखिल हो गया और जन्नत का पाकीजा मकाम उसका ठिकाना बन गया। इसी सदाकत का इजहार लिसाने नबुवत से होता है‘‘ऐसा हज जो गुनाह और रिया से बचते हुए और तकवा व तहारत अख्तियार करते हुए किया जाए उसका सिला जन्नत ही है।’’ हज बैतुल्लाह का यह सफर कितना पाकीजा और खालिके हकीकी की मेहमान नवाजी किस कदर एहसान और खैर व बरकत से लबरेज और नुसरत व कामयाबी का मजदा कितना जांफिजा।
एक सच्चा मुसलमान हज को जाता है तो वह अपने परवरदिगार की कामिल इताअत व फरमां बरदारी बजा लाता है और हज के एक-एक फरीजे को निहायत अहसन व अकमल तरीके पर सरअंजाम देता है तो वह हज की हकीकत को पा लेता है वह अपने आप को अपने दीनी भाइयों में देखता है जो दुनिया के कोने-कोने से आए हुए हैं। यह मंजर उसके दिल में प्यार मोहब्बत का जज्बा पैदा करता है और उम्मते वाहिदा का तसव्वुर मोजजन हो जाता है और खुदा का यह इरशाद -‘‘ बेशक यह तुम्हारी उम्मत हकीकत में एक ही उम्मत है और मैं तुम सबका रब हूं। पस तुम मुझ से डरते रहो।’’ (कुरआन) जब वह मुकद्दस व पाक मकामात पर नजर दौड़ाता है तो उसका दिल नूर और रौशनी से रौशन हो जाता है। यह रौशनी उसके रूह व जिस्म की दवा और गिजा बनती है, जिक्र व फिक्र से उसका दिल ईमान की हलावत से मुनव्वर और रौशन हो जाता है। अल्लाह तआला के पाकीजा निशानात को देखकर उसके दिल में यकीन और अपने खालिक की मोहब्बत दौड़ जाती है।
आज वह दीने इस्लाम की सरबुलंदी और उरूज व तरक्की को इन आंखों से देखता है कि किस तरह बयाबान वादी से इस्लाम का यह चश्मा फूटा और पूरे आलम को सैराब किया और इसी बैतुल्लाह से पूरी दुनिया को हिदायत मिली। खुदा के मुकद्दस घर को देखकर उसे मालूम होता है कि प्यारे नबी करीम (स०अ०व०) और आप के सहाबा (रजि0) ने दीने इस्लाम की किस कदर खिदमत की। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी को ईमान व अखलाक से आरास्ता किया फिर दुनिया को हिदायत का सबक सिखाया, सदाकत का बीज बोया। आह! कितने पाकीजा लोग थे।
इसलिए ऐ नबी करीम (स०अ०व०) की पैरवी करने वालो! ऐ बैतुल्लाह का हज करने वालो! याद रखो, तुम अपने परवरदिगार के घर जा रहे हो यह वही घर है जिसको सैयदना इब्राहीम (अलै0) और उनके बेटे सैयदना इस्माईल (अलै0) के मुकद्दस हाथों ने चुना, यही घर तुम्हारे नबी (स०अ०व०) की दावत का मरकज है, इसी घर से तौहीद का चश्मा फूटा और इस्लाम की दावत फैली।
इसलिए इस घर की अजमत व बुजुर्गी को पेशे नजर रखना, अपने खालिक की मदद और उसकी रहमत का तालिब बनना। दुआ है कि तमाम हुज्जाम को हिदायत, मगफिरत से हमकिनार फरमाए, प्यार व मोहब्बत से नवाजे, इज्जत व शर्फ से तकरीम दे और तुम्हें तौफीक दे कि तुम उसके दीन को लेकर सारी दुनिया में फैल जाओ और हक व सदाकत और इंसाफ का निजाम जारी व सारी हो जाए- आमीन
(मौलाना मोहम्मद मजहरूलहुदा कादरी)
——–बशुक्रिया: जदीद मरकज़