बैत-उल-माल के सरमाया का सही मुसर्रिफ़

दुनिया के बादशाहों की ज़िंदगी देखी जाय। तारीख़ के औराक़ शाहिद हैं कि अपनी ज़ात और ख़ानदान पर दुनिया के बादशाहों ने किया कुछ ख़र्च किया है और पब्लिक के सरमाया को किस रंग रलियों में बर्बाद किया है लेकिन आप इसी के साथ मुहम्मद अलरसोल अल्लाह ई के नाम लेवा और उन के ख़लीफ़ा अव्वल के नाम लेवा और उन के ख़लीफ़ा अव्वल की ज़िंदगी मुलाहिज़ा कीजिए। आप की एहतियात और हिफ़ाज़त और बैत-उल-माल को देखिए।

एक हब्बा बेजा-ओ-फ़ुज़ूलखर्च होने पर क्या क्या बंदिशें थीं और तो और ख़ुद अपनी ज़ात पर भी एक पाई ज़्यादा ख़र्च ना होने देते थे। चुनांचे एक मर्तबा हज़रत अबूबकर ओ की ज़ौजा मुहतरमा का ज़ेवर ख़रीदना दिल चाहा तो आप ने इस के लिए हज़रत अबूबकर
से दरख़ास्त की आप ने फ़रमाया कि मेरे पास दौलत नहीं है, जिस से तुम्हारी ख़ाहिश पूरी हो। आप ने अर्ज़ किया कि में इस नफ़क़ा से जो हमें बैत-उल-माल से मिलता है कुछ अर्सा में इतना बचालोंगी कि इस से कुछ ज़ेवर ख़रीद सकूं।

हज़रत अबूबकर ने फ़रमाया अच्छा बच्चाव‌। चुनांचे उन्हों ने बचाना शुरू किया और एक अरसा-ए-दराज़ में थोड़ी सी रक़म बचा कर हज़रत अबूबकर के सामने रखी वो इस से ज़ेवर ख़रीद दें। हज़रत अबूबकर ने वो रक़म देखी और बैत-उल-माल वापिस करदी और फ़रमाया ये हमारी ज़रूरत से ज़्यादा थी और जिस मुद्दत में उन्हों ने ये रक़म बचाई थी उसी हिसाब से उन का नफ़क़ा कम करदिया और कहा ये तुम्हारे लिए काफ़ी है और जो पहले पहले रकमें ज़्यादा लें थीं उन का भी हिसाब करके ज़्यादा रक़म अपनी मिल्कियत से वापिस करके बैत-उल-माल में दाख़िल करदी (इबन अलाएझ़ हशतुम)