कोलकाता: देश में सिक्कों और करेंसी नोटों के चलन का इतिहास बहुत पुराना है। पुराने वक्त में सिक्कों को राजा महाराजों द्वारा अपनी टकसालों में बनाया जाता था जो अलग अलग धातु जैसे तांबे, सोने और चांदी आदि से बने होते थे। सिक्कों को लेजाना और लाना काफी मुश्किल होता था जिसकी एक वजह था सिक्कों का वजन।
ब्रिटिश लोगों के भारत में कदम रखने के बाद रूपये की बनावट में काफी बदलाव आया और करेंसी नोट भी चलन में आये। साल 1861 में बने पेपर करेंसी एक्ट ने सरकार को ब्रिटिश राज में यह करेंसी चलाने की मंजूरी दे दी जिसका ब्रिटिश राज की जड़ें देश में मजबूत करने में काफी महत्वपूर्व योगदान रहा।\
शुरूआती नोट 1, 2½, 5 और 10 रूपये के निकाले गए और बाद में 1000 और 10000 रूपये के नोट भी चलन में आये।
साल 1940 से चलन में आये 1000 के नोट पर 8 भाषाओँ में “हज़ार रुपया” लिखा हुआ था और वॉटरमार्क में आरबीआई का लोगो लगाया गया था और इन नोटों को केंद्र सरकार द्वारा जारी किया जाता था। देखने में सादा लगने वाले नोटों पर भी कड़े सिक्योरिटी फीचर थे जिनमें से ज्यादातर प्रिंटिंग के जरिये जोड़े जाते थे। आज के नोटों की तरह उस वक़्त के नोटों में तार नहीं होती थी।