ब्रिटेन के पार्लियामेंट अहाते में बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी के मुतनाज़ा माज़ी को लेकर हुई बहस पर नया तनाज़ा छिड़ गया है। पार्लियामेंट के एक कमरे में ‘नरेंद्र मोदी ऐंड द राइज ऑफ हिंदू फासिज्म’ पर बहस कराने वाले कंवेनर्स ने दावा किया है कि बहस रद्द करने के लिए ब्रिटेन में उन्हें हिंदू दायें बाज़ू की तंज़ीमों ज़्यादा दबाव और जान से मारने की धमकियों का सामना करना पड़ा।
लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में Human Rights Study Centre के डायरेक्टर चेतन भट्ट ने कहा कि मौत की धमकियों के मद्देनजर यह बैठक बहुत ही मुश्किल हालात में हुई। उन्होंने कहा कि इससे यह उजागर होता है कि नरेंद्र मोदी के हामी कुछ भी सहन करने में नअहल हैं और आज़ाद इज़हार का दमन करने की कोशिश कर रहे हैं।
बैठक के दौरान भट्ट ने आरएसएस में मोदी की जड़ें भी तलाशी, जिसे 2002 के दंगों के दौरान गुजरात में उनके सीएम के तौर पर निभाए गए किरदार से जोड़ा गया।
उन्होंने कहा कि इंसानी हुकूक के मुद्दे बहुत संगीन हैं और हिंदुस्तान के इलेक्शनों में क्या होता है वह मायने नहीं रखता।
बैठक को यूसुफ दाउद ने भी खिताब किया जो एक ब्रिटिश गुजराती हैं। उन्होंने 2002 के दंगों में अपने दो भाइयों को गंवा दिया। उन्होंने कत्ल ए आम और इंसानियत के खिलाफ जुर्म को लेकर मोदी के खिलाफ एक केस भी किया है। उन्होंने कहा, ‘पर्दे के पीछे जो कुछ हुआ हम उस बात को खारिज नहीं कर सकते हैं।
बहस में शामिल हुए प्रो. गौतम अप्पा ने इस बात का जिक्र किया कि बीजेपी सुप्रीम कोर्ट से मोदी को ‘क्लिन चिट’ मिलने का दावा करती है, लेकिन यह एक गलतफहमी है क्योंकि इस मामले में हिंदुस्तान में अदालती अमल अभी तक जारी है।