ब्रीटेन में मलाला को नोबेल इनाम देने का मुतालिबा

लंदन, ०९ नवंबर: ख्वातीनो की तालीम के लिए मुहिम चलाने पर तालिबान की गोली की शिकार हुई मलाला यूसुफजई को नोबेल इनाम देने की मांग उठने लगी है। ब्रिटेन के हजारों लोगों ने हुकूमत से मांग की है कि मलाला को नोबेल के लिए नामज़द किया जाए।

बर्तानिया (ब्रिटेन) में पाकिस्तानी नशाद (origin/मूल) की एक ब्रिटिश ख्वातीन की कियादत में एक मुहिम चल रही है, जिसमें वज़ीर ए आज़म डेविड कैमरन और दूसरे सीनियर सरकारी आफीसरों से मुतालिबा किया गया है कि यूसुफजई को नोबेल इनाम के लिए नामज़द किया जाए। नोबेल कमेटी के क्वानीन के मुताबिक सिर्फ  मुमताज शख्सियत , जैसे कि नैशनल असेंबली और हुकूमत के मेम्बर ही किसी को इनाम के लिए नामज़द कर सकते हैं।

मुहिम की लीडर शाहिदा चौधरी ने ग्लोबल पेटिशन प्लेटफॉर्म change.org पर कहा है, ‘मलाला सिर्फ एक लड़की नहीं है, बल्कि वह उन सभी के लिए एक सिंबल है।’

15 साला मलाला को तालिबान ने 9 अक्टूबर को गोली मार दी थी, क्योंकि वह ख्वातीनो के लिए तालीम की मुतालिबा (Demand) कर रही थी। दरअसल तालिबान नेता मौलाना फजलुल्लाह ने पाकिस्तान की  वादी स्वात में लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगाए है।

तालिबान के दहशत  के वजह से कोई भी अपनी बेटियों को स्कूल भेजने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। ऐसे में मलाला ने तालिबान के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए लड़कियों को फिर से स्कूल पहुंचाने का भार उठाया। मलाला की कोशिशें को कामयाम होते देख तालिबानियों ने उसे अपने रास्ते से हटाने के लिए सिर पर गोली मार दी थी।

अब उसकी सेहत में सुधार हुआ है और वह खतरे से बाहर है। हाल ही में मलाला की एक तस्वीर रिलीज हुई है, जिसमें वह किताब पढ़ते हुए दिख रही हैं। मलाला के वालिद का कहना है कि उनकी बेटी अस्पताल से छुट्टी मिलते ही अपने ख्वाबों को पूरा करने के में जुट जाएगी।

अब मलाला ख्वातीनो के हुकूकों और तालिबान के खिलाफ एक सिंबल बन चुकी हैं। बर्तानिया में 30 हजार से ज्यादा लागों ने मलाला को नोबेल इनाम देने की मांग की है। इसी तरह के मुहिम (Campaign) कनाडा, फ्रांस और स्पेन में भी चल रहे हैं।

*********** खास है मलाला **************

इस बीच हफ्ते के दिन मलाला के नाम पर ‘ग्लोबल डे ऑफ़ ऐक्शन’ ऐलान किया गया है। इसका मकसद तीन करोड़ 20 लाख वैसे बच्चों को स्कूल भेजना है जिन्होंने कभी स्कूल की शक्ल नहीं देखी।

अक्वाम ए मुत्तहिदा (संयुक्त राष्ट्र)  के  खुसुसी तालीम के नुमाइंदे  गार्डन ब्राउन इस वक्त इस्लामाबाद में हैं। मलाला के नाम पर ऐलान किए गए ‘ख़ास दिन’ से पहले पाकिस्तान पहुँचे गॉर्डन ब्राउन उन पाकिस्तान लड़कियों के मामले पर सलाह व मशवरा कर रहे हैं, जो अभी तक स्कूल नहीं जा पाई हैं।

पाकिस्तान की स्वात वादी  में शिद्दत पसंद तंज़ीम तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी थी और मलाला उनमें से एक है। जब ये रोक लगी थी, तब मलाला  सिर्फ 11 साल की बच्ची थी लेकिन उसने पढ़ना लिखना जारी रखा था बेशक वो स्कूल नहीं जाती थी।

उसी वक्त मलाला ने बीबीसी की उर्दू खिदमत ( सेवा)  के लिए भी ‘गुल मकई’ नाम से डायरी लिखनी शुरू की थी। इसमें उन्होंने लिखा कि किस तरह से तालिबान के लगाए पाबंदी ने उनकी क्लास में पढ़ने वाली लड़कियों की जिंदगी पर असर डाला।