ब्लॉक में नहीं रहते अफसर, आने-जाने में फिजूलखर्च

रियासत के मुखतलिफ़ अजला में काम कर रहे ज़्यादातर बीडीओ, सीओ, सीडीपीओ और दीगर अफसर अपने मुकर्रर ब्लॉक/अंचल में नहीं रहते हैं। वे रांची शहर में रहकर ही रोज आना जाना करते हैं। इसकी तसदीक़ ब्लॉक में रहनेवाले लोग भी करते हैं। उनकी गाड़ियां शहर के मुखतलिफ़ हिस्सों से रोज ब्लॉक/अंचलों के लिए निकलती है, फिर शाम होने के बाद वापस लौटती है। शुरू से ही यह रिवाज चल रही है। इनके आने जाने पर सालाना करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। अगर वे अपने मुकर्रर ब्लॉक में रहें, तो इस पेट्रोल की तो बचत होगी ही, सरकारी खजाने का भी गलत इस्तेमाल भी रोका जा सकेगा। इसके अलावा ये अपने इलाक़े पर ज़्यादा वक़्त दे सकेंगे। मुक़ामी लोगों के मुताबिक रोज सुबह और शाम को इन अफसरों के गाड़ी आते-जाते देखे जा सकते हैं।

ऐसे ब्लॉक जहां नहीं रहते अफसर

अनगड़ा, बेड़ो, लापुंग, सोनाहातू, इटकी, बुढ़मू, रातू, मुरहू, चान्हो
बीडीओ, सीओ और सीडीपीओ रांची में ही रहते हैं
खूंटी-रामगढ़ में भी नहीं रहते अफसर
खूंटी और इसके आसपास के ब्लॉकों में तौविल वक़्त से अफसर नहीं रह रहे हैं। इसकी बहस होती रहती है। यहां से भी अफसर रोज शाम होते रांची आ जाते हैं। इसके पीछे अफसरों का तर्क होता है कि खूंटी नक्सल मुतासीर इलाका है। रामगढ़ की भी यही हालत है। अफसर रामगढ़ में रहने के बजाय रोज रांची से आना-जाना पसंद करते हैं। उनकी गाड़ियां रांची-रामगढ़ रास्ते पर सुबह नौ से 10 बजे के दरमियान दिखती है।

यही हाल दूसरे अजला की भी

रियासत के दूसरे अजला की भी यही हालत है। इन अजला में भी ये अफसर ब्लॉक या अंचल हेड क्वार्टर के बजाय जिला हेड क्वार्टर में रहते हैं। सुबह वे ब्लॉक में जाते हैं और शाम को लौट आते हैं। ब्लॉक हेड क्वार्टर वाक़ेय रिहाईस गाह खाली पड़े रहते हैं। कभी-कभार दिन में अफसर मजकुरह रिहाइशगाह में रहते हैं।

नहीं सुधरी हालत

हुकूमत ने कई बार कोशिश किया कि अफसर मुकर्रर ब्लॉकों में रहें। इसके लिए चीफ़ सेक्रेटरी की सतह पर हुक्म भी निकाला गया, पर हालत नहीं सुधरी। चीफ़ सेक्रेटरी की कोशिश था कि अफसर वहां रहेंगे, तो तरक़्क़ी काम पर बेहतर असर पड़ेगा।

= शुक्रिया प्रभात खबर =