फकीह अबुल लैस समरकंदी (रह०) अपनी सनद के साथ हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज (रह०) का यह कौल नकल करते हैं कि अल्लाह तआला बाज लोगों के आमाल की वजह से तमाम लोगों को अजाब नहीं देते अलबत्ता जब गुनाह खुलेआम किए जाएं और रोकने वाला कोई न हो तो तमाम कौम अजाब के लायक हो जाती है और आप ने यह भी जिक्र किया कि अल्लाह तआला ने यूशेअ बिन नून (अलै०) को वहि भेजी कि मैं तेरी कौम में से चालीस हजार अच्छे लोगों को और साठ हजार बुरे लोगों को हलाक करूंगा उन्होंने अर्ज किया या अल्लाह! बुरे तो बुरे हैं नेकों को हलाक करने की क्या वजह है। इरशाद हुआ कि उन्होंने मेरे लिए कभी गुस्सा नहीं दिखाया बल्कि बुरो के साथ-साथ रहे।
हजरत अबू हुरैरा (रजि0) नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद नकल करते हैं कि भलाई की तलकीन करो अगरचे खुद न भी अमल करो और बुराई से रोकते रहो अगरचे खुद न भी रूकते हो। हजरत इब्ने मालिक नबी करीम (स०अ०व०) से रिवायत करते हैं कि आप ने इरशाद फरमाया कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो भलाई के फैलने का और बुराई को रोकने का जरिया होते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बुराई के फैलने का और भलाई की रूकावट का जरिया होते हैं।
इसलिए मुबारक है उन लोगों के लिए जिन्हें अल्लाह तआला ने खैर के फैलने का जरिया बनया और हलाकत है उन लोगों के लिए जो बुराई फैलाने पर हो गए। हासिल यह कि भलाई की तलकीन करने वाला भलाई को फैलाता है और बुराई के लिए रूकावट है और वह मोमिनीन में से है। अल्लाह तआला का इरशाद है और मोमिन मर्द और मोमिन औरते एक दूसरे के मददगार है नेक बात सिखलाते और बुराई से मना करते हैं और जो कोई बुराई पर लोगों को लगाता और भलाई से रोकता है वह अपने में मुनाफिकों वाली अलामत रखता है जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है कि मुनाफिक मर्द और मुनाफिक औरतें सब एक जैसे हैं बुरी बात सिखाते हैं और भलाई से रोकते हैं।
हजरत अली (रजि०) का मकूला है कि भलाई की तलकीन करना और बुराई से रोकना बेहतरीन अमल है और फासिक को जलाने वाला है। इसलिए भलाई की तलकीन करने वाला मुनाफिक को जलील करता है।
सबसे ज्यादा महबूब अमल:- हजरत कतादा (रजि०) कहते हैं कि एक आदमी बारगाहे नबुवत में हाजिर हुआ जबकि आप मक्का में थे कहने लगा कि आप ही हैं जो अल्लाह का रसूल होने का दावा रखते हैं। इरशाद फरमाया- हां, सवाली ने पूछा कि अल्लाह तआला के यहां सबसे महबूब अमल क्या है? फरमाया अल्लाह पर ईमान लाना।
पूछा फिर कौन सा? इरशाद हुआ सिलारहमी करना। अर्ज किया फिर कौन सा? इरशाद फरमाया- भलाई की तलकीन करना और बुराई से रोकना। फिर पूछा कि अल्लाह के यहां सबसे ज्यादा नापसंदीदा अमल कौन सा है? इरशाद फरमाया- शिर्क करना।
सवाली ने अर्ज किया फिर कौन सा? फरमाया कतअ रहमी करना। सवाली ने फिर पूछा कि इसके बाद कौन सा अमल बुरा है। फरमाया- भलाई की तलकीन और बुराई से रोकने को छोड़ देना। सुफियान सूरी (रह०) फरमाते हैं कि जब किसी आलिम को देखो कि वह पड़ोसियों में महबूब है बिरादरी वाले उसकी तारीफ करते हैं तो यकीन कर लो कि वह शख्स मुनाफिक नहीं है।
हजरत जरीर (रजि०) रिवायत करते हैं कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि जिस कौम में कोई गुनाहों का इर्तिकाब करता है और लोग ताकत के बावजूद उसे रोकते नहीं तो मरने से पहले पहले वह लोग अजाब में मुब्तला हो जाते हैं। फकीह (रह०) फरमाते हैं कि नबी करीम (स०अ०व०) का कुदरत की शर्त लगाने का मतलब यह है कि जब समाज या माहौल में नेक लोगों का गलबा हो तो उनपर वाजिब है कि वह गुनाह करने वालों को रोकें जबकि वह एलानिया तौर पर गुनाह करने लगें क्योंकि अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में उस उम्मत की तारीफ इस सिफत की वजह से फरमाई है इरशाद पाक है कि तुम हो बेहतर सब उम्मतों से जो भेजे गए दुनिया में हुक्म करते हो अच्छे कामों का और मना करते हो बुरे कामों से और ईमान लाते हो अल्लाह पर और ईमान लाते हो अहले किताब पर तो उनके लिए बेहतर था कुछ तो उनमें से है ईमान पर और अक्सर उनमें नाफरमान है।
बाज उलेमा फरमाते हैं कि आयत का मतलब यह है कि लौहे महफूज में तुम्हें बेहतरीन उम्मत लिखा गया है जिसे लोगों के लिए बनाया गया यानी अल्लाह तआला ने इसी मकसद के लिए तुम्हे बनाया है कि तुम लोगों को भलाई का हुक्म करते हो और गुनाह करने वालो को गुनाह करने से रोकते हो। भलाई वह काम है जो अल्लाह की किताब और अक्ल सलीम के मुवाफिक हो और बुराई वह काम है जो अल्लाह की किताब के खिलाफ हो और अक्ल सलीम भी उसे पसंद न करे।
एक और आयत में इरशाद है कि और चाहिए कि रहे तुम में एक जमाअत ऐसी जो बुलाती रहे नेक काम की तरफ और हुक्म करती रहे अच्छे कामों का और मना करती रहे बुराई से और वही लोग पहुंचने वाले है मुराद को। यानी तुम में से ऐसी जमाअत होनी चाहिए जो भलाई का हुक्म करे और बुराई से रोकती हो और इस फरीजे को छोड़ने पर अल्लाह तआला ने पिछली कौमों की मुजम्मत फरमाई है। इरशाद पाक है कि आपस में मना न करते थे बुरे काम से जो वह कर रहे थे।
यानी जिन बुराइयों का वह लोग इर्तिकाब करते थे आपस में एक दूसरे को उनसे रोकते नहीं थे और उनका यह अमल बहुत ही बुरा था। एक और आयत में है कि क्यों नही मना करते उनके दरवेश और उलेमा गुनाह की बात कहने से और हराम खाने से बहुत ही बुरे अमल हैं जो वह कर रहे हैं। यानी अहले इल्म और नेक लोगों को उन्हें बुरे कलाम और गंदे कामों से रोकना चाहिए था तो क्यों न रोका यकीनन उन्होंने बहुत बुरा किया।
मुनासिब है कि भलाई की दावत व तब्लीग तनहाई या पोशीदा में हो सके तो यूँही करे कि यह असरदार तरीका है।
हजरत अबू दरदा (रजि०) फरमाते हैं जिस किसी ने अपने भाई को एलानिया नसीहत की उसने उसे रूसवा किया और जिस किसी ने चुपके से की तो उसे जीनत बख्शी अगर पोशीदा वाज असरदार साबित न हो तो एलानिया करे बल्कि दूसरे नेक लोगों से भी तआवुन हासिल करें कि सब मिलकर उसे बुराई से रोके। अगर ऐसा न कर सके तो गुनाह करने वाले उनपर गालिब आ जाएंगे और सबके सब अजाब की लपेट में आ जाएंगे।
तब्लीग छोड़ने का नतीजा:- हजरत नोमान बिन बशीर फरमाते हैं कि मैंने नबी करीम (स०अ०व०) को फरमाते हुए सुना कि अल्लाह के हुकूक में नर्मी करने वाले और उन हुकूक को बर्बाद करने वाले और उनकी हिफाजत करने वाले उन तीन किस्म के लोगो की तरह है जो एक जहाज मे सवार थे। उन्होने उसकी मंजिले आपस में तकसीम कर ली।
एक को बालाई दूसरे को दरमियानी और तीसरे को पहली मंजिल मिली। सफर जारी था कि एक शख्स कुल्हाड़ ले आया , साथी कहने लगे कि क्या करना चाहता है, कहने लगा कि अपनी मंजिल में सूराख करना चाहता हूं पानी भी करीब हो जाएगा और दीगर हाजात के लिए भी आसानी रहेगी।
अब बाज लोग तो यूं कहने लगे कि इसे दफा करो, अपने हिस्से की मंजिल में जो चाहे करे। दूसरे बोले हरगिज ऐसा न करने दो वरना यह हमें भी डुबाएगा और खुद भी गर्क हो जाएगा। इसलिए अगर वह उस शख्स का हाथ पकड़ते हैं तो वह खुद भी बचता है और यह लोग भी बचते हैं अगर उसे छोड़ते है तो वह खुद भी हलाक होगा और उन्हें भी हलाक करेगा।
हजरत अबू दरदा का मकूला है कि भलाई की तलकीन और बुराई से रोकते रहो वरना अल्लाह तआला तुम पर ऐसा जालिम हाकिम बिठा/ बैठा देगा जो न किसी बड़े की ताजीम का ख्याल करेगा और न छोटे पर रहम खाएगा और तुम्हारे नेक लोग दुआ भी करेंगे तो कुबूल न होंगी और बख्शिश चाहेंगे तो बख्शिश नहीं होगी।
हजरत हुजैफा नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद नकल करते हैं कि उस जात की कसम जिसके कब्जे में मेरी जान है तुम भलाई की तलकीन और बुराई से रोकते रहो वरना बईद नहीं कि अल्लाह तआला तुम पर अपना अजाब भेज दें फिर तुम दुआएं भी मांगोगे तो कुबूल न होंगी।
हजरत अली (रजि०) नबी करीम (स०अ०व०) का फरमान नकल करते हैं कि मेरी उम्मत जब जालिम को जालिम कहने से खौफ खाने लगेगी तो उनसे अलग हो जाओ।
हजरत अबू सईद खुदरी (रजि०) नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद नकल करते हैं कि तुम में से कोई शख्स जब किसी बुराई को देखे तो उसे अपने हाथ से रोके ऐसा न कर सके तो ज़ुबान से रोके और यह भी न कर सके तो दिल से बुरा जाने और यह ईमान का कमजोर तरीन हिस्सा है यानी अहले ईमान का यह कमजोर तरीन अमल है।
बाज उलेमा कहते हैं कि हाथ से रोकना अमीर व हुक्काम का फरीजा है और ज़ुबान से रोकना अहले इल्म का और दिल से बुरा समझना और बेजारी दिखाना आम लोगों का अमल है और बाज लोगों का कहना है कि जो शख्स भी इन तीनों दर्जों में से किसी पर कुदरत पाए लाजिम है कि उसे अख्तियार करे। (मौलाना महमूद आलम कासमी)
बशुक्रिया: जदीद मरकज़