भाजपा के लिए उल्टा पड़ सकता है नोटों पर बैन का फैसला

ब्लैक मनी खत्म करने के लिए सरकार का मास्टर स्ट्रोक माने जा रहे नोटों को रद्द करने के फैसले पर पार्टी के भीतर ही कई नेताओं को आशंकाएं भी हैं। ऐसे नेताओं को लग रहा है कि इस फैसले से न सिर्फ उन्हें देहाती वोटर बल्कि महिलाओं और पार्टी के परंपरागत वैश्य वोटरों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ सकता है।

पार्टी के सूत्रों के मुताबिक इस कदम की सराहना हो रही है और कुछ जगह पर इसको लेकर नाराज़गी भी है । लेकिन आगामी विधानसभा चुनावों में इस फैसले का विपरीत असर पढने की आशंकाओं को लेकर भी पार्टी के भीतर गहमा गहमी है । यह असर इस बात पर भी निर्भर करेगा की आने वाले दिनों में जनता को नोट बदलने में कितनी परेशानी होगी ।

पार्टी का एक बड़ा और परम्परागत वोटर वैश्य समाज रहा है । इनमें भी वह व्यापारी ज्यादा हैं जिनका ज़्यादातर व्यापार नकद राशी में होता है । इस फैसले से सबसे बड़ी समस्या इन व्यापारियों को हो रही है । इनमें डर व्याप्त है कि इन्हें अब आयकर विभाग की जांच का सामना करना पड़ेगा । इसके अलावा महिला वोटरों में भी नाराज़गी है । अक्सर महिलाएं अपनी बचत के रूप में नकदी अपने घरों में छुपा कर रखती हैं । महिलाओं को भी टैक्स जांच की आशंका है ।

इसके अलावा अस्पताल में फंसे हुए विभन्न समुदाय के लोग, किसान और मजदूर तबका भी इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित है । वह आदिवासी इलाके जहाँ पर बैंक बहुत दुरी पर स्थित हैं वहां भी लोग इस फैसले से प्रभावित हैं । ऐसी स्थिति में भाजपा से एक बड़ी संख्या में वोटरों का मोहभंग होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता ।

इसके अलावा विपक्षी पार्टियों के भाजपा के इस फैसले पर बयान भी भाजपा को मुश्किल में डाल सकते हैं । ऐसे ही एक बयान में बीते कल मायावती ने एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा, “मोदी जी को ब्लैकमनी के खिलाफ यह फैसला लेने में ढाई साल कैसे लग गए । क्या यह फैसला सरकार बनाने के छ: महीने के भीतर नहीं लिया जा सकता था । लेकिन ऐसा प्रतीत होता है तब भाजपा अपने नेताओं और मित्रों का काला धन बचाने में लगी थी ।”

नोटों को बदलने के लिए लगातार दूसरे दिन भी बैंकों पर लम्बी कतारे हैं । अगर यह स्तिथि ऐसे ही बनी रही तब निश्चित रूप से इस फैसले का भाजपा पर विपरीत असर पड़ने की पूरी संभावनाएं हैं ।