भारतीय जनसंचार संस्थान आई.आई.एम.सी. छात्र रोहिन वर्मा की आपबीती

शम्स तबरेज़, सियासत ब्यूरो चीफ।
भारतीय जनसंचार संस्थान यानि आई.आई.एम.सी. के छात्र रोहिन वर्मा की आज मंगलवार को न्यूज़ रिपोर्टिंग करने के बाद रोहिन ने सियासत से लिखित आपबीती भेजी है जिसमें रोहिन ने पूरे मामले को समझाया है पेश है राहिन की आपबीती….
रोहिन कुमार के शब्दों में— आईआईएमसी ने मुझे ‘ऑनलाइन मीडिया’ पर लिखने की वजह से सस्पेंड कर दिया है. मुझे नोटिस नहीं, सीधा सस्पेंशन आर्डर थमाया गया. लाइब्रेरी और हॉस्टल में ही नही कैंपस तक में आने से मना कर दिया गया. गार्ड्स को मेरी तस्वीर दे दी गई ताकि वो मुझे रोक सके. आर्डर में लिखा है कि हमारा ऑनलाइन मीडिया में लिखना संस्थान के अकादमिक माहौल को ख़राब कर रहा है. कह रहे हैं हमारी लेखनी आईआईएमसी के साथियों को उकसा रही है.
प्रथमदृष्टया ऐसा प्रतीत होता है की प्रशासन ने इतनी जल्दीबाजी में ये फैसला लिया की उन्होंने आईआईएमसी के ऑफिसियल दस्तावेज में मेरा क्या वास्तविक नाम है इसे पता करना भी जरुरी नहीं समझा. आपको बता दूं, आईआईएमसी के ऑफिसियल दस्तावेज में मेरा नाम ‘रोहिन कुमार’ है और फेसबुक पर ‘रोहिन वर्मा’.

सस्पेंशन के दस दिन बाद डिसिप्लिनरी कमिटी ने बुलाया. वहां बताया गया आप विचाराधीन (sub-judice) मामले पर कैसे लिख सकते है? आरोप लगाया मैंने बिना तथ्य जांचे खबर लिखी. इससे सवाल ये उठता है- क्या 2G,COALGATE, व्यापमं जैसे गंभीर और बड़े मुद्दे जो sub-judice थे या हैं इसपर रिपोर्टिंग नहीं की गई? विचाराधीन मामले पर रिपोर्ट नहीं लिखी जाती? उन्होंने यहाँ तक कह दिया- आपने रिपोर्ट नहीं फैसला लिखा है.

दरअसल, दिसम्बर के महीने में नरेन्द्र सिंह राव नामक अकादमिक एसोसिएट को कॉलेज प्रशासन ने बिना कारण बताये निकाल दिया. उनके टर्मिनेशन लैटर में क्लॉज़ १ का हवाला दिया गया जिसके तहत किसी भी कॉनट्रेक्ट कर्मचारी को बिना कारण बताए निकला जा सकता है. इसके बाद फेसबुक पर बच्चों ने नरेन् के समर्थन में लिखना शुरू किया. प्रशासन ने उनपर ‘सोशल मीडिया कोड ऑफ़ कंडक्ट’ के उल्लंघन का मामला बनाया. उन्हें नोटिस भेजकर कमिटी के सामने बुलाया गया और चेतवानी देकर छोड़ दिया. बाद में नरेन् ने कोर्ट का रुख किया.

समूचे मामले पर Catch news, south live, financial express, caravan, national dastak, telegrah ने भी रिपोर्टिंग की. मैंने न्यूज़लांड्री के लिए रिपोर्ट लिखी. बाकि किसी भी मीडिया संगठन पर कोई कारवाई नहीं की गई. यहाँ तक कि न्यूज़लांड्री के संपादकों से भी कोई सवाल नहीं पूछा गया लेकिन संस्थान ने अपने छात्र को निलंबित कर दिया.

एक पत्रकारिता संस्थान के महानिदेशक के तरफ से लगाये जा रहे इन आरोपों से मैं आहत हूं. मेरे सस्पेंशन प्रकरण में उनका इस कदर शामिल होना परेशानी भरा है. वो मेरे सस्पेंशन को, मेरे लिखने-पढने को आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से जोड़ रहे हैं. ये बात मुझे विचलित कर रही है साथ ही मुझे ताकत भी दे रही है. ये सिर्फ मेरी बात नहीं है ना ही लेफ्ट-राईट-सेंटर की लड़ाई है. ये जनवाद की संस्कृति पर हमला है. हमेशा चाहता रहा हूं लिखे पर चर्चा हो, यहाँ लिख देने की वजह से चर्चा हो रही है.

साथ ही साथ मैं पत्रकार बंधुओं से पूछना चाहता हूं- पत्रकार आखिर किसके लिए लिखते है? आज मुझपर संस्थान को बदनाम करने के आरोप लगे हैं. कल को देश के अंदर हो रही घटनाओं पर लिखने के लिए देश को बदनाम करने के आरोप लगा दिए जाएंगे. आप मीडिया को चौथा स्तंभ मानते हैं न, फिर बताइए पत्रकार आलोचनात्मक पक्ष नहीं रखेगा तो क्या कसीदे पढ़ेगा?

हमारे शिक्षकों ने जो हमें पढ़ाया, आज उनकी ये ख़ामोशी उस क्लासरूम से मेरा यकीन ख़त्म कर रही है. हमने कभी नहीं सोचा था छात्र-शिक्षक का रिश्ता सिर्फ क्लासरूम और स्टडी मटेरियल तक होता है. उनके द्वारा पढाई गई चीज़ों को लागू करना हमारी भूल थी. शुक्रिया टीचर्स मैं आज के बाद कभी भी क्लासरूम में आपसे कोई सवाल नहीं करूंगा. क्लास के लेक्चर का रिश्ता सिर्फ नंबर लाने तक ही रहने दूंगा. शुक्रिया.

देश भर से मिल रहे समर्थन का शुक्रगुजार हूं. आपकी वजह से ही हमारा पढ़ने-लिखने की दुनिया में यकीन कायम है. आप उस यकीन को और मजबूत कर रहे हैं.समाज को पत्रकार की जरुरत है लेकिन आज पत्रकार को भी समाज की जरुरत है. उसे अपने पाठकों-दर्शकों की जरुरत है. पत्रकारों के मार दिये जाने की ख़बरें आए दिन आप पढ़ते हैं. आज आपके सामने पत्रकारिता को मार दिये जाने की कोशिश की जा रही हैं. इसे बचा लीजिये. अगर पत्रकार के हौसले को आपका साथ नहीं मिला फिर आप उनसे कोई उम्मीद मत रखिएगा. पत्रकार भी सेल्समेन बन जाएगा.
बतौर नागरिक हमारा अपना एक व्यक्तित्व भी है. उसपर कोई संस्थान कैसे हावी हो सकता है?
-रोहिन कुमार