भारत कहीं पाकिस्तान के बिछाए जाल में तो नहीं फंस रहा

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ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के एक व्यक्ति की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर हो रही है जिसमें वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले की गर्दन दबाते हुए मुस्कुरा रहा है। यह मुस्कुराहट वही जज्बात हैं जो सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उफान पर हैं। भारत में बच्चे-बच्चे की जबान पर है। और पाकिस्तान में भी। कश्मीर की बात भी बच्चा-बच्चा कर रहा है। लेकिन यह तो कोई नई बात नहीं है। भारत और पाकिस्तान दोनों में बच्चे कश्मीर का नाम सुनते-सुनते बड़े होते हैं। और बड़े होते-होते इतना सुन चुके होते हैं कि कश्मीर उनके लिए एक आबादी का नाम नहीं रह जाता, बस एक मसला रह जाता है। एक मसला जो जज्बाती है और भूख-प्यास ही नहीं, जिंदगी से भी बड़ा है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों तरफ के जज्बात उबाल मार रहे हैं। भौंहें तनी हुई हैं, मुट्ठियां भिंची हुई हैं। ठीक उसी तरह जैसे मुंबई आतंकी हमले के बाद या संसद पर हमले के बाद हुआ था।

लेकिन उस बार से इस बार तक एक फर्क है। सर्जिकल स्ट्राइक लफ्ज का फर्क। भारतीयों को लग रहा है कि भारत अमेरिका और इस्राएल बन गया है। दुश्मन के घर में घुसकर मार रहा है। पर भारत अगर वाकई अमेरिका या इस्राएल बन गया है या बन रहा है, तो भारतीयों के साथ क्या हो सकता है। यह अमेरिकी विदेश मंत्रालय की विदेश जाने वाले अमरीकियों के लिए जारी होने वाली अडवाइजरी से समझा जा सकता है। उस अडवाइजरी से एक ही बात समझ आती है कि कोई अमेरिकी धरती पर कहीं सुरक्षित नहीं है। क्योंकि अमेरिका के साथ किसी को सहानुभूति नहीं है। उसके यहां डर पसरता है, हमले होते हैं और मासूम लोग मरते हैं। लेकिन कोई सहानुभूति की लहर नहीं उठती। ऐसा उन सर्जिकल स्ट्राइक्स की वजह से है, जो अमेरिका दुनियाभर में अंजाम देता है। लिहाजा, भारतीय अगर इस बात पर खुश हैं कि भारत इस्राएल या अमेरिका बन रहा है तो इसका दूसरा पहलू फौरन देखे जाने की जरूरत है। और दूसरा पहलू यह है कि भारत पाकिस्तान के बिछाए जाल में फंस रहा है।

कश्मीर में पिछले डेढ़ महीने में 100 से ज्यादा लोग हिंसा में मारे जा चुके हैं। दुनिया ने कहीं चूं तक नहीं की। न यूएन में कोई प्रस्ताव पास हुआ। न यूरोपीय संघ ने गुस्सा जाहिर किया और न अमेरिका ने अफसोस जताया। इसकी वजह है दुनिया में भारत की साख। दुनिया मानकर चल रही है कि भारत एक शांतिप्रिय मुल्क है और अगर लोग मर रहे हैं तो मजबूरन हो रहा होगा। क्योंकि भारत तो एक पीड़ित है। और पाकिस्तान को यही बर्दाश्त नहीं है। पाकिस्तान चाहता है कि लोग कश्मीर पर बात करें। भारत को पीड़ित नहीं आक्रांता मानें, एक ऐसा आक्रांता जो हमले करता है और जान लेता है।

सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे भारत के क्या मकसद रहे होंगे? अपने युद्धोन्मादी समर्थकों को शांत करने के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन हमलों से क्या हासिल करना चाहते होंगे? पहला तो आतंकवाद को करारा जवाब। यह दिखाना कि भारत आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा और मुंहतोड़ जवाब देगा। मुंहतोड़ जवाब देने का मकसद तो आतंकवाद को खत्म करना ही होगा न। तो इस सर्जिकल स्ट्राइक से क्या आतंकवाद खत्म हो जाएगा? हमले करके इस्राएल और अमेरिका ने आतंकवाद खत्म कर लिया क्या? खुद पाकिस्तान ने ही खत्म कर लिया क्या? पाकिस्तान की सेना दो साल से फाटा में आतंकवादियों के खिलाफ जर्ब-ए-अज्ब चला रही है। क्या आतंकवाद खत्म हो गया?

दूसरा पाकिस्तान में आतंकवाद की रीढ़ तोड़ना। पाकिस्तान के भीतर बने कैंपों को बर्बाद करना। क्या कोई भी समझदार इंसान मान सकता है कि इस तरह सर्जिकल स्ट्राइक करके या हमले करके आप उस तंत्र को खत्म कर सकते हैं जो पाकिस्तान के भीतर आतंकवाद का समर्थक है? दुनिया के किसी भी युद्ध ने ऐसा नतीजा नहीं दिया है। तीसरा, कश्मीर को छोड़कर आतंकवाद पर केंद्रित बात। क्या हमले करने से कश्मीर केंद्र से हट जाएगा?

दरअसल, इस तरह की कार्रवाइयों से भारत का एक भी असली मकसद हल नहीं हो रहा है बल्कि भारत की अपनी वह जमीन जरूर खिसक जाएगी जो उसने धैर्य का परिचय देते हुए तैयार की है। अब दुनिया इस बारे में बात कर रही है। जिस दुनिया ने उड़ी हमले पर एक लफ्ज नहीं बोला था, वह भारत की सर्जिकल स्ट्राइक की खबर सुनने के बाद परेशान है और भारत सरकार को लगातार आईएसडी कॉल्स आ रही हैं। यही तो पाकिस्तान चाहता था। यानी भारत पाकिस्तान के बिछाए जाल में फंस रहा है। क्या यह जीत है?

सौजन्य: विवेक कुमार ब्लॉग