भारत के स्कूली बच्चों में ड्रग्स और अल्कोहल के इस्तेमाल की लत बढ़ रही है। यह भी पाया गया है कि एक बार ड्रग्स के लती बन जाने पर ये बच्चे “ड्रग्स पेंडलर बनने” की राह पर चलने के प्रेरित किए जाते हैं और वे इस राह पर चलने के लिए काफी हद तक मजबूर भी हो जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश 2014 में एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर आया है। नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की इस एनजीओ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फूल्का ने देश के हर जिले में पुनर्वास और लत छुड़ाने के केंद्रों में खास तौर पर ड्रग एडिक्ट बच्चों के लिए अलग से व्यवस्था करने के निर्देश जारी करने की भी दरख्वास्त की।
इस बाबत दायर की गई याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार को इसके लिए एक राष्ट्रीय सर्वे करवाने को भी कहा है। इस सर्वे में देश भर के स्कूली बच्चों में अल्कोहल, कई तरह के ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों के इस्तेमाल से संबंधित जानकारी इकट्ठा की जाएगी।
न्यायाधीशों की बेंच ने बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम पर भी दुबारा ध्यान दिए जाने की जरूरत पर बल दिया। जजों ने पाठ्यक्रम में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल और उससे होने वाले बुरे असर के बारे में जानकारी दिए जाने पर बल दिया।