भारत ने खोज निकाला लाल प्याज में खतरनाक इबोला वायरस का इलाज

दिल्ली : भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (ट्रिपलआईटी) के वैज्ञानिकों को एक बड़ी कामयाबी मिली है। यहां के वैज्ञानिकों की टीम ने दुनिया के सबसे खतरनाक इबोला वायरल से होने वाली बीमारी का उपचार खोज निकाला है। वैज्ञानिकों ने रोजेले नामक सुर्ख लाल फूल के पौधे और लाल प्याज समेत कई अन्य पौधों में दो ऐसे कंपाउंड खोजे हैं, जिससे इस बीमारी के इलाज के लिए असरकार दवा तैयार की जा सकती है।

ट्रिपलआईटी के एप्लाइड साइंस विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रितिश भारद्वाज और उनके अधीन शोध कर रहे डॉ. उत्कर्ष राज ने इस खतरनाक बीमारी का इलाज खोजने की मुहिम 2015 से शुरू की थी। इन दोनों वैज्ञानिकों ने दुनियाभर के साढ़े चार हजार से अधिक पौधों के प्लेवोनाइड्स (पौधों में पाया जाने वाला ऐसा कंपाउंड जिनमें एंटी आक्सीडेन्ट गुण पाए जाते हैं) की अत्याधुनिक कम्प्यूटर सेमुलेशन तकनीक के जरिए जांच की। इस जांच में इन्हें इबोला वायरस पर असर करने वाले गासीपेटिन और टैक्सीफोलिन नामक दो कंपाउंड मिले।

इबोला के पांच वायरस होते हैं। इनमें से चार का इन्सानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। खास बात यह है कि यह दोनों कंपाउंड इन चारों वायरस पर असरकारी हैं। गासीपेटिन रोजेले नामक सुर्ख लाल फूल के पौधे में पाया जाता है तो टैक्सीफोलिन लाल प्याज के साथ ही चीन में पाए जाने वाले टैक्सस चिनेनसिस, साइबेरिया के लैरिक्स सिविरिका, रसिया के पाइनस राक्समुरगी समेत कई अन्य पौधों में पाया जाता है। दोनों वैज्ञानिकों की यह खोज (शोध पत्र) को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल इंटरडिस्पलिनरी साइंसेज में प्रकाशित हुई है। इसके साथ ही प्रतिष्ठित साइंस जर्नल करेंट साइंसेज के साइंस स्पॉटलाइट में भी इसे रिपोर्ट किया गया है।

इस वायरस की पहचान 1976 में कांगो मध्य अफ्रीका में इबोला नदी के किनारे हुई थी। इसलिए इसका नाम इबोला पड़ा। यह एक घातक संक्रामक रोग है जो पीड़ित व्यक्ति के पसीने, खून और लार से फैलता है। इसमें पीड़ित व्यक्ति के शरीर की नसों से खून बहना शुरू हो जाता है। त्वचा गलने लगती है। हाथ-पैर और यहां तक की पूरी शरीर गलने लगती है। इसमें 90 प्रतिशत रोगियों की मौत हो जाती है। उल्टी, दस्त, बुखार, सिरदर्द, रक्तस्राव, ऑखें लाल होना और मांसपेशियों में अकड़न इसके शुरुआती लक्षण हैं।