भारत सार्वजनिक क्षेत्र में बुरा प्रदर्शन करने वाली इकाइयों में अपनी हिस्सेदारी को बेचने के बारे में सोच रहा है, जिसके विरोध में ट्रेड यूनियनों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल करने की धमकी दी है ।
इस योजना के अनुसार, सभी बीमार इकाईयां निजी क्षेत्र को सोंप दी जाएंगी और इसके कारण हज़ारो की संख्या में लोगो की नौरियों के जाने का खतरा है। सरकार की इस योजना की विपक्ष ने आलोचना की हैं और अर्थशास्त्रियों ने यह चेतावनी दी है की यह फैसला गलत साबित हो सकता है ।
हलाकि पिछले दो सालो में दुनिया में सकल घरेलु उत्पाद की वृद्धि सबसे ज़्यादा हुई है परंतु रोज़गार का निर्माण २०१५ में सबसे कम हुआ है। २०१५ में केवल १३५००० नौकरियां पैदा की गयी हैं परंन्तु सरकारी आंकड़ो के अनुसार १.२ करोड़ लोगो ने नौकरी के बाजार में प्रवेश किया था।
अर्थव्यवस्ता का धीमा विकास मोदी सरकार के लिए एक चुनौती भरा काम हैं क्योंकि २०१४ में वे भारी बहुमत से लोगो की इसी उम्मीद पर जीते थे की वे देश में नयी नौकरियों का निर्माण करेंगे ।
बिक्री के लिए लक्षित कंपनियों में स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड, भारत पंप्स एंड कंप्रेशर्स लिमिटेड और परियोजना एवं विकास इंडिया लिमिटेड शामिल हैं और यह सभी उत्तर प्रदेश में स्थित हैं, जहाँ फरवरी ११ को चुनाव होने हैं। गौरतलब है की इन चुनावो को मोदी के लिए सबसे महत्वपूर्ण चुनावो के रूप में देखा जा रहा है।
“सरकार का विनिवेश कार्यक्रम मुख्य रूप से राजस्व के लिए है”, साशा रिजर -कोसितस्कय, यूरेशिया ग्रुप के एक एशिया विश्लेषक ने कहा। “हालांकि प्रभावी रूप से इन बीमार इकाइयों को बेच कर भी सरकार को पैसे जुटाने में मुश्किल होगी , इस निर्णय को लेने के बाद भी सरकार को इन कंपनियों के ऋणों का भुगतान करना पड़ेगा। उन्होंने कहा की भुगतान करने के लिए पैसा केवल इन इकाइयों के पास होने वाली शहरी और औद्योगिक भूमि से हो सकता है। ”
सरकार का यह निर्णय बिना सार्वजनिक खर्च को कम किये, एशिया के व्यापक बजट घाटे को कम करने के लिए है । यह अनुमान है की विनिवेश से ५६५ अरब रुपयो का फायदा होगा जिसमे से २०७ अरब रुपये मार्च २०१७ तक रणनीतिक बिकी से इकठा किया जायेगा ।
इंडियन रेटिंग रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री , देवेंद्र कुमार पन्त ने कहा की “वर्तमान परिदृश्य में जहाँ नौकरियों में कोई वृद्धि नहीं हो रही है , और जिन लोगो के पास नौकरी है अगर वे भी नौकरी खो देंगे तो यह सरकार के लिए चिंता का बहुत बड़ा विषय बन सकता है ” ।
हड़ताल का खतरा
भारतीय मजदूर संघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ट्रेड यूनियन शाखा जिसके ११ लाख लोग सदस्य है – और जो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक माता-पिता होने का दावा करती है- वे बिक्री और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विनिवेश का विरोध कर रही है और उन्होंने अखिल भारतीय हड़ताल करने की धमकी दी है अगर सरकार अपनी योजना के साथ बढ़ी ।
सरकार को इस निर्णय को लागु करने से पहले नौकरियों के नुक्सान के मुद्दे पर लोगो से बात करनी चाहिए , बृजेश उपाध्याय, संघ के महासचिव ने एक साक्षात्कार में कहा। हम चाहते हैं की सरकार प्रौद्योगिकी अद्यतन और अन्य व्यवसायों में बीमार इकाइयों में विविधता लाने का प्रयास करे और उन्हें पुनर्जीवित करने की कोशिश करे।
राजनीतिक उथलपुथल
नौकरियों की कमी और मज़दूर संघ की हड़ताल के खतरे में ऐसा लगता है की सरकार अपने विनिवेश का फैसला बहुत सोच समझ कर लेगी , वो जल्द-बाज़ी में सभी कंपनियों को बेचने की गलती नहीं करेगी, रिजर -कोसितस्कय ने कहा ।
आगामी उत्तर प्रदेशो के चुनावो के कारण सरकार नहीं चाहेगी की विपक्ष सरकार के इस फैसले को उनके खिलाफ इस्तेमाल करे और लोगो को यह बताये की यह सरकार लोगो के खिलाफ है।