भारत में पहला कन्या स्कूल खोलने में अहम योगदान देनेवाली फ़ातिमा शेख़

भारत का पहला कन्या स्कूल खोलने में फ़ातिमा शेख़ ने सावित्रीबाई फुले की मदद की थी. लेकिन फ़ातिमा शेख़ आज गुमनाम हैं और उनके नाम का उल्लेख कम ही मिलता है. फ़ातिमा शेख सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थी. जब ज्योतिबा और सावित्री फुले ने ये स्कूल खोलने का बीड़ा उठाया, तब फ़ातिमा शेख़ ने भी इस मुहिम में साथ दिया.
उस ज़माने में अध्यापक मिलने मुश्किल थे. फ़ातिमा शेख ने सावित्रीबाई के स्कूल में पढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी संभाली. इसके लिए उन्हें समाज के विरोध का भी सामना करना पड़ा. फुले के पिता ने जब दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे उनके कामों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था, तब फ़ातिमा शेख़ के बड़े भाई उस्मान शेख़ ने ही उन्हें अपने घर में जगह दी.

फ़ातिमा शेख़ और उस्मान शेख़ ने ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई को उस मुश्किल समय में बेहद अहम सहयोग दिया था. लेकिन अब बहुत कम ही लोग उस्मान शेख़ और फ़ातिमा शेख़ के बारे में जानते हैं. हमने बचपन में फ़ातिमा शेख़ के बारे में स्कूली किताबों में पढ़ा है लेकिन इससे ज़्यादा जानकारी उनके बारे में नहीं है. कुछ समूहों ने उनके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश की है. फ़ातिमा शेख़ का क्या हुआ और उन्होंने कैसे ज़िंदगी बिताई इसके बारे में बहुत जानकारियां अभी नहीं मिली हैं, लेकिन अधिक जानकारियां जुटाने की कोशिशें जारी हैं.

एक ऐसे समय में जब देश में सांप्रदायिक ताक़तें हिंदुओं-मुसलमानों को बांटने में सक्रिय हों, फ़ातिमा शेख़ के काम का उल्लेख ज़रूरी हो जाता है.उस समय फ़ातिमा शेख़ के काम को मुस्लिम समाज में कितना समर्थन मिला, ये कहना मुश्किल है लेकिन हालात के मद्देनज़र ये कहा जा सकता है कि उन्हें भी विरोध का ही सामना करना पड़ा होगा.
सावित्रीबाई के योगदान को तो इतिहास ने दर्ज किया है लेकिन शुरुआती लड़ाई में उनकी सहयोगी रहीं फ़ातिमा शेख़ और उस्मान शेख़ के उल्लेख न हो पाना दुखद है.
स्त्रीमुक्ति आंदोलन की अहम किरदार रहीं फ़ातिमा पर शोध की ज़रूरत है. इतिहास के ऐसे मौन बहुत कुछ कहते हैं.

स्रोत : बीबीसी हिंदी डॉट कॉम