हैरानी इस बात पर नहीं कि पीपुल्ज़ पार्टी के रहमान मलिक और चौधरी एतेज़ाज़ एहसन को सूरे इख़लास याद नहीं,तशवीश इस बात की है कि उन जैसे पढ़े लिखे लोग भुट्टो ख़ानदान की क़ब्रों पर जा कर क्या पढ़ते होंगे? सूरे इख़लास के बगै़र फ़ातिहा ख़वानी मुकम्मल नहीं होती जबकि ये लोग भुट्टो के मज़ार पर हाथ उठा कर खड़े हो जाते हैं और किसी कैमरे वाले को कुछ मालूम नहीं कि ये दानिश्वर और सियासतदान अपनी तोतली ज़बान में कौन सी सूरत तिलावत फ़र्मा रहे हैं।
सूरे इख़लास मुसलमानों के बच्चे बच्चे को ज़बानी याद है। बच्चा जब बोलना सीखता है तो उस की माँ या दादी नानी उसे अल्लाह,बिसमिल्लाह ,लाईलाहा इल्लल्लाह ,के बाद चौथी जो चीज़ याद कराती हैं वो सूरते इख़लास है और जब बच्चा सूरते इख़लास याद कर लेता है तो माँ अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के सामने बड़े फ़ख़र से अपने बच्चे को सूरते इख़्लास सुनाने के लिए कहती है।
जब बच्चा अपनी तोतली ज़बान में क़ुल हु वल्ला हु अहद.. मुकम्मल सूरत सुना रहा होता है तो फ़रिश्ते भी इस नन्हे फ़रिश्ते को अपने परों में छिपा लेते हैं।