मैं भूखा हूँ लेकिन अपने पैसों से खाना नहीं खरीद सकता

दिल्ली/ लखनऊ: काले धन को लेकर सरकार की परेशानी से तो पूरा देश वाकिफ है लेकिन यह परेशानी एक आम आदमी की ज़िन्दगी में इस कदर परेशानियां ले आएगी यह 8 नवम्बर 2016 से पहले किसी ने सोचा न था।

देश के कोने-कोने में से देश की आम जनता जहाँ मोदी सरकार के इस फैसले की तारीफ कर रही थी वहीँ सफर कर रहे, बिमारियों से जूझ रहे, खाने की तलाश में ढाबों पर डेरा जमाने वाले लाखों लोग मोदी के इस फरमान की वजह से गालियों की नॉनस्टॉप पेशकश देने में भी लगे हुए थे।

किसी के लिए सवाल था दवाई का, किसी के लिए घर पहुँचने के लिए लिए जाने वाले टिकट का और किसी के लिए रोटी का इन सभी सवालों का हमेशा से जवाब बनते आये 500 और 100 के नोटों को आज इस तरह से अनदेखा किया जा रहा था जैसे नोट पर छपे गांधी जी की तस्वीर से लेनदेन करने वालों को नफरत हो गयी हो।

चारबाग़ रेलवे स्टेशन पर भी हाल कुछ अजब सा था। जेब में पैसा लिए सीन फुलाये घूमने वाले आज चाय तक के लिए तरसते फिर रहे। न तो टिकट बेचने वाले एजेंट की नजर में 500 और हज़ार के नॉट की कोई कीमत थी और न ही उनके बदले कोई भूखे मुसाफिर को कहना देने को राजी था।