भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई के नाम डा॰ उमर फारूक़ का खुला पत्र

प्रिय तृप्ति देसाई जी ,
प्रमुख “भूमाता ब्रिगेड संस्था”
पुणे ( महाराष्ट्र ) ।
तृप्ति देसाई जी,
जैसा कि मीडिया के माध्यम से सभी देशवासियों को ज्ञात हुआ है कि आप कई वर्षों से महिलाओं के हितों की रक्षा के लिये काम कर रही हैं । इसके लिये आप एक भूमाता ब्रिगेड नाम की संस्था भी चला रही हैं । सिर्फ पुणे में ही नहीं आपकी संस्था की शाखा की जडें अहमदनगर,शोलापुर और नासिक में भी हैं ,जिसमें पाँच हज़ार से ज़्यादा महिलायें आपके साथ जुडी हुयी है जिनमें लगभग 99% प्रतिशत महिलायें सिर्फ एक ही ख़ास धर्म (हिन्दू धर्म) से ताल्लुक रखती हैं । ज्ञात है कि शनि शिंगनापुर मंदिर में आपने प्रवेश के लिये मुहिम शुरू की थी तथा आपने कई बार मंदिर में प्रवेश की कोशिश लेकिन आपको प्रवेश नहीं करने दिया गया। इसके बाद आपने हाईकोर्ट में अर्जी दायर की जिसके बाद कोर्ट ने भी आपके पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि स्त्री पुरूष को लेकर समाज में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। गत दिनों समाज में महिलाओं की बराबर भागीदारी को लेकर आपने आरएसएस में महिलाओं को बराबरी का अवसर देने की मांग को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को चिट्ठी भी लिखी है जबकि आप जानती हैं आरएसएस महिलाओं और दलितों के बारे में जो शर्मनाक और अमानवीय दृष्टिकोंण रखता है ये किसी से छुपा हुआ नहीं है ।
तृप्ति देसाई जी आप मंदिरों में प्रवेश के लिये तो आंदोलन चलाती हैं परंतु महिलाओं के समबंध में जो हिंदू धर्म में मनु के द्वारा बनाये गये कानून हैं उसपर अपनी चुप्पी साध लेती हैं ऐसा क्यों ?, आख़िर आप क्यों महिलाओं के मुद्दे को जानबूझकर दूसरी दिशा में मोड रही हैं । ज़ाहिर बात है महिलाओं को मंदिर जाने या न जाने से फर्क नहीं पडता पर मनु के द्वारा बनाये गये कानून जिसपर आरएसएस की बुनियाद है उससे ख़ासा फर्क पडता है । मनुस्मृति में महिलाओं के समबंध में जो मनु के कानून हैं उनके निम्नलिखित उदाहरण नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
1-पुरूषों को अपनी स्त्रियों को सदैव रात दिन अपने वश में रखना चाहिये । (9/2)
2- स्त्री की बाल्यावस्था में पिता , युवास्था में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र रक्षा करते हैं , अर्थात वह उनके अधीन रहती है और उसे अधीन ही बने रहना चाहिये ;एक स्त्री कभी भी स्वतंत्रता के योग्य नहीं है । (9/3)
3- बिगडने के छोटे से अवसर से भी स्त्रियों को प्रयत्नपूर्वक और कठोरता से बचाना चाहिये , क्योंकि न बचाने से बिगडी स्त्रियाँ दोनों (पिता और पति) को कलंकित करती हैं ।(9/5)
4- स्त्रियों के जातकर्म एवं नामकर्म आदि संस्कारों में वेद मंत्रों का उच्चारण नहीं करना चाहिये । यही शास्त्र की मर्यादा है क्योंकि स्त्रियों में ज्ञानेन्द्रियों के प्रयोग की क्षमता का अभाव होता है ।(9/18)
5- ये स्त्रियाँ न तो पुरूष के रूप की और न ही उसकी आयु का विचार करती हैं । इन्हें तो केवल पुरूष के पुरूष होने से प्रयोजन है । यही कारण है कि पुरूष को पाते ही ये उससे संभोग के लिये प्रस्तुत हो जाती हैं चाहे वो कुरूप हो या सुदंर । (9/14)
तृप्ति देसाई जी ये तो चंद उदाहरण हैं जो मेने प्रस्तुत किये हैं वरन तो मनुस्मृति जिसपर संघ की बुनियाद है महिला और शूद्रविरोधी एजेंडे से पटी पडी है । अब बताईये आख़िर आप क्यों महिलाओं के हितों की आड में देश के सबसे  मुख्य महिला विरोधी समूह की गोद में जाकर बैठने को बैताब दिख रही हैं , कभी आप मंदिर में घुसने का मुद्दा उठाती हैं तो कभी हाजी अली दरगाह में घुसने के लिये आरएसएस के आगे हाथ फैलाती नज़र आती हैं ,वास्तव में अगर ठंडे दिमाग से सोचा जाये तो आप कहीं से भी महिलाओं के हितों की रक्षा करते तो नहीं अपितु इसके नाम पर सस्ती शोहरत और महिलाओं के मुख्य अधिकारों से उनको वंचित करने के एक ख़ास षडयंत्र में शामिल दिखाई देती हैं , यदि आपको महिला हितों की तनिक भी परवाह होती तो आप आरएसएस के एजेंडे जिस पर उसकी बुनियाद है मनुस्मृति उसका विरोध करती हैं । ख़ैर छोडिये आप नहीं समझेंगी आज देश की महिलाओं को मंदिर या दरगाह में प्रवेश की नहीं , शिक्षा और समाज में बराबरी के अधिकार की आवश्यकता है । अगर धर्म का चश्मा उतार कर देखा जाये तो मुहम्मद साहब के इन दो कथनों से ही महिला सशक्तीकरण की असल परिभाषा महिलाओं की समाज में असल हैसियत और उनको दिये गये विशेष दर्जे को समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा –
1- जिसने अपनी बेटी को अच्छी तरह पाला-पोशन किया, शिक्षा दी , विवाह कराया वोह पिता स्वर्ग में जायेगा !
2- औलाद में सबसे अफज़ल बैटियाँ हैं ।
और ये तभी मुमकिन हो सकता है जब आरएसएस जैसी महिला विरोधी संगठनों का आप जैसे लोगों का उनमें भागीदारी का नहीं , उनका ख़ुलकर प्रखर विरोध किया जायेगा जो कि असल में धार्मिक ग्रंथों से मान्यता प्राप्त महिला विरोधी ग्रंथ को अपनी बग़ल में दबाये बैठे हैं , बाकी आप लगाते रहिये झूँठी महिला अधिकारों के नारे सभ्य समाज आपकी चालें और महिला अधिकारों के नाम पर आपका दोहरा मापदंड बख़ूबी समझ रहा है !
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डा॰ आपका शुभचिंतक
उमर फारूक़ आफरीदी