केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के जाने पर पाबंदी की परंपरा को लेकर सुप्रीम कोर्ट कहा है कि मंदिर प्रशासन का कहना है भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी है और उनकी पवित्रता बनी रहे इसलिए उन्होंने परंपरा बनाई है कि महिलाएं मंदिर में नहीं जा सकती। कोर्ट का कहां है कि वह इस मुद्दे में नहीं जाना चाहता लेकिन इस बात पर विचार करेगा कि क्या यह परंपरा संविधान की कसौटी पर खरी उतरती है या नहीं क्यूंकि हिन्दू धर्म में महिला या पुरुष के आधार पर कोई भेद नहीं है। एक हिन्दू बस हिन्दू है। मंदिर में 10 साल की लड़कियों से लेकर से 50 साल तक की महिलाओं के जाने पर पाबंदी है। एक महिला संगठन और लायर्स एसोसिएशन ने अर्जी दायर कर यह मामला अदालत में उठाया है। इनका कहना है कि संविधान में महिलाओं को बराबरी का हक मिला हुआ है। महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने से रोकना लिंग आधारित भेदभाव है जिसको रद्द किया जाना चाहिए। कल कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट इंद्रा जयसिंह का कहना है कि महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलाव (मासिक धर्म) के कारण ये पाबंदी लगाई गई है लेकिन मंदिर एक सार्वजनिक जगह है, वहां पर महिलाओं को जाने से कोई रोक नहीं सकता।