मंदिर के नारीयल से आनधराई होटलों में खोपरे की चटनी

नुमाइंदा ख़ुसूसी-ये ऐसा दौर है कि हर क़दम फूंक फूंक पर रखना पड़ता है। इंसान किस पर भरोसा करे और किस पर ना करे ये तै करना मुश्किल होगया है। इसी तरह किया खाया जाय और क्या ना खाया जाय ये तो और भी बड़ा और संगीन मसला बनता जा रहा है। क्या हलाल है और क्या हराम है कुछ कहा नहीं जा सकता। सब शक-ओ-शुबा के दायरा में शामिल होगए हैं।

मिलावट की बात तो छोड़ीए पहले दूध में पानी मिलाया जाता था लेकिन ज़माना ने तरक़्क़ी करली है अब दूध में पानी के बजाय मुख़्तलिफ़ केमीकलस मिलाए जा रहे हैं जो इंसानी सेहत के लिए बेहद नुक़्सानदेह साबित होते हैं इस का इन्किशाफ़ इलैक्ट्रॉनिक मीडीया और अख़बारात करचुके हैं। मौज़ा नादिर ग़ुल जो शहर से 20 केलो मीटर दूर है एक दो नहीं बल्कि कई ग़ैर आबाद मसाजिद देखने और उन का मुआइना करके वापिस होरहे थे कि सुरूर नगर के क़रीब रोड पर काली माता का मंदिर है जिस के अतराफ़ ज़मीन पर कसीर तादाद में नारीयल खोपरे सुखाय जा रहे थे।

हमारे ज़ेहन में कई सवालात पैदा हुए। पहले हम ने मंदिर के पुजारी से इजाज़त लेकर मंदिर के अतराफ़ बिखरे हुए नारियलों की तसावीर लें फिर बातचीत का आग़ाज़ किया और इस गुफ़्तगु के दौरान हैरतअंगेज़ इन्किशाफ़ हुआ। पुजारी ने एक सवाल के जवाब में कहाकि ये मंदिर शहर से कुछ बाहर है। मंदिर और देवी के भगत कसीर तादाद में अपनी मुराद पूरी होने पर मंदिर आते हैं और हर कोई साथ में नारीयल ज़रूर लाता है। हम इस नारीयल (खोपरी) को सुखाकर तेल निकालने वाली कंपनीयों को फ़रोख़त करदेते हैं।

आम तौर पर इडली, वड़ा के साथ दी जाने वाली चटनी में यही खोपरा इस्तिमाल होता है। दिन में वक़फ़ा वक़फ़ा से होटल वाले जो ज़्यादा तरह आंधरा होटलों से ताल्लुक़ रखते हैं यहीं से कच्चा खोपरा ले जाते हैं और तेल निकालने वाली कंपनीयां सूखा खोपरा ले जाती हैं। इन की ज़रूरीयात सूखा खोपरा होती है हमारे मंदिर आने वाले ये सब जानते हैं हम चोरी छिपे ये ख़रीद-ओ-फ़रोख़त नहीं करते क्यों कि ये अवाम का दिया हुआ नारीयल है। हम इस आमदनी से मंदिर की देख भाल करते हैं। Maintenance इसी रक़म से होता है और मंदिर के डीवलपमेनट पर यही पैसा लगाया जाता है।

मंदिर के पुजारी ने बड़ी बेबाकी से तस्लीम किया कि अगर इन नारियलों को फ़रोख़त ना किया गया तो इतनी बड़ी तादाद का हम क्या करसकते हैं। आधा नारीयल हम ले लेते हैं और आधा उन को देते हैं जो लाते हैं ये बतौर प्रसाद होता है। हम ये नारीयल काली माता की मूर्ती पर 3 मर्तबा सामने घुमाकर माता के पैरौओं के पास रखते हुए पत्थर पर फोड़ते हैं। क़ारईन ये बात तो सामने आगई कि मंदिरों के नारियलों से कुछ होटलों में चटनी बनती है और तेल भी निकाला जाता है।