मंसूबाबंदी कमीशन के आदाद-ओ-शुमार गरीबों को महरूम करने की साज़िश

बी जे पी ने आज कहा कि मंसूबा बंदी कमीशन के आदाद-ओ-शुमार से ज़ाहिर होता है कि ख़ित्ता ग़ुर्बत की सतह से नीचे ज़िंदगी गुज़ारने वाले अवाम की तादाद में कमी आई है। ये गरीबों को हुकूमत की स्कीमों से महरूम करने की साज़िश है। बी जे पी ने कांग्रेसी क़ाइदीन को चैलेंज किया कि वो वज़ाहत करें कि कोई शख़्स रोज़ाना 34 रुपय में कैसे ज़िंदा रह सकता है। बी जे पी के तर्जुमान प्रकाश जो अड्डे कर ने कहा कि ताज़ा तरीन रिपोर्ट ज़ाहिर करती है कि ख़ित्ता ग़ुर्बत की सतह से नीचे अफ़राद की तादाद कम होगई है।

ये एक साज़िश है ताकि गरीबों को ख़ित्ता ग़ुर्बत की सतह से नीचे ज़िंदगी गुज़ारने वालों को फ़ायदा पहुंचाने केलिए हुकूमत की मालना स्कीमों के फ़वाइद से महरूम किया जाये। उन्होंने कहा कि ये कांग्रेस की गरीब दुश्मन ज़हनियत है। ग़ुर्बत के आदाद-ओ-शुमार से कीमतों में इज़ाफ़ा की अक्कासी नहीं होती। ये सिर्फ़ एक सियासी नाटक है ताकि ज़ाहिर किया जा सके कि अवाम की ज़्यादा तादाद अब ग़ुर्बत से छुटकारा हासिल करचुकी है, इस केलिए ग़ुर्बत के पैमानों में कमी की जा रही है।

उन्होंने कहा कि बी जे पी कांग्रेसी क़ाइदीन को चैलेंज करती है कि वो वाज़िह करें कि सिर्फ़ 34 रुपये रोज़ाना आमदनी में कोई शख़्स कैसे ज़िंदा रख सकता है। वो सिर्फ़ ये ज़ाहिर करनाचाहते हैं कि मालदार अवाम की तादाद में इस केलिए उन्होंने ग़ुर्बत की तारीफ़ ही तब्दील करदी है। उन्होंने कहा कि हुकूमत के मुक़र्ररा मीआर के मुताबिक़ जो शख़्स रोज़ाना 34 रुपये कमाता है वो ख़ित्ता ग़ुर्बत से ऊपर है। बी जे पी जानना चाहती है कि जब रंगा राजन कमेटी सुप्रीम कोर्ट की ज़ेरे निगरानी ग़ुर्बत के मसले का जायज़ा ले रही है तो हुकूमत को नए आदाद-ओ-शुमार पेश करने की कौनसी उजलत थी।

प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि बी जे पी कांग्रेस की गरीब दुश्मन हिक्मत-ए-अमली की मज़म्मत करती है जिस के तहत इनका कहना है कि रोज़ाना 34 रुपये कमाने वाला शख़्स गरीब नहीं है। इससे ग़ुर्बत की शिद्दत में कमी नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि हुकूमत ने उजलत में एक ग़लत और ख़ुशनुमा तस्वीर पेश की है, हालाँकि वो अच्छी तरह जानती है कि अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी कह चुकी है कि मुल्क के 70 फ़ीसद अवाम ख़ित्ता ग़ुर्बत की सतह से नीचे ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।

प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि अमली एतबार से ग़ुर्बत के आदाद-ओ-शुमार के तीन केलिए साबिक़ा मुतनाज़ा तरीके पर क़ायम रहते हुए मंसूबा बंदी कमीशन ने कहा है कि ख़ित्ता ग़ुर्बत की सतह से नीचे ज़िंदगी गुज़ारने वाले अवाम की तादाद शहरी और देही दोनों इलाक़ों में कम होचुकी है। जो अवाम ख़ित्ता ग़ुर्बत की सतह से नीचे ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं , उनकी तादाद 2011-12 में कम होकर 21.9 होचुकी थी जो 2004-05 में फी कस अख़राजात में इज़ाफ़ा की बिना पर 37.2 फ़ीसद थी। मंसूबा बंदी कमीशन का यही दावा है।