नई दिल्ली
कांग्रेस ने आज कहा कि मंसूबा बंदी कमीशन का ख़ातमा गैर ज़रूरी, कम नज़री और ख़तरनाक है। इसके तवील मुद्दती मनफ़ी असरात मर्कज़ रियासत ताल्लुक़ात पर मुरत्तिब होंगे और कहा कि मंसूबा बंदी कमीशन को दुबारा तरबियत की ज़रूरत है, सियासी तदफ़ीन की नहीं।
पार्टी के तर्जुमान आनंद शर्मा ने अपने एक बयान में कहा कि मंसूबा बंदी कमीशन के नाम की तबदीली क़ौमी मुफ़ाद में नहीं है और उस की मुख़ालिफ़त ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि मंसूबी बंदी कमीशन में खामियां होसकती हैं, लेकिन उसको विरसा में दबाओ भी मिला था। आनंद शर्मा ने वज़ीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी की जानिब से वुज़राए आला का एक इजलास तल्ब करने पर ताकि मंसूबा बंदी कमीशन का मुतबादिल क़ायम किया जा सके, तन्क़ीद करते हुए कहा कि ये अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि वज़ीर-ए-आज़म दावा करते हैं कि वो रियासती हुकूमतों को बाइख़तियार बनाना और वफ़ाक़ी ढांचे का इस्तेहकाम चाहते हैं जब कि उन्होंने क़ौमी तरक़्क़ियाती काउंसिल का इजलास तल्ब किए बगैर और रियासतों से मुशावरत के बगैर मनमाने फैसला करलिया है।
राज्य सभा में कांग्रेस के डिप्टी लीडर आनंद शर्मा ने इल्ज़ाम आइद किया कि ये कार्रवाई गैर ज़रूरी है, क्योंकि इस से मुल्क के वफ़ाक़ी ढांचे की अहमियत कम होजाती है। आनंद शर्मा ने याद दहानी की कि मंसूबा बंदी कमीशन 15 मार्च 1950 को मर्कज़ी काबीना में एक क़रारदाद की मंज़ूरी के ज़रिये अमल में लाया गया था और इस ने आज़ाद हिंद के अवाम के मीआर-ए-ज़िंदगी को बुलंद किया था।