मआशी बोहरान के अंदेशे

गुज़शता दो दहों में हिंदूस्तान ने मआशी फ़राख़दिलाना पालिसीयों की वजह से काफ़ी तरक़्क़ी की है और कई शोबा जात ऐसे हैं जहां हिंदूस्तान ने ज़बरदस्त पेशरफ़त की है । फ़राख़ दिलाना पालिसीयों के नतीजा में सनअती तरक़्क़ी भी बेमिसाल रही ।

बेशुमार नई सनअतें क़ायम हुईं और सरमाया कारी के लिए साज़गार माहौल को देखते हुए बैरूनी कंपनीयां भी हिंदूस्तानी मार्किट का हिस्सा बन गईं । हिंदूस्तानी और दूसरी हमा क़ौमी कंपनीयों के बाहमी इश्तिराक के नतीजा में कई अहम प्राजेक्टस भी शुरू हुए और जवाइंट वेंचर्स का आग़ाज़ हुआ । हिंदूस्तानी कंपनीयों को दूसरे ममालिक की कंपनीयों से इश्तिराक के नतीजा में काफ़ी तजुर्बात भी हासिल हुए । इस तजुर्बा को हिंदूस्तान में भी बरुए कार लाया गया और इस से भी तरक़्क़ी की मनाज़िल तय् की गईं।

ना सिर्फ सनअती हलक़ों में ज़बरदस्त तरक़्क़ी हुई बल्कि इस तरक़्क़ी के हिंदूस्तानी अवाम के मियार-ए-ज़िंदगी पर भी मुसबत असरात मुरत्तिब हुए । ये अलग बात है कि इस तरक़्क़ी के समरात की तक़सीम इस अंदाज़ में नहीं हो पाई है जिस तरह से होनी चाहीए था ।

इस का नतीजा ये हुआ कि मुल्क़ के जो अमीर और करोड़पती थे वो और भी अमीर हो गए और उन की दौलत में दिन दूनी और रात चौगुनी तरक़्क़ी होती गई और मलिक के जो ग़रीब थे वो ग़रीब ही रहे । ग़रीबों के मियार-ए-ज़िंदगी पर कोई ख़ास असरात मुरत्तिब नहीं हुए और ना उन की ज़िंदगीयों में किसी तरह की मुसबत तबदीली देखने में नहीं आई । ताहम ये भी हक़ीक़त रही कि मिडल क्लास तबक़ा को इस से कुछ हद तक फ़ायदा हुआ और हिंदूस्तान अवाम ने ख़ुद अपने मियार-ए-ज़िंदगी में तबदीली लाने के ख़ाब देखने शुरू किए ।

आम आदमी की तरक़्क़ी का अगर सनअती हलक़ों और बड़े कॉरपोरेट घरानों की तरक़्क़ी से तक़ाबुल किया जाय तो फिर आम आदमी की तरक़्क़ी ना होने के बराबर ही कही जा सकती है । सनअती घरानों की दौलत में कई सौ बल्कि हज़ार फ़ीसद इज़ाफ़ा भी दर्ज हुआ है जबकि आम आदमी की आमदनी में कोई ख़ास इज़ाफ़ा नहीं होसका बल्कि कुछ तबक़ात तो ऐसे हैं जिन की ज़िंदगीयों पर मआशी फ़राख़दिलाना पालिसीयों का कोई असर भी नहीं हुआ। इबतदा-ए-में ज़बरदस्त कामयाबी और मईशत को तरक़्क़ी की राह पर गामज़न करने के बाद इन पालिसीयों के मुज़िर असरात अब देखने में आ रहे हैं और अब मईशत सुस्त रवी का शिकार होनी शुरू हो गई है ।

जिस वक़्त मआशी फ़राख़दिलाना पालिसीयों का आग़ाज़ हुआ उस वक़्त इस के मुसबत पहलूओं और फ़ौरी नताइज ही को ज़हन में रखा गया । इस के मुज़म्मिरात और दूर रस असरात को ज़हन में रखते हुए इस के तदारुक केलिए कोई इक़दामात नहीं किए गए । ]

अंधा धुंद अंदाज़ में इन पालिसीयों पर अमल शुरू होगया और इस के फ़ौरी नताइज ने और भी इस के मनफ़ी असरात की सिम्त ग़ौर करने का मौक़ा ही फ़राहम नहीं किया । ताहम अब तक़रीबन दो दहों के अर्सा के बाद इस के मनफ़ी असरात होने लगे हैं और हुकूमत को भी ये एतराफ़ करना पड़ रहा है कि मौजूदा मआशी सूरत-ए-हाल और सुस्त रवी से निमटने केलिए कुछ नए तरीक़े इख़तियार करने चाहिऐं।

सनअती हलक़ों का तो ये भी कहना है कि अगर मौजूदा हालात में कोई ख़ास तबदीली नहीं आती और सूरत-ए-हाल को मज़ीद बिगड़ने से बचाने में कामयाबी नहीं मिली तो फिर मआशी पालिसीयों में तबदीली के ताल्लुक़ से भी ग़ौर करना पड़ेगा। ये ज़रूरत उस वक़्त ज़ाहिर की जा रही है जब फ़राख़दिलाना पालिसीयों का सफ़र तवालत इख़तियार करचुका है और फ़ौरी तौर पर इन पालिसीयों में तबदीली या कुछ हद तक तरामीम भी मुम्किन नहीं हैं। इन तबदीलीयों केलिए भी कुछ वक़्त दरपेश होगा और इस वक़्त तक मईशत की मौजूदा रफ़्तार भी मुतास्सिर हुए बगै़र नहीं रहेगी।

यक़ीनी तौर पर मआशी सुस्त रवी पर आलमी मआशी सूरत-ए-हाल का असर भी है लेकिन आलमी सुस्त रवी भी इसी तरह की पालिसीयों का नतीजा हैं जो हिंदूस्तान में इख़तियार की गई हैं। हिंदूस्तान ने दीगर ममालिक की ही इत्तिबा मैं फ़राख़दिलाना पालिसीयां इख़तियार की थीं। जब इन ममालिक को मुश्किलात का सामना करना पड़ा तो हिंदूस्तान भी मुतास्सिर हुए बगै़र नहीं रह सका ।

मौजूदा दौर में मआशी निज़ाम एक कड़ी की शक्ल में दूसरे हालात से जुड़ा हुआ है और जहां कहीं हालात ख़राब हुए इस का मईशत पर असर होना लाज़िमी अमर है । हिंदूस्तान में इस के असरात दुनिया के दीगर ममालिक की बनिसबत क़दरे ताख़ीर से देखने में आए हैं लेकिन हिंदूस्तान इस सुस्त रवी से अपने आप को पूरी तरह बचाने में कामयाब नहीं हो सका है ।

अब मुल्क में जुमला घरेलू पैदावार की शरह भी घट गई है और गुज़शता साल की बनिसबत साल-ए-रवां इस तनासुब में मज़ीद कमी आऐगी । सनअती पैदावार और खासतौर शोबा शदीद मुतास्सिर है । ये मनफ़ी की शरह इख़तियार करचुका है । सनअती हलक़ों का कहना है कि हुकूमत को अब सनअती हलक़ों की मदद केलिए आगे आना चाहीए बसूरत-ए-दीगर हालात और बिगड़ जाएं जिस का असर यक़ीनी तौर पर मलिक के अवाम और उन के मियार-ए-ज़िंदगी के इलावा मुलाज़मतों पर भी पड़ सकता है ।

मआशी तरक़्क़ी के इतने असरात अवाम की ज़िंदगी पर मुरत्तिब नहीं हुए होंगे जितने इस के सुस्त पड़ जाने पर असर अंदाज़ हो सकते हैं। सनअती हलक़ों की तशवीश को हुकूमत भी तस्लीम कर रही है और वज़ीर फ़ीनानस परनब मुकर्जी का कहना है कि मईशत को तरक़्क़ी की राह पर लाने कुछ नया करना होगा ।

हुकूमत हालात को बेहतर बनाने जो कुछ भी नया करे इस के फ़ौरी असरात की बजाय देरपा और मुज़िर असरात कोज़हन में रखते हुए इक़दामात करे ताकि अमला मआशी बोहरान की सूरत-ए-हाल पैदा ना होने पाये|