मक्का मस्जिद दरअसल पत्थरगट्टी में तामीर होने वाली थी!

हैदराबाद 4 जून – क़ुतुबशाही हुक़्मरानों ने हमेशा ही इल्म और फ़न की ग़ैरमामूली क़दरदानी की है और क़ुतुबशाही हुक्मरानों ने नए शहर हैदराबाद और इस के अतराफ़ और अकनाफ़ में फ़न तामीर की शाहकार बेशुमार मसाजिद तामीर करवाए उन में हिंदुस्तान की तारीख़ी और फ़न तामीर के लिहाज़ से इंतिहाई ख़ूबसूरत मानी जाने वाली मक्का मस्जिद भी शामिल है ।

मक्का मस्जिद के बारे में हमारे रियासत बिलख़ुसूस शहर के बाशिंदे बहुत अच्छी तरह जानते हैं उन्हें ये अच्छी तरह मालूम है कि मुहम्मद क़ुतुब शाह की हिदायत पर 1617 में इस की तामीर का आग़ाज़ हुआ और 1694 में तामीर मुकम्मल हुई इस तरह तक़रीबन 75 साल तक दो हज़ार मुअम्मार , दो हज़ार संग तराश और चार हज़ार से ज़ाइद मज़दूरों ने उस की तामीर में हिस्सा लिया तारीख़ी कुतुब में आया है कि सब से पहले उस वक़्त के 8 लाख रुपये मंज़ूर हुए और इस रक़म से 10 साल तक काम चलता रहा जब ये रक़म ख़त्म हो गई तब मज़ीद 2 लाख रुपये मंज़ूर किए गए ।

लेकिन बहुत ही कम लोग इस बारे में जानते हैं कि मक्का मस्जिद दरअसल पत्थरगट्टी में इस मुक़ाम पर तामीर की जाने वाली थी जहां आशूरख़ाना नाल साहब मौजूद है । मुहम्मद क़ुतुब शाह के हुक्म से मक्का मस्जिद की तामीर पत्थरगट्टी के इस मुक़ाम पर शुरू भी हो चुकी थी मस्जिद का पाया अभी तीन गज़ ज़मीन भी ना खोदा होगा कि एक मुसाफ़िर साहबे दिल फ़क़ीर इस मुक़ाम पर वारिद हुए और दरयाफ़्त करने लगे कि यहां इस मुक़ाम पर किस ने इसी अज़ीमुस्शान मस्जिद की तामीर का हुक्म दिया है । दारोगा इमारत मिर्ज़ा फ़ैज़ुल्लाह बेग और हुनरमंद ख़ांन वहां मौजूद थे ।

उस फ़क़ीर को बताया कि इस मुल्क के बादशाह मुहम्मद क़ुतुब शाह के हुक्म पर इस रियासत की सब से बड़ी जामा मस्जिद की तामीर शुरू की जा रही है। इस जवाब पर फ़क़ीर साहब पर हैरत तारी हो गई और उन्होंने इंतिहाई जलाली अंदाज़ में कहा मस्जिद यहां हरगिज़ मत बनाना क्यों कि इस मस्जिद को देखने वाला हर शख़्स बादशाह की अक़ल और दानिश पर हमेशा नुक्ता चीनी करेगा इस के इलावा एक बात सब से अहम ये है कि अगर इस मुक़ाम पर मस्जिद तामीर की जाती है तो कुदरत की मर्ज़ी पूरी नहीं होगी।

वाज़ेह रहे कि इस मस्जिद की तामीर एक ख़ुदा तरस और नमाज़ी और परहेज़गार बादशाह ने शुरू की और इत्तिफ़ाक़ से एक और नमाज़ी और परहेज़गार ख़ुदातरस बादशाह ने तामीर मुकम्मल की । यानी मुहम्मद क़ुतुब शाह ने तामीर शुरू करवाई और आलमगीर औरंगज़ेब ने ख़त्म करवाई । ताहम दरमियानी वक़्फ़ा में जब कि 1626 में सुल्तान मुहम्मद क़ुतुब शाह ने दाई अजल को लब्बैक कहा अबुलहसन तानाशाह के दौर में तामीरी काम फिर शुरू हुआ। मस्जिद के अंदरूनी हिस्से में 5 हज़ार आदमी नमाज़ पढ़ सकते हैं।

मस्जिद के अंदरून हिस्सा में 30 सफ़ होती हैं और ये मस्जिद तक़रीबन 5 एकड़ पर मुहीत है और उसे इंटेक वालों ने भी हेरिटेज एवार्ड देते हुए अपने एज़ाज़ात में इज़ाफ़ा किया । मस्जिद का हाल 67 मीटर लंबा और 54 मीटर चौड़ा है और उस की ऊंचाई 23 मीटर है ये इमारत पूरी तरह ग्रेनाइट से तामीर की गई है।