मक्का मस्जिद पर सख़्त तरीन सिक्योरिटी से मुसल्लियों की तादाद में कमी

ना सिर्फ़ हैदराबाद बल्कि हिंदूस्तान की ख़ूबसूरत तरीन, क़दीम तरीन और तारीख़ी मसाजिद में से एक मक्का मस्जिद है। हैदराबाद की तारीख़ ही नहीं बल्कि उस की तहज़ीब और रिवायात-ओ-इक़दार की जड़ें भी इस तामीरी शाहकार से वाबस्ता हैं। चारमीनार और मक्का मस्जिद को हैदराबाद की शान और अलामत समझा जाता है। यहीं से शहर हैदराबाद की तारीख़ शुरू होती है और इन ही पर मुकम्मल भी होती है।

मक्का मस्जिद का दर्जा शाही जामे मस्जिद का है। आज भी शहर और अतराफ़-ओ-अकनाफ़, अज़ला वग़ैरा से लोग मक्का मस्जिद में नमाज़ पढ़ने आते हैं लेकिन पिछले चंद जुमा से सिक्योरिटी के नाम पर पुलिस इंतिज़ामीया की जानिब से हद से ज़्यादा और गै़रज़रूरी बंद-ओ-बस्त किया जा रहा है, जिस की वजह से मुसल्लियों की तादाद में कमी वाक़ै होरही है और अवाम में तशवीश की लहर पाई जा रही है।

हालात पुरअमन होने के बावजूद पुलिस गै़र ज़रूरी ख़ौफ़-ओ-दहश्त का माहौल पैदा कर रही । पुलिस का इस ख़ौफ़-ओ-दहश्त के माहौल में एहतियाती इक़दाम क़रार देना कहाँ तक दरुस्त है? पुलिस के गै़रज़रूरी बंद-ओ-बस्त की हल्की सी तस्वीर हम आप के सामने पेश करते हैं, जिस से आप ख़ुद फ़ैसला करसकते हैं कि ये कहाँ तक दरुस्त है।

चुनांचे जो मुसल्ली हज़रात शाह अली बंडा की जानिब से आते हैं, इन्हीं सब से पहली शाह अली बंडा चौरासत्ता पर ही पुलिस के भारी दस्ता की शक्ल में रुकावट का सामना करना पड़ता है जो दस्ता मक्का मस्जिद की जानिब गाड़ीयों पर जाने से लोगों को रोक देता है और अगर कोई किसी और गली वग़ैरा से आने में कामयाब भी होजाए तो उसे मक्का मस्जिद के क़रीब बस असटानड के पास उसे बरीकडस मिलते हैं जिस से कोई भी सवारी के साथ वहां से गुज़र नहीं सकता।

सैंकड़ों की तादाद में पुलिस हथियारों से लैस वहां ताय्युनात रहती है, जिस में हैदराबाद पुलिस के इलावा रियापिड ऐक्शण फ़ोर्स वहां ऐसा माहौल पैदा कर रही हैं, जैसे हम मक्का मस्जिद में दाख़िल नहीं होरहे हैं बल्कि किसी मुलक के बॉर्डर को पार कर रहे हैं। इसी तरह महबूब चौक लाड बाज़ार के पास भी ऐसी ही भारी तादाद में पुलिस वाले रहते हैं और इस जानिब से भी गाड़ी के साथ दाख़िल होना नामुमकिन होता है।

तीसरा रास्ता मदीना बिल्डिंग की जानिब से है। मक्का मस्जिद जुमला 23,696 हज़ार गज़ पर वाक़ै है। मक्का मस्जिद गगन पहाड़ के पत्थरों से तामीर की गई है। नीज़ इस में मक्का मुअज़्ज़मा से मिट्टी लाकर और उस की ईंट बना कर जगह जगह लगाई गई है। मशहूर फ़्रांसीसी सय्याह टेवरनियर अपने सफ़रनामा में लिखता है कि ये मस्जिद तो हिंदुस्तान की तमाम मसाजिद में सब से बड़ी है।

इस में एसे बड़े पत्थर लगाए गए हैं कि देखने में हैरत होती है ख़ासकर महिराब सब से ज़्यादा हैरतअंगेज़ है जो एक ही अज़ीमुश्शान पत्थर का बना हुआ है। वो चीज़ जिस पर हैदराबादियों को बजा तौर पर फ़ख़र है यानी चारमीनार और मक्का मस्जिद आज इस में नमाज़ पढ़ने के लिए इतनी परेशानीयों और दुशवारीयों का सामना करना पड़ रहा है जो मज़कूरा बाला तफ़सील से वाज़ेह है।

नीज़ पुलिस इंतिज़ामीया को भी चाहीए कि ऐसी भारी सिक्योरिटी जिस से बजाय अमन के ख़ौफ़ का माहौल पैदा होरहा है। इस में तख़फ़ीफ़ करले आम शहरीयों का ख़्याल ये है कि इस तरह पुलिस मक्का मस्जिद से मुस्लियों को रोकने की साज़िश कर रही है। चुनांचे फ़िक्रमंद शहरीयों और रहबराने मिल्लत को इस अहम मसला पर ग़ौर करना चाहीए कि इंतिज़ामात के नाम पर ऐसे माहौल में जुमा की नमाज़ का बंद-ओ-बस्त करना कहाँ तक दरुस्त है।

शहरीयों का मुतालिबा है कि पुलिस कमिशनर और हुकूमत इस मसला पर संजीदगी से ग़ौर करे और खुले माहौल और खुली फ़िज़ा-ए-में नमाज़ अदा करने दे। जुमा के दिन ऐसा लगता है के लोग मक्का मस्जिद में नमाज़ अदा करने नहीं जा रहे हैं बल्कि मस्जिद अकसा में दाख़िल होने की कोशिश कर रहे हैं?