मक्का मुकर्रमा में दावत् कान्फ़्रैंस

सदीयों से आलम इस्लाम की रविष ये है कि इस ने हरीफ़ के लिए कोई चैलेंज पैदा ना किया बल्कि हमेशा एक के बाद दूसरे का सामना करता रहा। इस्लाम और मुस्लमानों के ख़िलाफ़ इंसानी ज़हन ने तास्सुबात और तफ़क्कुरात के ज़रीया हर दौर में मुहिम चलाई है आज का दौर भी उम्मत मुस्लिमा के लिए आज़माईश का दौर है ताहम ख़ादिम हरमैन शरीफ़ैन शाह अबदुल्लाह बिन अबदुलअज़ीज़ ने सऊदी अरब के मुक़द्दस शहर मक्का मुकर्रमा में हज के मौक़ा पर मुनाक़िदा दावत् । हाल और मुस्तक़बिल कान्फ़्रैंस से ख़िताब में मुस्लमानों को शरीयत पर क़ायम रहते हुए दुनिया के दीगर अक़्वाम को इस्लाम की तालीमात से वाक़िफ़ कराने की तलक़ीन की।

उन्होंने दुनिया के लिए इस्लाम के नज़रिया और रहनुमाई की ज़रूरत ज़ाहिर की उम्मत मुस्लिमा का फ़रीज़ा है कि वो दीन के पैग़ाम को आम करें। मुस्लमानों को अपने वजूद से इस्तिफ़ादा करते हुए तब्लीग़ इस्लाम के मक़सद की तकमील के लिए जद्द-ओ-जहद करना चाहिए ।

शाह अबदुल्लाह ने ग़ैर मुस्लिमों तक इस्लाम के ऑफॉती पैग़ाम को पहुंचाने का मश्वरा दिया ही। आज के मुख़ालिफ़ इस्लाम ताक़तों की बढ़ती ज़ुलम-ओ-ज़्यादतियां, नफ़रत, पर मबनी प्रोपगंडा को नाकाम बनाने के लिए उम्मत मुस्लिमा ही को अपना फ़रीज़ा देन अदा करना है।

अगर मुस्लमान आपसी इत्तिहाद के साथ संजीदगी से जायज़ा लें तो कुर्राह-ए-अर्ज़ पर सांस लेती हुए उन की ज़िंदगी के मक़ासिद का असल अंदाज़ा होगा। अक़्ता आलम में इस्लाम को फ़रोग़ देने के लिए तौहीद परस्तों को दिन रात मेहनत करनी होगी। शाह अबदुल्लाह ने इंसानी आबादी को दरपेश मसाइल की जानिब तवज्जा दिलाई है क्योंकि अब ये इंसानी आबादी 7 बिलीयन के निशाना को पाली है तो इंसानों में इस्लामी तालीमात का फ़रोग़ इस लिए भी एहमीयत रखता है कि ये आबादी हैरतअंगेज़ असरी और साईंसी तरक़्क़ी माद्दी-ओ-तकनीकी कामयाबीयों के बावजूद रूहानियत से आरी है।

इस्लामी तालीमात के ज़रीया ही इंसान को एक बेहतर ज़िंदगी गुज़ारने का दरस दिया जा सकता है। बिलाशुबा इस्लाम में तशनगान इलम के लिए मुहब्बत ,रोशनी और रहनुमाई ही मिलेगी। शाह अबदुल्लाह का ये पयाम एक ऐसे वक़्त उम्मत मुस्लिमा के सामने आया जब सारी दुनिया में उम्मत मुस्लिमा को हर महाज़ पर नाकाम बनाने की कोशिश की जा रही है।

इस लिए शाह अबदुल्लाह का इशारा इस जानिब है कि दीगर क़ौमों के लिए खुला ज़हन रख कर इस्लाम के पैग़ाम को उन तक पहूँचाने से ही एक बड़ी किरदार साज़ी में मदद मिलेगी। ये बात भी तवज्जा चाहती कि शाह अबदुल्लाह ने मुस्लमानों को अज़खु़द अपना मुहासिबा करने की भी तलक़ीन की।

मुस्लमानों की तर्ज़-ए-ज़िदंगी और किरदार उस वक़्त दीगर अक़्वाम की तरह हंसते जा रहे हैं जिस से मसाइल के अंबार पैदा होने लगे हैं अगर मुस्लमान अपनी तर्ज़-ए-ज़िदंगी और किरदार को बदल कर उसे इस्लामी तालीमात के मुताबिक़ करें तो ग़ैर मुस्लिमों को उन के किरदार हुस्न-ए-अख़्लाक़ और पाकीज़गी पर रशकाए गा और वो एक दिन दाख़िल इस्लाम होंगी।

इस में शक नहीं कि हम में से कई बंदगान हुदा ऐसे हैं जिन की तर्ज़-ए-ज़िदंगी रज़ाए अलहि के साथ इंसानियत के लिए एक अहम क़ाबिल तक़लीद होती ही। कई ग़ैर मुस्लिम अफ़राद उन्ही अफ़राद के इस्लामी तौर तरीक़ों और पाकीज़ा नुक़ूश को देख कर ही दाख़िल इस्लाम होते हैं। दुनिया भर में इस्लाम के मानने वालों में इज़ाफ़ा हो रहा है लेकिन इस्लामी तर्ज़-ए-ज़िदंगी और तालीमात पर सख़्ती से क़ायम करने में कामयाबी नहीं मिल पा रही ही। इस की वजह मुस्लमानों को बातिल ताक़तों का सामना है।

तास्सुब पसंदी के साथ मुस्लमानों को असर-ए-हाज़िर के चैलेंजस में जकड़ने की कोशिश की जा रही ही। मुस्लिम नौजवानों में मज़हब बेज़ारी पैदा करके इन में मग़रिबी कल्चर को फ़रोग़ देने की कोशिश की जा रही है ख़ासकर मग़रिबी दुनिया, यूरोप और दीगर ममालिक में मुख़ालिफ़ इस्लाम ताक़तों ने अपना मिशन बनाया है कि वो मुस्लिम नौजवान नसल को गुमराह करने की हर मुम्किना कोशिश करेगी। इस लिए शाह अबदुल्लाह बिन अबदुलअज़ीज़ का ताज़ा पयाम उम्मत मुस्लिमा को कई एक महाज़ों पर वसीअ तर रोशनी फ़राहम करता ही। साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म मलेशिया महातर मुहम्मद ने भी आलमी तनाज़ुर में मुस्लमानों की तालीमी, मआशी और दीनी एहमीयत पर एक से ज़ाइद मर्तबा तवज्जा दिलाई है।

मुस्लमानों की नौजवान नसल के ताल्लुक़ से उन का कहना सद फ़ीसद दरुस्त है कि सलाहीयतों के मुआमला में मुस्लमान मशरिक़ बईद की अक़्वाम से दोगुना ज़रख़ेज़ ज़हन रखते हैं। मगर मुस्लमानों में इन्फ़िरादी कामयाबी हासिल करने के रुजहान ने तरक़्क़ी को महिदूद करदिया है।

इन्फ़िरादी तौर पर कोशिशों से इस में शक नहीं कि हमारे मुस्लिम भाई ख़ीरा कुन कामयाबियां हासिल करते हैं लेकिन मिल जल कर काम करने में उम्मत मुस्लिमा अक्सर नाकाम ही। इस पेचीदा मिज़ाज और तल्ख़ हक़ीक़त की इस्लाह ज़रूरी ही। मुस्लमानों में इस्लामी तालीमात से मुताल्लिक़ ये कहा जाता है कि इन में अक्सर को इलम और इदारों की एहमीयत का इदराक बहुत कम है इस लिए वो एक ख़ैर उम्मत होने के बावजूद दीगर अक़्वाम तक इस्लाम के ऑफॉती पैग़ाम पहूँचाने में किसी हद तक नाकाम हो रहे हैं। इस की एक वजह ये है कि दुश्मनाँ इस्लाम दुनिया की सोच पर ग़ालिब आने की कोशिश कररहे हैं।

दहश्तगर्दी के ख़िलाफ़ जंग के नाम पर मग़रिब ने इस्लाम को मसख़ करने की कोशिश की इस के बावजूद इस्लाम उन्ही मुल्कों में ज़्यादा फ़रोग़ पारहा है जहां इस के ख़िलाफ़ नफ़रत की मुहिम चलाई जा रही है मक्का मुकर्रमा में मुनाक़िदा कान्फ़्रैंस दावत् हाल और मुस्तक़बिल की इफ़ादीयत को देखते हुए आलम इस्लाम के मुख़लिस हुकमरानों की तरफ़ हम देखें तो ये उम्मीद पैदा होती है कि ये लोग तमाम मुस्लमानों को मुत्तहिद करने और दावৃ के कामों में इस्लाह की ज़रूरत पर तवज्जा देने में मुसलसल रहनुमाई करेंगी।

दुनिया को इस्लामी रहनुमाई और बसीरत की ज़रूरत है और मुस्लमानों को असरी तक़ाज़ों से हम आहंग होकर इस्लामी तालीमात की रोशनी में असर-ए-हाज़िर के मसाइल का हल पेश करने के काबिल होने पर तवज्जा देना चाहिए ।