ओहदे या रुतबे की परवाह किए बगै़र अहकामात शरई और कुराअनी तालीमात पर अमल पैरा होकर मुल्क मलत की ख़िदमात के जज़बा के साथ मजलिस बचाओ तहरीक की बुनियादें डाली गई और आज तक तहरीक अपने इसी मक़सद-ओ-मिशन पर गामज़न है।
तारीख़ी मक्का मस्जिद में मजलिस बचाव तहरीक के ज़रीये एहतेमाम मुनाक़िदा जलसा यौम उल-क़ुरआन से सदारती ख़िताब के दौरान सदर एमबी टी डक्टर क़ायम ख़ान ने इन ख़्यालात का इज़हार किया।
मजीदुल्लाह ख़ान फ़र्हत तर्जुमान मजलिस बचाओ तहरीक अल्हाज सयद ताहिर ख़ाज़िन एमबी टी मीर मुहसिन अली अलताफ़ नसीब ख़ान और दुसरे ने भी इस जलसे को मुख़ातब किया।
अपनी तक़रीर के सिलसिले को जारी रखते हुए क़ायम ख़ान ने कहा कि हम पर ये ज़िम्मेदारी आइद होती हैके मुक़द्दस माह रमज़ान के बाद हम मसाजिद को इसी तरह आबाद रखें ताकि हमारे दिलो नके अंदर ख़ौफ़ ख़ुदा हरवक़त दाइम क़ायम रहे जलसा-ए-गाह में सैंकड़ों की तादाद में मौजूद महबान मजलिस बचाओ तहरीक से मुख़ातब होकर उन्होंने कहा कि मजलिस बचाओ तहरीक की तरफ से जलसा यौम उल-क़ुरआन के इनइक़ाद की रवैयत क़ायम करने का मक़सद ही मुसलमानों के अंदर क़ुरआन की एहमीयत और इफ़ादीयत के पैग़ाम को पहुंचाना है उन्होंने कहा कि क़ुरआन का नुज़ूल अगर पहाड़ पर होतातो ख़ुदा के ख़ौफ़ से पहाड़ रेज़ा रेज़ा हो जाता उन्हों ने कहा कि क़ुरआन के मुक़ाम मर्तबा को समझना दुशवार है मगर कुराअनी तालीमात पर अमल पैरा होकर ज़िंदगी और अख़रत को संवारा जा सकता है उन्होंने हाफ़िज़-ए-क़ुरआन की अफ़ज़लीयत पर रोशनी डालते हुए कहा कि अगर एक ख़ानदान में कोई हाफ़िज़-ए-क़ुरआन है तो पूरा ख़ानदान बाबरकत रहता है उन्होंने कहा कि हाफ़िज़-ए-क़ुरआन अपने वालिदैन की बख़शिश का ज़रीये भी बन जाता है।