लखनऊ 4 जून 2016। रिहाई मंच ने मथुरा में हुए हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने की मांग करते हुए कहा है कि इतने बड़े पैमाने पर असलहों और विस्फोटकों का जखीरा बिना राजनीतिक संरक्षण के इकठ्ठा नहीं किया जा सकता था। मंच ने सवाल किया कि जो आईबी बिना सबूतों के किसी नासिर को 23 साल जेल में सड़ाकर जिंदा लाश बना देती है उसे क्या इस बात की जानकारी नहीं थी कि जवाहरबाग में जमा दहशतगर्द उनके पुलिसिया अमले पर हमला कर देंगे। मंच जल्द ही मथुरा का दौरा करेगा।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मथुरा समेत पूरे सूबे में जिस तरीके से लगातार कहीं फैजाबाद और नोएडा में बजरंग दल तो वाराणसी में दुर्गा वाहिनी के सैन्य प्रशिक्षण कैंप चल रहे हैं वो यह साफ करते हैं कि सूबे में आतंरिक अशांति के लिए सरकार संरक्षण में प्रयोजित तरीके से षड़यंत्र रचा जा रहा है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से मथुरा में भारी पैमाने पर असलहे और विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया वह सामान्य घटना नहीं है। इस घटना ने खुफिया एजेंसियों की नाकामी नहीं बल्कि उनकी संलिप्तता को पुख्ता किया है। उन्होंने सवाल किया कि यह कैसे सम्भव हो जाता है कि किसी बेगुनाह दाढ़ी-टोपी वाले मुस्लिम को आईएस और लश्कर ए तैयबा से उसका लिंक बता करके पकड़वाने वाली खुफिया एजेंसियां यह पता नहीं कर पाईं कि जवाहर बाग में हथियारों और विस्फोटकों का इतना बड़ा जखीरा कैसे इकठ्ठा हो गया। उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह गाजियाबाद के डासना में हिंदू स्वाभिमान संगठन के लोग पिस्तौल, राइफल, बंदूक जैसे हथियारों की ट्रेनिंग आठ-आठ साल के हिंदू बच्चों को दे रहे थे उस पर आज तक खुफिया-सुरक्षा एजेंसियां और सरकार चुप है। जिस तरह से मथुरा हिंसा में रामवृक्ष यादव को सत्ता द्वारा संरक्षण दिया जाना कहा जा रहा है ठीक इसी तरह हिंदू स्वाभिमान संगठन के स्वामी जी उर्फ दीपक त्यागी कभी सपा के यूथ विंग के प्रमुख सदस्य रह चुके हैं इसलिए उनके खिलाफ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। ठीक इसी तरह पश्चिमी यूपी में मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा में सक्रिय संघ शक्ति हो या फिर संगीत सोम जिन्होंने फर्जी वीडियो वायरल कर मुसलमानों का जनसंहार कराया उसपर खुफिया एजेंसियों को कोई जानकारी नहीं रहती है। पर वहीं खुफिया बिना किसी सबूत के ही राहत शिविरों में जेहादी आतंकियों की सक्रियता के झूठे दावे करके बेगुनाहों को फंसाने में लग जाते हैं।
लखनऊ रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने कहा कि मई माह में आजमगढ़ के खुदादादपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा में हिंदू महिलाओं द्वारा राहगीर मुस्लिम महिलाओं पर न सिर्फ हमला किया गया बल्कि उनके जेवरात छीने गए तो वहीं मथुरा में महिलाओं द्वारा फायरिंग व वाराणसी में दुर्गा वाहिनी द्वारा महिलाओं को हथियारों की ट्रेनिंग यह घटनाएं अलग-अलग हो सकती हैं पर इनका मकसद हिंसा है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से मथुरा में कब्जा हटाने के मामले में सेना तक की मदद लेने की बात सामने आ रही है उससे साफ है कि स्थिति भयावह थी और सरकार में या तो निपटने की क्षमता नहीं थी या फिर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का राजनीतिक साहस नहीं दिखा पाई।
रिहाई मंच ने कहा है कि मथुरा काफी संवेदनशील जगह है ऐसे में इस पूरे मामले में खुफिया विभाग की भूमिका की जांच होनी चाहिए। वहीं जातिवादी व सांप्रदायिक वोटों की खातिर जिन देशद्रोहियों को सरकार पाल रही है वह देश के नागरिकों के हित में नहीं है। ऐसे में मथुरा से सबक लेते हुए प्रदेश में बजरंगदल समेत अनेकों संगठनों द्वारा जो संचालित प्रशिक्षण केन्द्र हैं उन पर तत्काल कार्रवाई करते हुए इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाए।